पर्यवेक्षक ने दी निगेटिव रिपोर्ट तो शोधार्थी को फेस करना होगा ओपन इंटरव्यू

पैनल के सामने न दे पाए जबाव तो कैंसिल हो जाएगी उपाधि

ALLAHABAD: जैसे तैसे पीएचडी कर नौकरी पाने का ख्वाब देखने वालों के लिए खतरे की घंटी बज गई है। कट, कापी व पेस्ट से थीसिस तैयार करने वालों की दाल अब नहीं गलेगी। यूजीसी ने गुणवत्तापरक शोध कार्य के लिए सख्ती कर दी है। सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया है कि वे करेंट दिशा-निर्देशों का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करें।

अब नहीं चलेगा जुगाड़ तंत्र

अभी तक विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों से रिसर्च करने वालों के लिए जुगाड़ तंत्र बड़ी चीज रही है। इधर-उधर से मैटर उठाकर थीसिस तैयार कर ली जाती है। ऐसे मामले कई बार सामने आ चुके हैं। इसका बड़ा नुकसान शोध कार्य की गिरावट के रूप में सामने आता है। ऐसे में यूजीसी ने अपने तेवर कड़े कर लिए हैं। उसने विश्वविद्यालयों को जारी की गई नई अधिसूचना में थीसिस की गहनता से जांच को कहा है।

विदेशी परीक्षक होंगे शामिल

यूजीसी की ओर से जारी गाइड लाइन में कहा गया है कि रिसर्च स्कॉलर के पीएचडी शोध प्रबंध का मूल्यांकन उसके शोध पर्यवेक्षक तथा कम से कम दो वाह्य परीक्षकों द्वारा किया जाएगा। इसमें एक परीक्षक विदेश का भी हो सकता है। यदि शोध पर्यवेक्षक या किसी एक बाहरी परीक्षक मूल्यांकन के बाद निगेटिव रिपोर्ट देता है तो अभ्यर्थी के पूर्ण परीक्षण के लिए सार्वजनिक (ओपन) मौखिक परीक्षा का आयोजन किया जा सकता है। इसमें शोध सलाहकार समिति के सदस्यगण, संकाय सदस्य एवं शोधार्थी शामिल होंगे।

करनी होगी विशिष्ट सिफारिश

यदि वाह्य परीक्षकों में किसी एक की मूल्यांकन रिपोर्ट निगेटिव है तो ओपन इंटरव्यू के लिए विशिष्ट सिफारिश करनी होगी। मूल्यांकन रिपोर्ट निगेटिव होने के बाद भी ओपन इंटरव्यू की सिफारिश नहीं की जाती तो संस्थान की जिम्मेदारी है कि वह परीक्षकों के अनुमोदन पैनल से हटकर किसी नए बाहरी परीक्षक को थीसिस जांचने के लिए भेजे। यदि बाहरी परीक्षक की रिपोर्ट भी निगेटिव है तो सार्वजनिक मौखिक साक्षात्कार का आयोजन किया जा सकता है।

छह माह में करवाएं मूल्यांकन

परीक्षण में अयोग्य पाए जाने पर अभ्यर्थी को उपाधि के लिए अपात्र घोषित किया जाएगा। इसमें किसी भी प्रकार की सिफारिश अनुमन्य नहीं होगी। वहीं यूजीसी ने शोधार्थियों की परेशानी को देखते हुए उन्हें भी बड़ी राहत दी है। अभी तक देखने में आता है कि थीसिस के मूल्यांकन की या तो कोई समय सीमा नहीं होती या होती भी है तो इसका अनुपालन नहीं किया जाता। ऐसे में यूजीसी के सचिव प्रो। जसपाल एस सन्धु ने कहा है कि थीसिस जिस तिथि को जमा किए जाएंगे। उसके छह माह के भीतर मूल्यांकन की प्रक्रिया को खत्म करना होगा।