लगातार बढ़ रहे हैं आस्टियोपोरोसिस के मरीज

महिलाओं में अधिक है खतरा, कमजोर हो जाती हैं हड्डियां

ALLAHABAD: धूप से बचने के लिए लड़कियों का पूरे शरीर को ढंककर घर से निकलना भविष्य में उनके लिए घातक साबित हो सकता है। शरीर को पर्याप्त मात्रा में धूप नही मिल पाने से वह आस्टियोरोसिस जैसी घातक बीमारी की चपेट में आ सकती है। दुनियाभर में इस बीमारी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिनमें महिलाओं की संख्या कहीं अधिक है। पुरुष भी इस बीमारी का शिकार होते हैं लेकिन कम संख्या में।

तीन में से एक है बीमार

आस्टियोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां कमजोर होने लगती है और हल्की सी चोट से फ्रैक्चर का खतरा बना रहता है। जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। आकड़ों के मुताबिक तीन में से एक महिला को यह बीमारी होती है जबकि पांच में से एक पुरुष आस्टियोपोरोसिस का शिकार होता है। महिलाओं की हड्डियों में कैल्शियम कम पाया जाता है और दूसरे उनकी जीवनशैली के चलते उन्हें ज्यादा खतरा रहता है। यही कारण है कि उनमें इसके लक्षण अधिक देखने को मिलते हैं।

क्या है बीमारी के कारण

आनुवंशिक, प्रोटीन की कमी, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी, व्यायाम न करना, बढ़ती उम्र, धूम्रपान, डायबिटीज, थाइरॉयड तथा शराब का सेवन।

दौरे की दवाएं या स्टेरायड आदि का सेवन करना।

बहुत ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक पीने, ज्यादा नमक खाने तथा महिलाओं में जल्दी पीरियड्स खत्म होने से भी इस बीमारी को पांव पसारने का मौका मिल सकता है।

धूप में नही निकलना और बॉडी के अधिकतर हिस्से को ढंककर रखना भी घातक है।

बीमारी हो जाए तो क्या करें?

वॉक, एरोबिक्स, डांस तथा लाइट स्ट्रेचिंग करें। इसके अलावा योग भी ऑस्टियोपोरोसिस में अराम पहुंचाता है।

खुद को अधिक एक्टिव रखें। पौष्टिक आहार लें जिनमें कैल्शियम और विटामिन डी भरपूर मात्रा में हो। दूध से बने उत्पाद कैल्शियम के अच्छे स्त्रोत होते हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए बीएमडी टेस्ट अर्थात बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कराया जाता है। डॉक्टर मानते हैं कि 40 साल की उम्र के बाद हर तीन वर्ष में एक बार बोन डेंसिटी टेस्ट करा लेना चाहिए।

बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करने वाले व एथलीट आदि की बोन डेंसिटी कम होने का खतरा रहता है, इसलिए इन्हें अपने खान-पान पर खास ध्यान देना चाहिए। आयुर्वेद व होम्योपैथी भी इसके इलाज में कारगर होती है।

खासकर तीस साल से कम उम्र के महिलाओं व लड़कियों को पर्याप्त मात्रा में धूप लेनी चाहिए, जिससे हड्डियों को नेचुरल विटामिन डी मिल सके।

लक्षणों को पहचानें

शुरुआत में दर्द के अलावा कोई खास लक्षण नही होता लेकिन मामूली सी चोट लग जाने पर भी फ्रैक्चर होने लगे तो होशियार हो जाना चाहिए।

बहुत जल्दी थक जाना, शरीर में बार-बार दर्द होना, खासकर सुबह के वक्त कमर में दर्द होना भी इसके लक्षण होते हैं।

इसकी शुरुआत में तो हड्डियों और मांसपेशियों में हल्का दर्द होता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे ये दर्द बढ़ता जाता है।

खासतौर पर पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में हल्का सा भी दबाव पड़ने पर दर्द तेज हो जाता है क्योंकि ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती दौर में अक्सर पता नहीं लग पाता, इसलिए इसके जोखिम से बचने के लिए पचास साल की आयु के बाद डॉक्टर नियमित अंतराल पर एक्स-रे कराने की सलाह देते हैं, ताकि इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सके।

तीस साल तक दिक्कत नही होती लेकिन इसके बाद हड्डियों में स्टोर कैल्शियम कम होने लगता है। महिलाओं की जीवनशैली के चलते 40 साल के बाद उनमें आस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए उन्हें शुरुआत से ही विटामिन डी और कैल्शियम लेने पर अधिक ध्यान देना होगा। इससे अधिक उम्र होने पर बीमारी का खतरा कम हो जाता है।

डॉ। जितेंद्र जैन, हड्डी रोग विशेषज्ञ