काम में बटाओ हाथ
रिसर्च में इस बात को पाया गया है कि जो पेरेंट्स अपने बच्चों को रोजाना कुछ काम करने को देते हैं उन बच्चों के अंदर कॉन्फिडेंस, टीम स्पिरिट, काम को हैंडल करने की क्षमता और दूसरो को समझने की क्वालिटी डेवेलेप होती है। बच्चों को छोटी सी उम्र से काम में संलग्न करने से वो दिमागी तौर पर सशक्त होते हैं।
उम्मीद रखना
स्टडी के अनुसार जो पेरेंट्स अपने बच्चों से बचपन से जायज उम्मीद रखते हैं और वो उन उम्मीदों को अपने बच्चों के साथ शेयर करते हैं तो ऐसे बच्चे महत्वाकांशी हो जाते हैं। अपने मां-बाप के सपने को पूरा करने के लिए वो बड़े होकर मेहनत करते हैं और जीवन में सक्सेस हासिल करते हैं।
मैनेज करना सिखाते हैं
बचपन से ही जिन बच्चों के पेरेंट्स उनको गुस्सा काबू करना और हर स्थिति में जीने की स्िकल्स सिखाते हैं वो बच्चे बड़े होकर कामयाबी की सीढ़िया चढ़ते हैं।
हार गए तो क्या हुआ
हारना-जीतना लाइफ का एक पार्ट होता है। सक्सेसफुल पेरेंटिंग उसे कहते हैं जिसमें मां-बाप अपने बच्चे को ये समझाते है कि हारना सक्सेस का एक पार्ट है और इससे कभी घबराना नहीं चाहिए।
सोशल स्किल्स डेवेलप होती हैं
जो पेरेंट्स अपने बच्चे को लोगों के संग घुलने-मिलने कि शिक्षा देते हैं, वो बच्चे बड़े होकर इस कॉम्पेटिटिव दुनिया में भी अपने कलीग से काम निकलवाने में माहिर होते हैं एवं वो दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करते हैं।
बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करते हैं
स्टडी में बताया गया है कि पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ 3 से 11 साल की एज में ज्यादा टाइम बिताना चाहिए क्योंकि ये ही वो टाइम होता है जब बच्चों में संस्कार और समझ डेवेलप होती है।
हिम्मत डेवेलप कराते हैं
अपने बच्चों को हमेशा प्रेरीत करना चाहिए। उनमें ये क्वालिटी डेवेलप करनी चाहिए की जो चीज उनको मुश्किल लग रही हैं उनसे भागे नहीं बल्िक उनका डट कर सामना करें और उससे जीते। ऐसा करने से बच्चों के अंदर फाइटिंग स्किल्स डेवेल्प होती हैं।
आत्मनिर्भता है जरूरी
पेरेंट्स को अपने बच्चो को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। सक्सेसेफुल बच्चों के पेरेंट्स अपने बच्चों के संग यही करते हैं। वो उनकी देखभाल तो करते हैं लेकिन स्पून फीडिंग नहीं करते मतलब की हर काम में मदद के लिए आगे नहीं बढ़ते हैं। वो बच्चों को खुद से काम करने के लिए उत्साहित करते हैं।
दूर की हो नजर
पेरेंट्स को अपने बच्चों की ऐसी परवरिश करनी चाहिए जिससे वो शॉर्ट टर्म प्रॉब्लम सॉल्वर नहीं बल्कि लॉन्ग टर्म प्रॉब्लम सॉल्वर हो। इसका मतलब की वो दूरदर्शी बने और उनके अंदर ये सोच ना डेवेलप हो कि कि अभी समस्या संभाल लेते हैं बाद की बाद में देखी जाएगी।
तीन 'F' है जरूरी, यानि की firm fair और friendly
बच्चों की सक्सेस सक्सेसफुल पेरेन्टिंग पर आधारित होती हैं। तीन शब्द परवरीश करते समय अहम होते हैं। एक हैं थोड़ा सा कठोर होना यानी की अगर आपका बच्चा गलती कर रहा है तो उसको उसके लिए छोटी ही सही मगर सजा दें। दूसरा हैं न्यायपूर्ण होना यानी जरूरत से ज्यादा कठोर होने की जरूरत नहीं है और तीसरा हैं फ्रेंडली होना। फ्रेंडली होने का मतलब है कि हर बात पर सजा नहीं देनी चाहिए। कभी-कभी बात करके बच्चों को समझाना चाहिए और बताना चाहिए कि क्या गलत हैं और क्या सही।
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