म्यूज़ियम, मेमोरियल, पार्क और चिड़ियाघर के दरवाज़े बंद हो गए. लेकिन उसी स्वास्थ्य क़ानून की बदौलत, हज़ारों मील दूर, भारत में नए दरवाज़े खुल रहे हैं.

भारत में जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनियां अमरीका को निर्यात होने वाली सस्ती दवाओं की मांग में भारी बढ़ोतरी के लिए कमर कस रही हैं. इस वक्त अमरीका में इस्तेमाल होने वाली जेनिरक दवाओं का चालीस प्रतिशत भारत से आयात हो रहा है और इसके और ऊपर जाने के आसार हैं.

अर्नस्ट ऐंड यंग के मुरलीधरन नायर का कहना है कि सस्ती दवाओं के ज़रिए ओबामाकेयर के तहत हर साल डेढ़ सौ अरब डॉलर की बचत का लक्ष्य रखा गया है और इसका मतलब ये हुआ कि जेनेरिक दवाइयों के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के लिए मौका भी इतना ही बड़ा है.

'भारत को भारी फायदा'

उनका कहना है, “अमरीका में जिस तरह से जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल होता है उसमें ओबामाकेयर की वजह से क्रांतिकारी बदलाव होगा. और ऐसी दवाओं की आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर भारत को भारी फ़ायदा होगा.”

"अमरीका में जिस तरह से जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल होता है उसमें ओबामाकेयर की वजह से क्रांतिकारी बदलाव होगा. और ऐसी दवाओं की आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर भारत को भारी फ़ायदा होगा."

-मुरलीधरन नायर, अर्नस्ट ऐंड यंग

अमरीका में स्वास्थ्य इंश्योरेंस के बावजूद 90 प्रतिशत मरीज़ों को दवाइयों के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने होते हैं. इसे कम करने के लिए डॉक्टर भी अब जितना हो सके जेनेरिक दवाइयां ही सुझा रहे हैं.

स्वास्थ्य मामलों पर ओबामा प्रशासन की सलाहकार रह चुकीं कविता पटेल का कहना है कि डॉक्टर जब दवा लिखते हैं तो उनके कंप्यूटर पर ब्रांडेड दवाओं का जेनेरिक विकल्प आ जाता है और इससे मरीज़ों को काफ़ी बचत हो रही है.

उनका कहना है, “आपको मैं कॉलेस्ट्रोल का उदाहरण देती हूं जो यहां बड़ी समस्या है. इस बीमारी के लिए जेनिरक दवा की कीमत एक महीने में चार डॉलर होगी जबकि ब्रांडेड दवा के लिए हर महीने 300 डॉलर का खर्च आएगा. और अगर आपने इंश्योरेंस भी ले रखा है तो ब्रांडेड दवा खरीदने पर आपकी जेब से सौ से दो सौ डॉलर जाएंगे.”

'बढ़ेगा भरोसा'

इन दवाओं की क्वॉलिटी में कोई कमी नहीं हो इसके लिए अमरीकी एजेंसी फ़ूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन भारत में भी इन पर नज़र रखती है. कई कंपनियों को पिछले दिनों में ख़राब क्वॉलिटी का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ा है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की निगरानी अच्छी है क्योंकि इससे भारत में बनने वाली दवाओं पर भरोसा और बढ़ेगा.

दवाओं के अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करनेवाली भारतीय आईटी कंपनियां भी बिज़नेस के नए मौके देख रही हैं.

डेटाक्वेस्ट पत्रिका के संपादक एड नायर का कहना है कि तीन करोड़ से ज़्यादा अमरीकी नागरिक अब स्वास्थ्य तंत्र में शामिल होंगे जो अपने आप में एक बड़ा मौका है.

उनका कहना है, “पूरे स्वास्थ्य तंत्र की टेक्नॉलॉजी को बदलने की ज़रूरत होगी. नया सिस्टम बनाना होगा जिसकी वजह से आईटी क्षेत्र में भारत के लिए नए मौके पैदा होंगे.”

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