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LUCKNOW: राजधानी से महज बीस किमी दूर है गांव परसऊ। मगर इस गांव को देख कर लगता है कि यह गांव शहर से पूरी तरह कटा है। यहां बुनियादी सुविधा के नाम पर चंद पक्के मकान और कुछ बिजली के कनेक्शन भर हैं। जिन 42 घरों में बिजली रोशन होती है, वहां भी कनेक्शन का तार लकड़ी के पोल (बांस) से जोड़ कर लगाया गया है। हर जरूरत के लिए गांव के लोगों को चार से पांच किमी पैदल जाना पड़ता है। फिर चाहे वह शिक्षा हो, इलाज हो या फिर बैकिंग सुविधा। न यहां पोस्ट ऑफिस है और न ही कोई आंगनबाड़ी। फिर पंचायत चुनाव में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है। प्रत्याशी और उनके समर्थकों के नारेबाजी से पूरा गांव गूंज रहा है। हालांकि यहां पर रहने वाले आम लोगों की 'आवाज' उस गूंज के बीच पूरी तरह दबी हुई है।

गांव परसऊ

आबादी 2000

वोटर 1800

बुनियादी सुविधा -

1. केवल प्राथमिक विद्यालय

2. पूरे गांव में बिजली के मात्र 42 कनेक्शन

बुनियादी सुविधा की गांव से दूरी

बैंक - 9 किमी

हॉस्पिटल - 3 किमी

पोस्ट ऑफिस - 4 किमी

रोड की भी हालत खस्ता

सरकारी सुविधा से महरूम

सरकार की चलाई जा रही पेंशन योजना चाहे वह समाजवादी पेंशन हो या फिर 60 साल पेंशन। किसी भी योजना से यहां के बुजुर्ग महरूम है। उन्हें यह भी नहीं मालूम कि पेंशन के लिए किससे और कहां आवेदन करना है। 90 प्रतिशत गांव के लोगों का परिवार खेती और किसानी के सहारे चल रहा है। 10 प्रतिशत मजबूत परिवार गांव छोड़कर शहर में बस गए हैं।

पानी न मिलने से बर्बाद हो गई फसल

कहने को परसऊ गांव से चंद दूरी पर सरकारी नहर है। नहर में कई वर्षो से पानी नहीं है। सरकार की तालाब योजना और बोरिंग योजना का लाभ भी गांव के लोगों को नहीं मिल रहा है। धान और गेंहू की फसल पूरी तरह चौपट हो गई है। प्राइवेट बोरिंग के सहारे लोग खेत सींच रहे हैं, जिसका खर्च बहुत ज्यादा आता है। ऐसे में यहां के लोगों को खेती से फायदा ज्यादा नहीं होता है।

समीकरण में हावी लोधी वोट वैंक

परसऊ गांव की राजनीति में लोधी वोट बैंक सबसे हावी है। परसऊ गांव में 80 प्रतिशत लोधी और 20 प्रतिशत गौतम वोट बैंक है। यहीं नहीं जिला पंचायत चुनाव के लिए एक महिला कैंडीडेट भी चुनावी मैदान में है। यहां माउथ पब्लिसिटी के साथ-साथ पोस्टर वार भी जमकर चल रहा है। प्रत्याशी हर रोज जुलूस निकाल रहे हैं। जबकि गांव के लोगों का रुझान जातिगत समीकरण के आधार पर देखा जा रहा है।

न गांव का विकास, न ग्राम प्रधान का

परसऊ गांव में उल्टी गंगा बह रही है। यहां न तो गांव का विकास हुआ है और न ही और इलाकों की तरह ग्राम प्रधान का। परसऊ के पड़ोसी गांव सिंहपुर में रहने वाले ग्राम प्रधान संतराम प्रजापति का विकास केवल इतना ही हुआ है कि पिछले कई वर्षो के बाद उनका आधा पक्का और आधा कच्चा मकान जरूर बन गया है। इस गांव से चार किमी दूर स्थित पहाड़पुर गांव पूरी तरह विकसित है। जबकि चार किमी के अंतर में परसऊ गांव में इंटरनेट तो दूर, यहां स्मार्टफोन अभी तक नहीं पहुंच सका है। पूरे गांव में केवल एक युवक है जिसके पास स्मार्ट फोन है और वह व्हाट्सएप यूज करता है। इस गांव में मात्र एक छात्रा ज्योति है जिसे सरकारी लैपटॉप मिला है। हालांकि वह लैपटॉप भी यूज में नहीं है।

क्या बोले ग्रामीण

परसऊ गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर बिजली कनेक्शन होता है, लेकिन यहां खंभे नहीं लगे हैं। गांव से चंद कदमों की दूरी पर नहर है, लेकिन नहर में कई वर्षो से पानी नहीं है। बोरिंग सुविधा है लेकिन वह भी पूरी तरह ठप है। फसलें बर्बाद हो रही हैं। यहां किसानों की समस्या कोई सुनने वाला नहीं है।

- अवधेश कुमार रावत

हमारे गांव में प्राथमिक विद्यालय तो है, लेकिन इंटर कॉलेज नहीं है। बच्चों के पढ़ने के लिए चार से पांच किमी दूर जाना पड़ता है। पहाड़पुर तक जाने के लिए रोड की हालत भी खस्ता है। पैदल चलने लायक रोड तक नहीं है। आए दिन लोग हादसों का शिकार होकर घायल होते हैं।

- गंगाराम

हर बार की तरह इस बार भी जिला और क्षेत्र पंचायत के लिए प्रत्याशी संपर्क करने आते हैं। वादे भी करते हैं। जबकि गांव की जमीनी हकीकत यह है कि इलाज से लेकर शिक्षा तक के लिए गांव के लोगों को दूर दराज जाना पड़ता है। बुनियादी सुविधा के नाम पर कुछ घर और बिजली का कनेक्शन के अलावा कुछ नहीं है।

- छोटे लाल

गांव में कई वृद्ध महिला और पुरुष है। सरकार की कई योजनाएं उनके लिए चल रही है लेकिन हमारे गांव के बुजुर्गो का इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा। विधायक हो या फिर सांसद कभी झांकने तक नहीं आते है। बीडीसी मेम्बर तो मजबूरी में आते है क्यों कि वह आस-पास के गांव के है। हालांकि उनके हाथ भी बहुत मजबूत नहीं है।

- क्रांति वर्मा

गांव के कई बच्चे हाईस्कूल तक ही पढ़े हैं। उच्च शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है। स्कूल और इंटर तक की पढ़ाई के लिए चार किमी दूर जाना पड़ता है। जबकि बीए की पढ़ाई करने लखनऊ जाना पड़ता है। सुविधा न होने के चलते कई लोगों की पढ़ाई अधूरी रह गई है।

- ज्योति,

परसऊ गांव की छात्रा

गांव में न तो आंगन बाड़ी केंद्र है और न ही टीकाकरण केंद्र। गर्भवती महिलाओं को चार किमी दूर टीका लगवाने के लिए पैदल जाना पड़ता है। इलाज की सुविधा न होने से गांव में बड़ी समस्या का सामान करना पड़ता है। चुनाव के समय तो बहुत वादे किए जाते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता है।

- किरन

सरकार पक्के मकान और शौचालय निर्माण की कई योजना चल रही है। परसऊ गांव में किसी भी योजना का लाभ यहां के लोगों को नहीं मिला है। प्रधान ने मकान दिलाने का वादा किया था। कई बार भाग दौड़ के बाद भी न तो आज तक मकान मिला और न ही कोई सुविधा।

- रूप चंद्र रैदास