- पैर में लगी रॉड को निकलवाने के इंतजार में

- डॉक्टर्स के उदासीन रवैये का शिकार

आगरा। एसएन मेडिकल कॉलेज में संवेदनाओं की मौत हो चुकी है। डॉक्टर्स हो या नर्सिग स्टाफ। मरीजों की बीमारी से उन्हें कोई सराकोर नहीं है। फिर चाहे तीमारदार चाहे जितना गिड़गिड़ाता रहे। कोई सुनवाई नहीं होती। न सिर्फ स्टाफ बल्कि अफसर तक मरीज और तीमारदारों की मुश्किल को नहीं समझते हैं। इसकी बानगी शनिवार को उस वक्त देखने को मिली, जब एक 12 वर्षीय किशोर के मां-बाप पिछले दस दिनों से अस्पताल में उसके पैर की रॉड लगवाने के लिए भटकते मिले। ऐसा नहीं कि अस्पताल में ऑपरेशन नहीं हो रहे, लेकिन किशोर की जांघ में पड़ी रॉड को निकालने की फुरसत किसी सर्जन के पास नहीं है।

रॉड के लिए सिर्फ तारीख पर तारीख

कासगंज से आए 12 साल के अखिलेश के खेलते वक्त दाई जांघ की हड्डी में फ्रैक्चर आ गया था। इलाज के लिए उसे एससएन में ले जाया गया, जहां हड्डी को जोड़ने के लिए रॉड लगाई गई। समय के साथ हड्डी जुड़ गई तो 15 सितंबर को परिजनों ने फिर उसे एसएसन में रॉड निकलवाने के लिए यहां डॉक्टर से संपर्क किया। यहां कंसल्टेंट डॉक्टर ने उन्हें शाम तक रॉड निकालने की बात कही और उसे नई सर्जीकल बिल्डिंग में रेफर कर दिया।

सीएमएस ने भी दिया कोरा आश्वासन

सर्जीकल वार्ड में देर शाम डॉक्टर नहीं आए तो परिजनों ने डॉक्टर से संपर्क किया। उन्हें जवाब मिला कि अब मंगलवार को ऑपरेशन होगा। दूर-दराज से आए परिजनों ने जल्दी काम होने के लिए अस्पताल के सीएमएस डॉ। एससी जैन से संपर्क किया। इस पर सीएमएस ने भी जल्दी ऑपरेशन के लिए निर्देश दिए। परिजनों का आरोप है कि ऊपर से आए निर्देश से गुस्साए डॉक्टर ने अब इस केस को टालना शुरू कर दिया है। दूसरे मरीजों के इसी तरह के ऑपरेशंस हो रहे हैं लेकिन लिस्ट में अखिलेश का नाम नहीं आ रहा है।

न दवा, न ड्रिप, बस बेड पर लेटा रहता है

अभी हालत यह है कि वार्ड में सिर्फ अखिलेश ही ऐसा मरीज है जिसे न तो दवाइयां लेनी पड़ रही है और न ही कोई ड्रिप लग रही है। अखिलेश पूरे दिन बेड पर लेटे वार्ड की चहलकदमी देखता रहाता है। ऑपेरशन के लिए डॉक्टरर्स द्वारा मंगवाई बेहोशी की दवा और कुछ दवाइयां हैं, जो खुद इस्तेमाल में आने को इंतजार कर रही हैं।