- चुनाव के महासंग्राम में उमड़ा जनसैलाब, मतदाताओं ने जमकर की वोटों की बारिश

- पुलिस प्रशासन की मुस्तैदी से शांतिपूर्ण रहा चुनाव, दोबारा वोटिंग पर हुआ बवाल

BAREILLY:

आखिरकार पुलिस और प्रशासन की माह भर की मेहनत रंग लाई, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का पहला चरण शांतिपूर्ण तरीके से निपट गया। प्रथम चरण में 18 वॉर्डो में जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य की किस्मत का फैसला बैलट बॉक्स में कैद हो गया। गांवों के विकास में योगदान देने वाले कर्मठ प्रत्याशी के चुनाव के लिए पोलिंग बूथ पर सुबह से ही मतदाताओं का हुजूम उमड़ने लगा। जिसका नतीजा रहा कि देर शाम तक करीब 65 फीसदी से ज्यादा वोट डाले गए। वहीं, कुछ पोलिंग सेंटर पर खुराफातियों ने चुनावी रंग में भंग घोलने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस की मुस्तैदी से कोई बड़ा हंगामा नहीं हुआ।

वोटर घर बैठे रहे, पड़ गया वोट

नवाबगंज के टांडा सादात, अहमदाबाद, लभेड़ा व अन्य बूथों पर कुछ वोटर्स ऐसे भी रहे जिनका वोट पहले ही पड़ गया। लभेड़ा पर साकिर अहमद जब वोट डालने बूथ पर पहुंचे तो वोट पड़ जाने की सूचना पर उन्होंने मतदानकर्मियों से दोबारा चेक करने के लिए कहा। लेकिन वहां बातचीत करने पर पुलिसकर्मियों ने उन्हें खदेड़ दिया। इसके बाद वह पोलिंग सेंटर से दो सौ मीटर दूरी पर प्रत्याशियों के कैंप में पहुंचकर वोटिंग लिस्ट का मिलान करवाया। लेकिन वोट पड़ चुका था तो थक हार कर घर वापस लौट गए। वहीं, लभेड़ा पोलिंग सेंटर पर सुबह करीब 9 बजे एक महिला द्वारा दोबारा वोट डालने पर शोर मचा, लेकिन तब तक महिला वोट डालकर फरार हो चुकी थी।

आधार कार्ड से पड़े सर्वाधिक वोट

पंचायत चुनावों के प्रथम चरण में पोलिंग सेंटर पर मतदाताओं के लिए 17 प्रकार की फोटो आईडी पहचान के तौर पर लागू की गई थी। इसमें वोटर आईडी कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, बैंक की पास बुक व अन्य की बजाय लोगों को भरोसा आधार कार्ड पर ज्यादा दिखा। पोलिंग सेंटर्स पर पहुंचने वाले ज्यादातर मतदाता पहचान पुख्ता कराने के लिए आधार कार्ड साथ लेकर पहुंचे थे। जिसे दिखाने पर आरओ एआरओ ने उनकी पहचान पर मुहर लगाकर मतदान के लिए अमिट स्याही लगाई।

बीमारी नहीं दे सकी मतदाताओं को मात

विकास और गांवों की बिगड़ती दशा को सुधारने का जिम्मा भावी जनप्रतिनिधि पर होता है। ऐसे में साफ दामन और विकास का पैरोकार प्रत्याशी नेता बन सके इसके लिए मतदाताओं ने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। एक भी वोट बर्बाद न जाए इसके लिए युवाओं ने बुजुर्ग मां-बाप, दादा-दादी व अन्य परिवार के बीमारी से पीडि़त सदस्यों को अपने साधनों के जरिए पोलिंग बूथ लाकर वोट डलवाए। टांडा सादात पोलिंग बूथ पर 50 वर्षीय खातून को पिछले दिनों पैरों में फालिस मार गया था। चलने फिरने में असमर्थ होने के बाद भी वह बेटे के साथ पोलिंग बूथ पहुंची और उन्होंने वोट डाला। वहीं, कई अन्य बुजुर्ग भी परिवार के सदस्यों द्वारा मना करने के बाद भी अपने वोट को सार्थक साबित करने के लिए लाठी टेकते हुए पोलिंग बूथ पहुंचकर मतदान किया।

