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PATNA : हमारा शहर भी हमारे पुरखों की तरह ही है। इस शहर का एक लंबा और स्वर्णिम इतिहास रहा है, जो हमें अपने शहर की समृद्धि की याद दिलाती है। मगध से अजीमाबाद, पाटलिपुत्र और पटना तक के इतिहास की पहली कड़ी शनिवार को पितृपक्ष के पहले दिन आपने पढ़ा। आई नेक्स्ट पेश कर रहा है इसकी दूसरी कड़ी जिसमें आप आपने शहर के इतिहास और इसके बदलते स्वरूप से रू-ब-रू हो सकेंगे

मैं गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित हूं, जो आज बिहार की राजधानी है। एक किवदंती है कि- 'वर्षो पूर्व यहां गुलाब (पाटली का फूल) की खेती होती थी। गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम रखा गया.लोककथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता था। उसने अपनी रानी पाटली के लिए इस नगर का निर्माण कराया था। इसी कारण मेरा नाम पाटलिग्राम पड़ा जो बाद में पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाने लगा.' मैं राजा-महाराजाओं की पहली पसंद हुआ करता था।

हालांकि अभी भी मैं लोगों का आकर्षण का केंद्र हूं। सूबे की बदलती तस्वीर ने मुझे और ज्यादा संवार दिया है। अफगान सरदार शेरशाह सूरी ने हुमायूं से बगावत कर गंगा नदी के किनारे मुझे बसाया था। इतिहास के अनुसार, सम्राट अजातशत्रु ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया और बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां साम्राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनाई। वैसे भगवान बुद्ध की भविष्यवाणी से ही पाटलिपुत्र नगर की स्थापना हुई थी। उन्होंने अपनी ज्ञानभूमि मगध को छोड़कर जब वो अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु के लिए प्रस्थान करने लगे तब उन्होंने पाटलिपुत्र के गांगा के तट पर खड़े होकर अपनी साधना एवं ज्ञानभूमि राजगृह एवं गया की ओर मुखातिब होकर मगध की पावन धरती से अंतिम विदाई ली थी। नदी के किनारे जिस पत्थर पर खड़े होकर उन्होंने मगधभूमि को अंतिम रूप से निहारा था, उस पर वे अपना पद चिन्ह छोड़ गए थे जो शता?िदयों तक लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। बाद में सम्राट अशोक ने कुम्हरार स्थित अपने शाही महल के सामने ही भगवान बुद्ध के चरण चिन्ह वाले एक विशाल मंदिर की स्थापना की थी।

मैं था 'अशोक' की पहली पसंद

राजा अशोक की राजधानी भी मैं (पाटलिपुत्र) ही था। यही वजह है कि इतने सारे राजाओं और ब्रिटिश हुकूमत की छाप मुझ पर पड़ी। मैं आज दो हिस्सों में बंटा हुआ हूं। पुराने व ऐतिहासिक शहर को आज आप पटना सिटी के नाम से जानते हैं और पटना तो मेरा ही एक अंश है। जो बिल्कुल नया है। विभिन्न शैलियों में निर्मित भवनों, धर्मिक स्थलों एवं आजादी के बाद के विख्यात निर्माणों से मैं पूरी तरह से पटा हुआ हूं। साथ ही इस शहर से सूबे के पर्यटक स्थलों का भ्रमण भी आसानी से किया जा सकता है।

कला के क्षेत्र में हूं विश्वविख्यात

वैसे तो पूरा भारत कला के क्षेत्र में विश्वविख्यात है पर मेरा स्थान उसमें सबसे उपर है। लगभग दो हजारा वर्ष पूर्व जब मौर्य और गुप्तवंशियों का शासन रहा, उसमें मेरी कला सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती थी। मैने ही चित्रकारी और इसकी विभिन्न शैलियों को जन्म दिया था। यह शैली यहीं उत्पन्न होकर प्रस्फुटित हुई। वैसे मुगलों के शासनकाल में चित्रकारों का जमघट दिल्ली में हुआ

करता था। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब उन्हें दिल्ली छोड़ना पड़ा और वो दर बदर भटकने लगे थे तो मैंने ही उन्हें पनाह दिया था।

बुद्ध ने की थी भविष्यवाणी

हर्यक वंश के महान शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहां स्थापित की थी।

सोन नदी आज से दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुंआ से आगे गंगा मे मिलती थी।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अंतिम दिन यहीं गुजरे थे।

बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा पर शहर को बाढ़ और आग से खतरा बना रहेगा।

मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता का केन्द्र बन गया।

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़गानिस्तान तक फैला था।

मौर्य काल में पाटलिपुत्र के अधिकांश राजमहल लकडि़यों से बने थे, जिसे अशोक ने शिलाओं में त?दील कर दिया।

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा।

क्ख् वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला।

शेरशाह सूरी ने इस नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की थी। जो नहीं हो पाया।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मुहम्मद अज़ीम के नाम पर क्70ब् में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया।

बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना भ्ब्ब् ई। पू। में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक राजा माना जाता है। इस शहर से मेरा काफी पुराना नाता रहा है। ये मेरी जन्म भूमि और कर्म भूमि दोनों है। मैं जब पढ़ता था तब आज जहां मौर्या होटल है वहां पहले पीयू के वीसी केके। दत्ता का घर हुआ करता था। जब भी कोई प्रदर्शन होता तो सभी लड़के उनके आवास पर पहुंच जाते थे। तब के पटना और अब के पटना में बड़ा बदलाव आ गया है।

- नरेन्द्र जयसवाल, रिटायर्ड बैंक मैनेजर