-आई नेक्स्ट की ओर से आयोजित हुआ पेरेंटिंग टुडे सेमिनार

-एक्सप‌र्ट्स ने पेरेंट्स को समझाया बच्चों का दर्द

VARANASI

भागमभाग भरी जिंदगी में पेरेंट्स के पास इतना भी वक्त नहीं निकल पा रहा है कि वह अपने बच्चों पर ध्यान दे सकें। बच्चों की पढ़ाई चलती रहे, बस इसी पर उनका फोकस होकर रह गया है। बच्चे स्कूल में क्या पढ़ रहे हैं? कहां जा रहे हैं? क्या खा-पी रहे हैं? इस तरह की क्वेरी भी करना नहीं चाहते हैं। बस उन्हें यह सुकून है कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं। पेरेंट्स की यही सोच बच्चों को बिगाड़ रही है। आई नेक्स्ट की ओर से बाल विद्यालय, राजघाट में आयोजित पेरेंटिंग टुडे सेमिनार में एक्सप‌र्ट्स का कुछ ऐसा ही कहना रहा।

बच्चों के मन को समझे पेरेंट्स

बच्चों की पेरेटिंग अब बहुत मुश्किल होती जा रही है। बच्चे बहुत स्ट्रेस में रहने लगे हैं, जिस कारण उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। जेनरेशन तेजी से आगे बढ़ रही है, नये-नये माहौल में बच्चे रमते जा रहे हैं। बच्चे डिमांडिंग नेचर के होते जा रहे हैं। पेरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों के मन को समझें, इंटरनेट के बढ़ते युग में बच्चों के मन में तरह-तरह की क्यूरियॉसिटी बढ़ रही है। एक दूसरे की नकल भी बच्चे बहुत तेजी से करते हैं, यदि पेरेंट्स उसमें बच्चों की फरमाईश पूरी नहीं करते हैं तो बच्चों को लगता है कि पेरेंट्स उन्हें मानते ही नहीं हैं। ऐसी गलत धारणा बच्चों के मन में तुरंत समाती है और पेरेंट्स कन्संट्रेट भी नहीं कर पाते हैं। इसलिए बच्चों के साइको को समझें। जैसे उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेशर करते हैं, वैसे ही उन्हें खेलने के लिए भी प्रोत्साहित करें। बच्चों के टाइमटेबल में खेलने का भी समय दर्ज कराएं। लगातार पढ़ने से भी बच्चे ऊबने लगते हैं।

डॉ। मधुलिका शर्मा

साइकोलॉजिस्ट

ज्यादा खाने से बच्चा स्वस्थ नहीं होता

मौजूदा दौर में बच्चे घर का खाना कम और बाहर के खाने पर बहुत ज्यादा प्रेशर करते हैं। उन्हें फास्ट फूड में बर्गर, चाऊमीन, पाश्ता, पिज्जा आदि तरह-तरह के फूड पसंद आते हैं, बच्चे चाहते हैं कि उन्हें उनके मन लायक खाना मिले। अब इसमें पेरेंट्स को बहुत ही समझदारी दिखानी होती है। पेरेंट्स जानते हुए भी कि फास्ट फूड हेल्थ को नुकसान पहुंचाते हैं, बच्चों की जिद पर फास्ट फूड परोस देते हैं। बच्चों के टिफिन में नूडल्स, बर्गर देते हैं। ऐसे तो बच्चों को समझाना और भी कठिन हो जाता है। बच्चे एकाएक नहीं मानते हैं उन्हें धीरे-धीरे और बहुत ही प्यार से मनाना पड़ता है। यदि आप बर्गर, नूडल्स या पिज्जा देना ही चाहती हैं तो आप आटा मिक्स करके पिज्जा, नूडल्स या बर्गर बना सकती हैं। ऐसे में टेस्ट थोड़ा जरूर चेंज होगा और धीरे-धीरे करके बच्चे फास्टफूड से तौबा कर लेंगे। और हां, ज्यादा खाना खिलाने भी से कोई बच्चा स्वस्थ नहीं होता है। पेरेंट्स अक्सर ऐसा करते हैं कि बच्चों का मन नहीं होता है तब पर भी जबरदस्ती खाना खिलाते हैं। बच्चों को दूध, फ्रूट, दलिया के अलावा भुना हुआ अनाज और भीगा अनाज बहुत पोषण देता है। इससे बच्चों का डाइजेशन बिल्कुल फिट रहता है।

