- डायबिटीज के साथ होने वाली दूसरी बीमारियां भी कानपुराइट्स में खूब बढ़ रही

- नौकरीपेशा युवाओं में डायबिटीज व हाईपर टेंशन की प्रॉब्लम सबसे ज्यादा

- गर्भावस्था के समय हर 100 में से 12 महिलाओं में डायग्नोस हो रही डायबिटीज

- डायबिटिक पेशेंट्स में आंखों में होने वाली रेटिनोपैथी की बीमारी भी खतरनाक तरीके से बढ़ रही

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KANPUR: कानपुराइट्स खाने पीने में कोई संकोच नहीं करते। यहां के स्ट्रीट फूड की अपनी खासियत है, लेकिन यही स्ट्रीट फूड और कानपुराइट्स की लाइफस्टाइल उन्हें तेजी से डायबिटीज की गिरफ्त में ला रही है। मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन डिपार्टमेंट में हुए एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि शहर में फ्भ् से ब्0 साल की उम्र के लोगों में फ्भ् फीसदी तक लोग टाइप-क् डायबिटीज का शिकार हैं। रिसर्च में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि इस उम्र के ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों में यह शिकायतें मिली हैं।

वर्किंग क्लास पर रिसर्च

मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन डिपार्टमेंट के जेआर ने सिटी में वर्किंग क्लास यूथ पर डायबिटीज के इफेक्ट को लेकर रिसर्च किया। इसमें से ज्यादातर की उम्र फ्0 से ब्0 साल के बीच थी। भ्0 लोगों की जांच में पता चला कि उसमें से फ्0 फीसदी लोगों को डायबिटीज थी। वहीं ब्0 फीसदी लोगों में हाईपर टेंशन की प्रॉब्लम भी पाई गई व ख्0 फीसदी लोगों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या सामने आई।

फील्ड जॉब करने वाले युवाओं में ज्यादा प्रॉब्लम

जिन भ्0 लोगों में यह सर्वे किया गया, उसमें से फील्ड जॉब और इन हाउस काम करने वाले नौकरी पेशा लोग शामिल थे। इसमें से फील्ड जॉब करने वाले लोगों में हाई बीपी व हाईपर टेंशन की प्रॉब्लम ज्यादा थी। वहीं इन हाउस एक जगह पर काम करने वाले युवाओं में डायबिटीज की प्रॉब्लम ज्यादा निकली। इसमें भी ज्यादातर टाइप वन डायबिटीज के पेशेंट निकले।

लाइफस्टाइल और खानपान बड़ी वजह

डॉ। ईशा ने बताया कि रिसर्च के दौरान पता चला कि युवाओं में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की सबसे बड़ी वजह लाइफस्टाइल और असंतुलित खानपान ही थी। बिजी वर्किंग शेडयूल व एक ही जगह पर बैठ कर काम करने वाले युवाओं में ब्लड शुगर का लेवल ज्यादा पाया गया।

होने वाले बच्चे को भी खतरा

डॉ। ईशा ने बताया कि गर्भावस्था के समय महिलाओं को होने वाली डायबिटीज के मामले भी काफी संख्या में बढ़े हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ओवर ईटिंग या फिर मोटापा है। डॉ। ब्रिज मोहन ने बताया कि महिलाओं में गर्भावस्था के म् महीने में डायबिटीज होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। ऐसी स्थिति में पैदा होने वाले बच्चे में भी ख्0 साल की उम्र में ही डायबिटीज के साथ हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि शहर में उनके सामने आने वाले मामलों में हर क्00 महिलाओं में से क्0 से क्ख् महिलाओं में टाइप -ख् डायबिटीज की प्रॉब्लम निकलती है। ऐसी स्थिति में पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे डॉट सिग्ड्रोम से ग्रसित होते हैं।

ख्भ् फीसदी बढ़ी रेटिनोपैथी

संडे को कानपुर ऑप्थेलिमिक सोसाइटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में रिसर्च पेपर पेश करते हुए डॉ। एसी अग्रवाल ने बताया कि डायबिटीक पेशेंट्स में रेटिनोपैथी की प्रॉब्लम खतरनाक तौर पर बढ़ रही है। जिन लोगों में क्0 साल से डायबिटीज हैं, उसमें से ख्भ् फीसदी को यह बीमारी हो रही है। वहीं फ्0 साल की डायबिटीज वाले भ्0 फीसदी पेशेंट्स में यह शिकायत है। जिसमें उन्हें देखते समय कुछ साफ नजर नहीं आता। इस प्रॉब्लम को खत्म नहीं किया जा सकता सिर्फ कंट्रोल किया जा सकता है।