- मार्केट में 80 फीसद है ब्रांडेड दवाओं का हिस्सा, 10 से 20 परसेंट के बीच ही जेनरिक
- डॉक्टर्स और फार्मा कंपनीज की सांठ-गांठ से फल-फूल रहा है कारोबार
- मोनोपोली बेस्ड सब्सक्रिब्शन और अवेयरनेस की कमी जेनरिक को ढकेल रही पीछे
GORAKHPUR: भलोटिया मार्केट, जहां से प्रदेश सरकार के खजाने में रोजाना 10 लाख रुपए जाता है। लाखों मरीजों की जान बचाने वाली 'संजीवनी' यहीं से ले जाई जाती है। रोजाना करीब दो करोड़ का कारोबार देने वाली इस मार्केट में ब्रांडेड के साथ ही जेनरिक कंपनीज की भरमार है। मगर करोबार की बात करें तो जहां पेटेंट और ब्रांडेड कंपनीज की सेल में 80 फीसद हिस्सेदारी है, वहीं जेनरिक दवाओं की सेल का आंकड़ा महज 10 से 20 फीसद के आसपास ही है। सेंट्रल गवर्नमेंट के जेनरिक दवा लिखे जाने संबंधी निर्देश के बाद अब मार्केट के साथ ही लोगों के बीच कंफ्यूजन की कंडीशन पैदा हो गई है। व्यापारी जहां कंफ्यूजन में हैं कि वह कौन सी दवाएं रखें, वहीं डॉक्टर्स की लिखी दवा कहां मिलेगी, मरीज इसको लेकर परेशान हैं।
सांठ-गांठ से बढ़ रही है ठाठ
मार्केट में सस्ती जेनरिक दवाओं के साथ ही महंगी पेटेंट मेडिसीन भी अवेलबल हैं। टोटल दवा का कारोबार इन दिनों डॉक्टर्स की नजर-ए-इनायत पर चल रहा है। साहब की कलम जिस ओर डोल जाए, उस कंपनी की चांदी। इसको देखते हुए दवा कंपनीज ने भी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स की फौज खड़ी कर दी, जो डॉक्टर्स को कनविंस कर अपनी कंपनी की दवा लिखवाने की कोशिशों में जुटे रहे हैं। जिसने बेहतर तरीके से डॉक्टर्स को कनविंस कर दिया, उस कंपनी की दवा डॉक्टर्स के पर्चे के साथ ही आसपास के मेडिकल स्टोर पर भी नजर आने लगेगी। ऑटोमेटिक थोक मार्केट में भी इसकी डिमांड बढ़ जाएगी।
अवेयरनेस की कमी बढ़ा रही कारोबार
एक तरफ जहां फार्मा कंपनीज और डॉक्टर्स के बीच सांठ-गांठ की वजह से जेनरिक का बाजार पीछे चला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ब्रांडेड दवाओं की ज्यादा डिमांड के पीछे लोगों में मेडिसीन अवेयरनेस की भारी कमी भी एक बड़ी वजह है। पर्टिकुलर गोरखपुर की बात करें तो यहां ज्यादातर मरीज ग्रामीण इलाकों से आते हैं। इसमें से 99 फीसद को इस बात से कोई मतलब नहीं रहता है कि डॉक्टर्स जो दवाएं लिख रहे हैं, उसका सॉल्ट क्या है और किस कंपनी की दवा उन्हें सस्ती मिल सकती है। बल्कि डॉक्टर साहब ने जो दवा का नाम पर्चे पर लिख दिया, उन्हें उसी कंपनी की दवा चाहिए। भले ही उसका दाम कुछ भी हो। अगर मेडिकल स्टोर में वह दवा मौजूद नहीं है, तो वह दूसरी दुकानों का रुख कर लेते हैं।
मोनोपोली बेस्ड सब्सक्रिब्शन भी वजह
