- शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के सत्यापन में लग गए सात वर्ष

- भुखमरी के कगार पर है लिपिक का परिवार

PATNA/ BUXAR : सरकारी महकमे की व्यवस्था किस कदर लचर है, इसे करीब से देखना हो तो मिलिए शैलेन्द्र प्रसाद सिंह से। दो दिन पहले प्रखंड कार्यालय के लिपिक पद से रिटायर्ड होने के बाद टेबलों की खाक छान रहे हैं। नौकरी में योगदान से लेकर रिटायर होने के दिन तक वेतन के दर्शन नहीं हुए। पैसे-पैसे के मुहताज बने शैलेन्द्र सिंह वेतन के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

अनौपचारिक शिक्षा से आए थे नौकरी में

अनौपचारिक शिक्षा के सुपरवाइ•ार से समायोजन के बाद दिसंबर-ख्0क्क् में शैलेन्द्र प्रसाद सिंह ने जिला में योगदान किया। क्7 जनवरी-क्ख् को उनकी पो¨स्टग केसठ प्रखंड में लिपिक पद पर हुई। क्8 जून क्भ् को उनका तबादला डुमरांव प्रखंड में हुआ। नियमित रूप से सेवा की तथा अपने दामन को हमेशा पाक साफ रखा। बावजूद, नौकरी के इस दौरान उन्हें वेतन नसीब नहीं हुआ। जिला स्थापना का तुर्रा यह कि शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के सत्यापन के बाद ही वेतन भुगतान होगा। प्रमाण पत्रों के सत्यापन की सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी वेतन भुगतान नहीं हुआ। और शैलेन्द्र सिंह ख्8 फरवरी ख्0क्7 को अपने पद से रिटायर कर गए। जब तक नौकरी रही घर के खर्चे से नमक रोटी चलाते रहे। रिटायर्ड के बाद अब वेतन भुगतान के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं।

साथियों पर लगाया धोखा का आरोप

वेतन के लिए इस दर से उस दर तक भटक रहे रिटायर लिपिक शैलेन्द्र सिंह का कहना है कि जिला स्थापना के बाबुओं के कारण इतने दिनों तक वेतन का भुगतान नहीं हो पाया। उनका कहना है कि प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए समय पर सारे कागजात उपलब्ध करा दिया गया था। साथ के अन्य कर्मियों को वेतन लाभ मिल रहा है। स्थापना के लिपिक चाहते तो उन्हें भी वेतन भुगतान हो गया रहता। बहरहाल, वेतन की आस लिए रिटायर्ड कर्मी पैसों के लिए काफी परेशान हैं।