दोबारा वोट डालने को लेकर विवाद

नबावगंज जिला पंचायत सदस्य वॉर्ड संख्या 7 टांडा सादात पोलिंग बूथ संख्या 172 पर तीन एजेंटों के बीच जमकर बवाल हुआ। मौके पर मौजूद पुलिस ने हंगामा करने पर तीनों को हिरासत में ले लिया। सूचना पर फोर्स के साथ पहुंचे एसडीएम ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर साथ ले गए। लेकिन इससे अन्य मतदाता और एजेंट भड़क गए। काफी देर तक हंगामे का माहौल बना रहा। हुआ कुछ यूं था कि पोलिंग बूथ 175 पर खुर्शीद अहमद, मोहम्मद रजा और अतीक अहमद पोलिंग एजेंट के तौर पर तैनात थे। मोहम्मद रजा के पिता रईस बीडीसी प्रत्याशी हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक अतीक अहमद ने मोहम्मद रजा द्वारा कई महिलाओं व कम उम्र के लड़कों द्वारा अन्य के मत पर्चियों पर वोट डलवाने का विरोध किया। तो शांत कराने के लिए खुर्शीद बीच में आया तो उस पर भी फर्जीवाड़ा का आरोप मो। रजा ने लगा दिया, जिसे लेकर तीनों में तीखी बहस के बाद मारपीट होने लगी। सूचना पर पहुंची पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया।

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विकास के मुद्दे पर मारी मुहर - युवा

युवा अब नेताओं के पहनावे, लग्जरी गाडि़यों और वायदों के दीवाने नहीं रहे, उन्हें गांवों में विकास चाहिए। पहली बार चुनावों में हिस्सा ले रहे युवाओं से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि चुनावी दंगल में उसी प्रत्याशी पर मुहर लगेगी, जिन्होंने गांवों में विकास का कोई काम किया हो। जिनका कुर्ते में ईमानदारी की चमक होगी, उसी पर वह मुहर लगाएंगे। पहली बार वोट डालने की खुशी उनके चेहरों पर साफ झलक रही थी। युवा जोश में वह बहके नहीं, बल्कि उनके लहजे में बदलाव की चाहत साफ झलक रही थी। रोजगार, महंगाई, गरीबी और शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दे से वह वाकिफ हो चुके हैं।

गांवों में सुरक्षा नहीं - महिलाएं

नेताओं द्वारा महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाने के वायदे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन वास्तविकता का इन वायदों से कोई सरोकार नहीं हैं। अहमदाबाद ग्राम पंचायत में पड़ रहे वोटिंग में पहली बार वोट डालने पहुंची लड़कियों से बात की गई तो उन्होंने महिला सुरक्षा की मांग की। बताया कि गांव के प्रधान हों या अन्य राजनेता सभी अबला को सबला बनाने के वायदे करते हैं। रोजगार देकर सशक्तिकरण की बात करते हैं। लेकिन चुनाव खत्म हुआ तो फिर से वही ढपली वही राग बजने लगता है। गांव में आज भी हर दिन किसी न किसी घर में महिला प्रताडि़त हो रही हैं। उन्हें ऐसा जनप्रतिनिधि चाहिए जो घर की दहलीज के भीतर और बाहर महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा की गारंटी दे। सुरक्षा मिलेगी तो विकास के नए आयाम गढ़ने में लड़कियां भी सहभागी होंगी।

सूरत बदलती है सीरत नहीं - बुजुर्ग

वोट की कीमत क्या होती है बुजुर्गो से बेहतर कौन जानता है। अनुभव और ज्ञान के भंडार माने जाने वाले बुजुर्गो से बात की गई तो उनमें से एक 80 वर्षीय प्रजापति के मुताबिक वह दसियों बार वोट डाल चुके हैं। सुरक्षा व्यवस्था बढ़ी, हर बार नए वायदे और दावे हुए लेकिन केवल प्रत्याशियों की सूरत बदलती है उनके करतब वही रहते हैं। इसी तरह का जुमला फैजुल्लापुर की 75 वर्षीय मोहन देई ने भी बयां किया। उन्होंने बताया कि हर बार प्रत्याशी आते हैं और पुराने की कमियां गिनाते हुए खुद को अच्छा बताते हैं। हार जाते हैं तो बदला लेने की कोशिश करते हैं और जीत जाते हैं तो वह भी पुराने की तरह ही काम करने लगते हैं।

गांव खुशहाल तब होगा, जब विकास की बयार बहेगी। लेकिन जीतने के बाद नेता वायदों से मुकर जाते हैं। 'विकास होगा' यह सोचकर हर बार वोट डालने आए हैं। चेहरे बदलते हैं कर्म सभी के वही होते हैं।

नौसे खां, उम्र 80 वर्ष

जनप्रतिनिधि से जनता को बहुत उम्मीद रहती है। लेकिन रुपए कमाने के फेर में वह जनता से दगाबाजी करते हैं। वोट के जरिए निष्पक्ष और लोभरहित उम्मीदवार चुनने की कोशिश करने आया हूं।

आत्माराम, उम्र 90 वर्ष

बिना महिलाओं के सबल बने कोई विकास संभव नहीं हैं। महिलाओं को सबल बनाने की योजनाएं बगैर नेता के सहयोग से संभव नहीं है। घूंघट संस्कार है हमारा कमजोरी नहीं।

मुन्नी देवी, हाउसवाइफ

पहली बार वोट डालकर अच्छा लग रहा है। गांव के विकास में नेताओं की अहम भूमिका होती है। अपराधी छवि वाले नेता के बजाय रोजगार और शिक्षा के बढ़ावे पर जोर देने वाले प्रत्याशी पर मुहर लगाई है।

रफिउल खां, स्टूडेंट

गांव में नाली, खडं़जा और साफ सफाई न होने से गंदगी पसरी रहती है। छप्पर के घर में ही लोग आज भी गुजारा कर रहे हैं। अब गांवों में बदलाव की बयार लाने वाला ही हमारा प्रत्याशी है।

अशोक, स्टूडेंट

गांव में महिलाओं की पैरवी कोई नहीं करता है। घर की दहलीज के बाहर सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। पेरेंट्स सोचते हैं कि ससुराल में काम करने से ही नाम होगा। लेकिन इस सोच में अब बदलाव आना चाहिए।

हुमेरा खानम, स्टूडेंट

पढ़कर टीचर बनना चाहती थी ताकि लड़कियों की सोच में बदलाव ला सकूं। आए दिन लड़कियों के साथ हो रहे घिनौने कृत्य के प्रति उन्हें जागरूक कर आवाज उठाना चाहती थी, लेकिन पेरेंट्स ने पढ़ाई छुड़वा दी है।

शाजदा बी, स्टूडेंट

पोस्टर बैनर पर नहीं चला प्रशासन का हंटर

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के प्रथम चरण के मतदान से पूर्व संबंधित जिला पंचायत वॉर्डो से बैनर, पोस्टर, पम्फलेट व अन्य चुनाव प्रचार सामग्रियों को हटाने का अभियान फेल रहा। नवाबगंज, बहेड़ी, भोजीपुरा, दमखोदा ब्लॉकों में आयोजित चुनावों में कई जगहों पर प्रत्याशियों के बैनर पोस्टर उतारने में प्रशासन नाकाम रहा। वहीं, प्रत्याशियों द्वारा पोलिंग बूथ से कुछ दूरी पर बनाए गए कैंप में भी जमकर चुनाव प्रचार सामग्रियों को बांटा गया। घरों की छतों, पेड़ों, पोल हर जगह प्रत्याशियों की होर्डिग्स आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते नजर आई।