गोल्डी अरोड़ा

डायटीशियन

बच्चा ही इंसान का पिता होता है

'बच्चे मन के सच्चे' यही कहा गया है, बच्चे अपने मन के बहुत सच्चे होते हैं। उन्हें जिस चीज की जरूरत होती है यदि वह मिल जाए तो फिर उनका मन इधर-उधर कहीं भटकता नहीं है, उसी में रमा होता है। बच्चा ही इंसान का पिता होता है। बाल्य अवस्था में गुण दोष होते हैं। बच्चों की गलतियों पर बहुत ज्यादा उन्हें डांटने फटकारने की भूल नहीं करनी चाहिए। इससे उसका मन व्यथित होने के साथ ही गलत कार्यो की तरफ और भी भागता है। गलतियां होने पर उसे बहुत शांत स्वर में समझाएं। ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि वह गलती पर गलती करते जाए और आप समझाते ही रह जाएं। बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें सही गलत का फर्क समझाएं। हालांकि बच्चों को संस्कार-गुण यह सब अधिकतर स्कूल में ही बच्चों को सिखाया जाता है। इसलिए टीचर्स का फर्ज बनता है कि बच्चों के सही गलत पर बराबर नजर रखें। शुरुआती दौर में बच्चों की गलतियों पर यदि पर्दा डालने की कोशिश की जाएगी तो उनका मनोबल बढ़ता ही जाएगा।

प्रो। रमाशंकर त्रिपाठी

सोशियोलॉजिस्ट

बच्चों का होमवर्क खुद न करें

अक्सर पेरेंट्स यह सोचते हैं कि उनका बच्चा कोचिंग करेगा तो पढ़ने में और भी स्ट्रांग होगा। जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है। स्कूल में बच्चों को जो होमवर्क दिया जाता है यदि ईमानदारी से बच्चा होमवर्क करने लगे तो फिर उसे किसी कोचिंग की जरूरत ही नहीं पडे़गी। बहुत से पेरेंट्स अपने बच्चों को स्ट्रेस से बचाने या फिर उसे स्कूल में मिलने वाली डांट से बचाने के लिए खुद ही होमवर्क करके भेजते हैं। पेरेंट्स की यही धारणा उनके बच्चों को पढ़ाई में पीछे रखती है। बच्चों को घर में ही खुद पढ़ाएं, उनके होमवर्क में हेल्प जरूर करें लेकिन ऐसा नहीं है कि खुद पूरी कॉपी उतार दें। इस समय बच्चे मोबाइल के बहुत दीवाने हैं। बैग में मोबाइल लेकर क्लास में पहुंचने लगे हैं। पेरेंट्स को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। मोबाइल से बिल्कुल दूर रखें, बहुत देर तक टीवी भी नहीं देखने दें।

स्नेहलता पांडेय

प्रिंसिपल

बाल विद्यालय

ऐसा जरूर करें

-बच्चों को मोबाइल से रखें दूर

-रात तक टीवी नहीं देखने दें

-गलतियों पर डांटे नहीं बल्कि प्यार से समझाएं

-बच्चों के मन को समझें

-फास्टफूड से धीरे-धीरे उन्हें दूर करें

-बच्चों का होमवर्क करें चेक, खुद उनका होमवर्क नहीं करें

-ज्यादा खाना भी नहीं खिलाएं

-बहुत देर तक पढ़ने के लिए भी फोर्स नहीं करें

-बच्चों के टाइमटेबल में खेलकूद का समय भी करें दर्ज

-बच्चों की हर फरमाईश भी पूरी नहीं करें

-बच्चों के डिमांडिंग नेचर पर कंट्रोल लगाएं

-बीच-बीच में बच्चों को घुमाने के लिए अच्छे प्लेस पर ले जाएं