एक तरफ जहां डॉक्टर्स और फार्मा कंपनीज के बीच सांठ-गांठ है। वहीं दूसरी ओर कुछ चुनिंदा डॉक्टर्स ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी कंपनी ही खोल रखी है और कुछ जेनरिक दवाओं को भी पेटेंट कराकर ब्रांड के तौर पर सेल करना शुरू कर दिया है। ऐसे डॉक्टर्स की लिखी दवाएं, उनकी डिस्पेंसरी या हॉस्पिटल पर मौजूद मेडिकल स्टोर पर ही मौजूद रहेंगी या फिर किसी पार्टिकुलर दुकान पर ही मिलेंगे। बाकी पेशेंट उस दवा के लिए कहीं भी भटकता रहे, उसे दवा नहीं मिल सकती है।
बॉक्स -
सेल्फ डिस्पेंसरी ने बचाई है जेनरिक
सर्दी, खांसी, जुकाम और बुखार जैसे जनरल मर्ज के लिए दवा लेनी है तो लोग बजाय किसी डॉक्टर के पास जाने के, मेडिकल स्टोर को ही प्रिफरेंस देते हैं। फॉर्मासिस्ट और मेडिकल स्टोर संचालक जेनरिक दवाएं दे देते हैं, जिससे पेशेंट्स को सस्ते में बेहतर दवा मिल जाती है और उससे उन्हें रिलीफ भी मिल जाती है। ऐसे में जेनरिक दवाओं का अस्तित्व अभी जिंदा है। वहीं कुछ डॉक्टर्स जिन्होंने अपनी डिस्पेंसरी में देखने के साथ ही दवाएं भी देते हैं, वह भी जेनरिक दवाओं को प्रिफरेंस देते हैं।
कॉलिंग
सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। इसमें उन्हें थोड़ी और मेहनत करनी होगी। गोरखपुर में सब्सक्रिब्शन बेस्ड सेल है इसलिए जो दवा पर्चे पर लिखी होती है, मरीज वही चाहता है। उसे अगर कोई दूसरी दवा दी जाए, तो वह उसे नहीं लेता। इसके लिए उन्हें अवेयरनेस प्रोग्राम चलाने होंगे, जिससे लोग दवाओं और साल्ट के प्रति अवेयर हो सकें।
- आलोक चौरसिया, महामंत्री, दवा विक्रेता समिति
जेनरिक दवाओं को लागू करना सरकार का अच्छा फैसला है। मगर जेनरिक दवाओं में जो साल्ट की मात्रा दी गई है, वह उतनी ही है, उसके लिए सरकार को अपने लेवल पर सख्त निगरानी करवानी पड़ेगी। वरना अगर दवाओं के इस्तेमाल के बाद भी अगर पेशेंट क्योर नहीं होता है, तो इसकी जिम्मेदारी तो डॉक्टर्स के सिर आएगी, जबकि दोष दवा का होगा।
- योगेंद्रनाथ दुबे, अध्यक्ष, दवा विक्रेता समिति
यह अच्छा प्रपोजल है। मगर सरकार को चाहिए कि बजाय यह तय करने के, कि डॉक्टर्स जेनरिक दवाएं ही लिखें ड्रग्स के दाम कम कर दिए जाएं तो लोगों को काफी फायदा होगा। जेनरिक दवाओं में साल्ट की ऑथेंटिसिटी फिक्स नहीं होती, जबकि पेटेंट दवाओं में जितनी क्वांटिटी लिखी होती है, वह बिल्कुल फिक्स होती है।
- रोहित बंका, थोक दवा व्यापारी
सरकार ने काफी साल्ट के रेट डीपीसीओ के अंतर्गत तय कर दिए हैं। उन्हें चाहिए कि वह पेटेंट दवाओं के लिए रेट स्लैब तय कर दे, चाहे जिस भी कंपनी की दवा हो, वह साल्ट उसी रेट में मिले, तो इससे मरीजों बेहतर प्रॉडक्ट भी मिलेगा और किसी को नुकसान भी नहीं होगा।
- राजेश तुल्सयान, थोक दवा व्यापारी
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फैक्ट फाइल -
थोक दवा मंडी - भलोटिया मार्केट
नंबर ऑफ कॉम्प्लेक्स - 12
शॉप की तादाद - लगभग 600
डेली बिजनेस - 2-3 करोड़
टोटल टर्नअप ऑफ पिपल - 5000
दवा की कंपनी - 2000
फुटकर दवा की दुकानें - लगभग 3000