- सोशल मीडिया के ओवरएक्सपोजर को स्टूडेंट्स के भटक जाने की वजह मानते हैं सिटी के पैरेंट्स और स्कूल्स

- इन दिनों टीवी पर परोसा जा रहा मैक्सिमम कंटेंट भी बच्चों को नहीं दे रहा पॉजिटिव सीख

ज्यादा एक्सपोजर खतरे की घंटी
एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक सोशल मीडिया के इस्तेमाल से मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ते हैं। यह प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हैं। कम उम्र में ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू कर दे रहे स्कूली छात्रों पर इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों पर सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा उपयोग करने का असर क्या पड़ रहा है, इस पर अनेक रिसर्च भी हो रहे हैं। हाल ही में हुए एक रिसर्च में यह सामने आया है कि जो बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग बहुत ज्यादा करते हैं, उनके मन में जीवन के प्रति असंतुष्टि का भाव ज्यादा रहता है। सोशल मीडिया पर लोगों को देखादेखी उनकी आदत हो जाती है कि वे अपने अभिभावकों से चीजों की डिमांड भी ज्यादा करने लगते हैं।

बच्चों में बढ़ रहा असंतुष्टि का भाव
रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि छात्र सोशल मीडिया पर जितना समय बिताते हैं, वे उसी अनुपात में अपने घर-परिवार, स्कूल और जीवन के प्रति असंतुष्ट हैं। जो बच्चे सोशल मीडिया पर कम समय बिताते हैं, वे जीवन के दूसरे पहलुओं के प्रति ज्यादा संतुष्ट नजर आए।

टीवी पर तो बस क्राइम की धुन
सोशल मीडिया के अलावा टीवी का भी बच्चों पर अच्छा कम बुरा प्रभाव ज्यादा पड़ता दिखाई दे रहा है। आजकल छात्र टीवी पर बच्चों से जुड़े कार्यक्रम कम क्राइम शोज ज्यादा देख रहे हैं। जो उन्हें अवेयर करने की जगह उल्टा क्राइम का गुणागणित ज्यादा समझा दे रहे हैं। एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि चूंकि विजुअल का दिमाग पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, ऐसे में क्राइम शोज में मर्डर आदि चीजें देखना बच्चों के दिमाग में एग्रेसिवनेस को जन्म दे दे रहा है।

संसाधनहीन बच्चों में आ रही हीन भावना
वहीं, एक्सप‌र्ट्स का ये भी मानना है कि नेट कनेक्टीविटी और स्मार्ट फोन की चाह भी आजकल बच्चों में हीन भावना पैदा कर दे रही है। जो बच्चे संसाधनहीन हैं, वे जल्दी ही इसका शिकार हो जा रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे जीवन के कई आधारभूत संसाधनों से वंचित हैं। ऐसे में कई बार वह कम उम्र में ही गलत राह पर भी निकल पड़ते हैं।

अच्छे और बुरे दोनों पहलू
सोशल मीडिया और टीवी के अच्छे और बुरे दोनों पहलू हैं। लेकिन यह हमें तय करना होगा कि हमें कौन सा पहलू चुनना है। कम उम्र में बच्चों को मोबाइल फोन व सोशल मीडिया से दूर रखना ही बेहतर है। क्योंकि इसके जितने बेहतर परिणाम हैं उतने ही बुरे भी। इसलिए इसे लेकर पेरेंट्स को सतर्क रहना चाहिए.
- अनुजा श्रीवास्तव, प्रिंसिपल एचपी चिल्ड्रेन एकडमी

कहीं न कहीं उतना ही खतरनाक
सोशल मीडिया जितना सुविधाजनक है, कहीं न कहीं उतना ही खतरनाक भी। ऐसे में बच्चों को इससे दूर रखना ही बेहतर है। क्योंकि इसकी लत की वजह से कब बच्चों में क्या परिवर्तन आ जाएगा यह समझ पाना भी मुश्किल है। बीते दिनों सोशल मीडिया पर ब्लू व्हेल गेम के चलते न जाने कितने मासूमों की जान तक चली गई।
- विकास श्रीवास्तव, डायरेक्टर, स्प्रिंगर लोरैटो ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज