बोले युवा, अधिकारियों की बत्ती से नहीं कोई परेशानी, नेताओं का वीआईपी कल्चर करता है इरीटेट

ALLAHABAD: सरकार ने वीआईपी कल्चर को खत्म करने के लिए लाल-नीली बत्ती हटाने का आदेश दिया लेकिन इसका बहुत अधिक फायदा नहीं दिख रहा है। मंत्री-अधिकारियों के रुतबे में कोई कमी नहीं आई है। उनके दिमाग से वीआईपी कल्चर का भूत नहीं निकला है और इसे जनता भी भली-भांति समझती है। इस मामले में जनता की नब्ज टटोलने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने डिबेट का आयोजन किया, जिसमें युवाओं ने खुलकर अपनी बात रखी। कुछ लोगों ने अधिकारियों को लाल-नीली बत्ती दिए जाने की वकालत भी की।

संविधान में नहीं है ऐसी व्यवस्था

लोगों का कहना था कि संविधान में कहीं भी वीआईपी के लिए लाल-नीली बत्ती लगाने की व्यवस्था नही है। इसकी शुरुआत वर्ष 1970 में हुई है। मंत्री-अधिकारियों को यह सुविधा उनकी सहूलियत के लिए दी गई थी लेकिन बाद में यह व्यवस्था पब्लिक के लिए दिक्कतों सबब बन गई। वीआईपी को मिलने वाली सुविधाओं का नाजायज फायदा उठाया जाने लगा।

अधिकारियों को दी जाए छूट

मंत्रियों से लाल-नीली बत्ती लिए जाने का आदेश ठीक है लेकिन अधिकारियों को इसके उपयोग की छूट मिलनी चाहिए। डिबेट में शामिल युवाओं का कहना था कि मंत्री के साथ स्कार्ट चलता है और समर्थकों के वाहन भी होते हैं, जिससे उनकी पब्लिक में आसानी से पहचान हो जाती है। लेकिन, अधिकारियों के पास ऐसा कुछ नही होता। इसलिए उन्हें बत्ती दी जानी चाहिए। हां, उनकी संख्या घटा देनी चाहिए।

एंबुलेंस को भी रास्ता नहीं

लोगों का कहना था कि वीआईपीज ने अपने अधिकारों का इतना दुरुपयोग किया है कि आम जन को उनके कल्चर से नफरत हो गई है। अब तो लोग ट्रैफिक में फंसी एंबुलेंस को भी रास्ता देने से कतराते हैं। हाल ही में शहर के चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल लगाए गए हैं, लेकिन इनको सबसे ज्यादा वीआईपी ही तोड़ते हैं। अपने प्रोटोकॉल का नाजायज फायदा उठाकर वे पब्लिक के सामने सिग्नल जंप कर सकते हैं तो जनता क्यों पीछे रहे।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वीआईपी के लिए लाल बत्ती विशेष अधिकार की तरह है। 1970 से इस कल्चर की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य उनकी सहूलियत थी, लेकिन उन्होंने इसका गलत फायदा उठाया। इससे जनता उनसे दूर होने लगी है।

रविकांत

भाजपा की सरकार ने अब इस दिशा में कदम उठाया है, लेकिन दिल्ली की आप सरकार ने सत्ता संभालने के बाद ही वीआईपी कल्चर को बैन कर दिया था। ऐसे आदेश राजनीतिक फायदा लेने के लिए होते हैं।

प्रशांत गोस्वामी

हमारे संविधान में वीआईपी कल्चर की व्यवस्था नहीं है, लेकिन वीआईपीज की सुविधा के लिए उन्हें कुछ अधिकार प्रदान किए गए। अब इसका नाजायज फायदा उठाकर सरकार सगे-संबंधियों को बत्ती बांट रही है। जो सरासर गलत है।

चितरंजन सिंह

सवाल ये है कि नेताओं के दिमाग से लाल बत्ती कैसे निकाली जाए। हनक तो अब भी कायम है। दिखावे के लिए उन्होंने बत्ती हटवा दी। मेरे ख्याल से अधिकारियों की कार्यप्रणाली को देखते हुए उन्हें बत्ती लगाने की परमिशन देनी चाहिए।

अशोक पांडेय

वीआईपी कल्चर वर्तमान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसने वीआईपी और आम जनता के बीच खाई खोद दी है। इस पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है।

सुधीर राज

पूरे देश में पांच लाख लोगों को लाल और नीली बत्ती का उपयोग करने की परमिशन दी गई है। कुछ प्रदेशों में वीआईपी कल्चर को बैन किया गया है। मेरा मानना है कि अधिकारियों को छूट दी जाए, लेकिन संख्या घटाने के बाद। आईएएस को परमिशन मिलनी चाहिए।

नितेश राव

वीआइ्रपी कल्चर को बैन करना सरकार का सराहनीय प्रयास है। देर से ही सही उचित कदम उठाया गया है। हालांकि, इसके जमीनी तौर पर पालन कराए जाने की जरूरत है। बत्ती के साथ दूसरे तरीकों पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए।

अरुण