-हॉस्पिटल में आग लगने के बाद नर्सिग स्टाफ भी हो गया था फरार

-दोपहर बाद पहुंचे मेडिकल संचालक ने मरीजों को निकालकर दी दवा

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साई हॉस्पिटल में रात तीन बजे जैसे ही आग लगी तो नर्सिग स्टाफ वहां से भाग गया। इसके बाद मंडे दोपहर को हॉस्पिटल के इमरजेंसी और जनरल वार्ड में भर्ती मरीजों को दवा देने वाला भी कोई नहीं था। हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों के तीमारदार दवा का पर्चा लिए इधर-उधर भटक रहे थे। दवा लेने के लिए मेडिकल पहुंच रहे थे लेकिन मेडिकल खोलने के लिए भी कोई नहीं पहुंचा। जिससे जो मरीज जहां भर्ती था वह दवा लेने की बजाय ऊपर वाले से जान बचाने को दुआ कर रहा था।

दो बजे पहुंचा नर्सिग स्टाफ

हॉस्पिटल में एडमिट मरीजों को मंडे दोपहर तक इलाज और दवा नहीं मिली तो उन्होने परेशान होकर डॉक्टर्स और नर्सिग स्टॉफ को फोन करना शुरू कर दिया। तब कहीं जाकर हॉस्पिटल में एक-दो नर्सिंग स्टॉफ पहुंचा और मेडिकल स्टोर खुलवाने के बाद मरीजों दवाइयां आदि मुहैया कराई। तब कहीं जाकर मरीजों ने राहत की सांस ली।

अब कहां से लाएं और पैसा

एडमिट मरीजों के तीमारदारों से प्रशासन के अफसरों ने कहा कि आपके मरीज को यहां पर इलाज नहीं मिल पा रहा है तो आप डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल या फिर कहीं और इलाज करा सकते हैं। इस पर तीमारदारों ने साफ कह दिया कि उनके पास जो पैसे थे वह तो हॉस्पिटल में पहले ही जमा कर दिए। अब और पैसे कहां से लाएं जिससे दूसरे हॉस्पिटल में अपने मरीज को लेकर जाएं। दूसरे हॉस्पिटल जाने के लिए भी पैसे चाहिए।

दर्द की कहानी तीमारदाराें की जुबानी

मैंने अपने भाई हरीशंकर गुप्ता को पांच दिन पहले यहां एडमिट कराया था। मैं पलिया कलां से इलाज कराने के लिए आया हूं। रात को हॉस्पिटल में आग क्या लगी भर्ती मरीजों की परेशानी बढ़ गई। दोपहर 12 बज गए हैं लेकिन मरीजों का हाल देखने के लिए न तो कोई डॉक्टर आए और न ही दवा देने के लिए स्टाफ।

परमेश्वरी दयाल गुप्ता

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चार दिन पहले पत्नी शील कौर को एडमिट कराया था। उन्हें गुर्दा की प्रॉब्लम चल रही थी। अब कुछ फायदा हुआ तो सोचा एक-दो दिन में छुट्टी करा लूंगा। लेकिन रात में हॉस्पिटल में आग लगने के बाद भर्ती मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर्स ही नहीं पहुंच रहे। कम से कम मरीजों को दवा का इंतजाम तो होना चाहिए था।

हरविन्द्र सिंह,