छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : अब राइट टू हेल्थ सर्विसेज की भी बात उठने लगी है। वेलफेयर कंट्री होने के नाते हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ सुविधा मिले, यह सुनिश्चित करना गवर्नमेंट की जिम्मेवारी बनती है, लेकिन हाल ही में जारी किए गए नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के आंकड़ों पर नजर डालें तो झारखंड में हेल्थ सर्विसेज की तस्वीर कुछ और निकलकर सामने आती है। यहां 19 हजार की आबादी के लिए मात्र एक गवर्नमेंट डॉक्टर उपलब्ध है। अगर प्राइवेट हॉस्पिटल्स व प्राइवेट प्रैक्टिस करनेवाले डॉक्टर्स की संख्या को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो भी यहां 7500 की आबादी के लिए मात्र एक ही डॉक्टर की सेवा मिल पाती है। इतना ही नहीं, गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स में इंफ्रास्ट्रक्चर का भी अभाव है। एक तो यहां इक्विपमेंट्स की कमी है और अगर इक्विपमेंट्स हैं भी तो वे खराब पड़े हुए हैं। ऐसे में पेशेंट्स को उसका फायदा नहीं मिल पाता है।

गड़बड़ है सिस्टम

प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ट्रीटमेंट कॉस्टली होने की वजह से ज्यादातर जरूरतमंद व गरीब गवर्नमेंट हॉस्पिटल का रूख करते हैं, पर यहां हेल्थ सर्विसेज को लेकर सिस्टम इतना गड़बड़ है कि पेशेंट्स का प्रॉपर वे में ट्रीटमेंट नहीं हो पाता है। अगर झारखंड की बात करें तो यहां की आबादी करीब 3.29 करोड़ है, जबकि गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स में एलोपैथिक डॉक्टर्स की संख्या मात्र 1701 है, यानी 19009 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के 2013 के रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे राज्य में मात्र 40 डेंटल सर्जन हैं। इसका मतलब है कि 8.83 लाख की आबादी पर एक डेंटल सर्जन अपनी सेवा दे रहे हैं। अगर बात आयुर्वेद, यूनानी और होमियोपैथिक डॉक्टर्स की करें तो यह संख्या 6339 ही है।

एक हजार की आबादी पर मिले एक डॉक्टर की सेवा

प्लानिंग कमीशन की ओर से बनाए गए एक हाई लेवल एक्सपर्ट ग्रुप ने देश में प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर की सेवा उपलब्ध करने का सुझाव दिया था, ताकि लोगों को बेहतर हेल्थ सर्विस मिल सके, पर झारखंड इस मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। न सिर्फ गवर्नमेंट डॉक्टर्स बल्कि प्राइवेट डॉक्टर्स की भी यहां जरूरत के हिसाब से भारी कमी है। यहां स्टेट मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड डॉक्टर्स की संख्या 4373 है। आबादी के लिहाज से 7543 लोगों पर एक डॉक्टर। नेशनल लेवल पर देखें तो 1384.43 की आबादी पर एक डॉक्टर की सेवा उपलब्ध है। इस मायने में झारखंड का रिकॉर्ड नेशनल लेवल की तुलना में काफी कम है।

ह्यूमन रिसोर्स की भी है भारी कमी

सिर्फ डॉक्टर्स की ही नही, स्टेट में हेल्थ सेक्टर में ह्यूमन रिसोर्स की भी भारी कमी है। स्टेट में रजिस्टर्ड एएनएम की संख्या सिर्फ 4 हजार 71 है, जबकि रजिस्टर्ड नर्सेज और मिडवाइव्स की संख्या 2 हजार 355 है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की रिपोर्ट के अनुसार, स्टेट में एक भी फार्मासिस्ट नही है, जबकि नेशनल लेवल पर 1987 लोगों पर एक फार्मासिस्ट है। दूसरी ओर स्टेट के रजिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल फार्मेसी के रजिस्ट्रार कम सेक्रेटरी कौशलेंद्र कुमार ने स्टेट में 6500 से सात हजार रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट होने की बात कही। उनके मुताबिक, स्टेट में अबतक 1895 फार्मासिस्ट्स का रजिस्ट्रेशन हुआ है और हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार से यहां करीब पांच हजार फार्मासिस्ट आए हैं। हालांकि यह संख्या भी जरूरत के हिसाब से कम पड़ रही है। गौरतलब है कि स्टेट में फार्मेसी की पढ़ाई के लिए सिर्फ कॉलेज हैं। यहां 170 सीट्स हैं, जबकि स्टेट में कम से कम दस फार्मेसी कॉलेज की आज जरूरत है।