- करप्शन को बना परिवार कल्याण विभाग होगा खत्म

- मायावती सरकार के अहम फैसले को पलटने की तैयारी में योगी सरकार

- बसपा सरकार में चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग

- दो विभाग बनने के बाद हुआ हजारों करोड़ का एनआरएचएम घोटाला

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW :बसपा सरकार में परिवार कल्याण के नाम से नया विभाग बनाने के फैसले को योगी सरकार पलटने जा रही है। इस विभाग के जन्म के साथ ही सूबे का सबसे बड़ा एनआरएचएम घोटाला अस्तित्व में आया था। बसपा सरकार के इस फैसले ने स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार का ऐसा दीमक लगाया जिससे आज तक उबरा नहीं जा सका है। अब योगी सरकार फिर से चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण को आपस में मर्ज करने की तैयारी में है। इसके साथ ही सूबे के स्वास्थ्य महकमे में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। जल्द ही इस बाबत प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

एनआरएचएम घोटाले की वजह

दरअसल बसपा सरकार में केंद्र द्वारा एनआरएचएम योजना के लिए दिए जाने वाले बजट की बंदरबांट के लिए ही यह फैसला लिया गया था। इसके बाद जिलों में सीएमओ चिकित्सा स्वास्थ्य और सीएमओ परिवार कल्याण के दो पद हो गये थे। साथ ही मोटी रकम लेकर जिलों में डीपीओ तैनात किए गये थे। लखनऊ में हुई दो सीएमओ बीपी सिंह और वीके आर्या की हत्या की अहम वजह भी यह फैसला ही थी। वहीं दोनों सीएमओ की हत्या के मुख्य आरोपी डॉ। वाईएस सचान की भी लखनऊ जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। बाद में जब सीबीआई ने एनआरएचएम घोटाले की जांच शुरू तो हर चार्जशीट में उसने इस फैसले पर सवाल उठाए और इसे घोटाले की अहम वजह करार दिया। दरअसल दो विभाग होने की वजह से एनआरएचएम से जुड़ी योजनाओं में जमकर कमीशनबाजी शुरू हो गयी थी। सीबीआई ने अपनी जांच में माना था कि विभाग का बंटवारा और डीपीओ की तैनाती गलत तरीके से हुई थी। यही वजह रही कि बसपा सरकार में इन दोनों विभागों के मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा और अनंत कुमार मिश्रा उर्फ अंटू मिश्रा आज भी सीबीआई जांच के घेरे में हैं।

मायावती से भी हुई थी पूछताछ

ध्यान रहे कि सीबीआई ने बसपा सुप्रीमो और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती से पूछताछ के दौरान भी दो विभाग बनाने की वजह पूछी थी जिसका संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका था। दरअसल एनआरएचएम की गाइडलाइन को धता बताकर बसपा सरकार ने दो विभाग बनाए थे। इनमें परिवार कल्याण विभाग का जिम्मा बाबू सिंह कुशवाहा के जिम्मे था जिन्होंने डीपीओ की तैनाती में जमकर काली कमाई की। दरअसल इस फैसले के बाद चिकित्सा स्वास्थ्य के मुकाबले सीएमओ परिवार कल्याण को ज्यादा अधिकार सौंप दिए गये थे या यूं कहें कि काली कमाई करने का लाइसेंस दे दिया गया था। इन सीएमओ और डीपीओ के जरिए ही चहेती कंपनियों को मनमानी दरों पर दवा सप्लाई के काम दिए गये। सीबीआई ने इस मामले में बाबू सिंह के खिलाफ कई चार्जशीट दाखिल की चुकी है। साथ ही कई डीपीओ, सीएमओ, दवा सप्लायरों को जेल भी भेजा जा चुका है।

आज तक नहीं मिला छुटकारा

इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच होने के बाद भी चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग में भ्रष्टाचार पर काबू नहीं पाया जा सका है। सीबीआई सूत्रों की माने तो अब भी जांच एजेंसी के पास दोनों महकमों के भ्रष्टाचार से जुड़ी तमाम शिकायतें आ रही हैं। इस मामले की जांच हाईकोर्ट के आदेश पर करने की वजह से सीबीआई इन शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाती है।

फैक्ट फाइल

- 2007 में बनी बसपा सरकार ने चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग बनाए

- 5000 हजार करोड़ के एनआरएचएम घोटाले की असली वजह बना यह फैसला

- 100 डीपीओ और सीएमओ नियम विरुद्ध परिवार कल्याण विभाग में तैनात किए गये

- 74 एफआईआर दर्ज कर सीबीआई ने एनआरएचएम घोटाले की जांच की

- 14 केस ईडी ने एनआरएचएम घोटाले के तहत दर्ज किए

कोट

योगी सरकार सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए दृढ़संकल्प है। इसके तहत बसपा सरकार में बनाए गये परिवार कल्याण विभाग को स्वास्थ्य विभाग में दोबारा मर्ज करने की तैयारी है। इसका प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।

- सिद्धार्थनाथ सिंह

राज्य सरकार के प्रवक्ता एवं स्वास्थ्य मंत्री