चाहे जितनी जोर की लगी हो, पहले सोचना पड़ता है कैसे बचेगी आबरू

पीसीबी हास्टल की लाईब्रेरी में छात्र पढ़ रहे 1970 की किताबें

<चाहे जितनी जोर की लगी हो, पहले सोचना पड़ता है कैसे बचेगी आबरू

पीसीबी हास्टल की लाईब्रेरी में छात्र पढ़ रहे क्970 की किताबें

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: पीएम नरेन्द्र मोदी शौचालय बनवाने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन, सेंट्रल यूनिवर्सिटी इलाहाबाद के हास्टल्स का नजारा चौकाने वाला है। यहां छात्रों को शौच लगी हो तो सबसे ज्यादा शौचालय को लेकर ही टेंशन होती है। ज्यादातर शौचालयों की हालत दयनीय है। कहीं शौचालय में नल नहीं है तो छात्रों को डिब्बा में पानी लेकर जाना पड़ता है, तो कहीं शौचालय का दरवाजा ही गायब है। छात्रों को मजबूरन पर्दे के पीछे बैठकर हलका होना पड़ रहा है।

जनाब यह तो हर रोज की कहानी है

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट अपनी कैंपेन के तहत पीसीबी हास्टल पहुंचा तो चौंक गया। एक छात्र शौचालय के बाहर खड़े होकर दरवाजा पकड़े हुये था। टोकने छात्र ने इशारा किया और समझाने की कोशिश की अन्दर कोई है। इसलिये करीब न आयें। थोड़ी देर इंतजार के बाद जब छात्र ने उखड़े हुये दरवाजे को छोड़ा और शौचालय के अंदर बैठा हुआ शख्स बाहर आया तो उसने बताया जनाब यहां का हाल तो यही है।

झांक-तांक का लगा रहता है डर

छात्र ने बताया कि हास्टल में मौजूद शौचालयों में कई के दरवाजे उखड़े हैं। किसी को जोर की लगी हो तो सोचना पड़ता है कि किस वाले में जाया जाये। छात्र ने कहा कि चाहे जितनी भी जोर की लगी हो, लेकिन उससे पहले ख्याल अपनी इज्जत को बचाये रखने का ही आता है। इनका कहने का मतलब था कि किसी न किसी को बाहर खड़ा करना पड़ता है। जिससे वो किसी को फ्रेश होने तक करीब न आने दे और अचानक होने वाली झांक तांक से बचा जा सके।

किसी काम का नहीं बैडमिंटन कोर्ट

पीसीबी हास्टल के हालातों को छात्रों की जुबानी समझने की कोशिश की गई तो छात्रों ने बताया कि लास्ट इयर हास्टल के क्00 वर्ष पूरे होने पर शताब्दी समारोह मनाया गया था। उसी समय हास्टल को कुछ चमकाने की कोशिश की गई। बताया कि हास्टल में ख्0 लाख के खर्च पर बैडमिंटन कोर्ट बनवाया गया जो आज किसी काम का नहीं है। लाइब्रेरी है, लेकिन उसमें किताबें वर्ष क्970 की हैं। पांच कम्प्यूटर हैं। जिनमें तीन खराब हैं। मैगजीन आती है। लेकिन वह भी एक दो माह पुरानी ही आती है।

पीसीबी हास्टल का परिचय

वर्ष क्9क्म् में हास्टल की स्थापना की गई

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में हास्टल को हर वर्ष अच्छी सफलता मिलती है

हास्टल में रहने वाले पूर्व अन्त:वासी देश में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे हैं। इनमें भारत सरकार के सीएजी शशिकांत शर्मा, पूर्व डीजीपी देवराज नागर एवं एसी शर्मा, यूपी में बिजली विभाग के शीर्ष पद पर रहे एपी मिश्रा, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेएस वर्मा, बीएचयू के वीसी प्रो। जीसी त्रिपाठी, यूपीआरटीओयू के वीसी प्रो। एमपी दुबे आदि यहीं के अन्त:वासी रहे हैं।

दुष्यंत कुमार और श्री लाल शुक्ला जैसे हिन्दी जगत के बड़े नाम भी हास्टल के ही पूर्व अन्त:वासी रहे।

यहां देखने में बेहतरीन कॉमन रूम है। लेकिन सीट पर भी धूल की परत जमी रहती है। यहां एक डिस्प्ले कैबिनेट है, जिसे हास्टल की उपलब्धियों को दर्शाने के लिये लगाया गया था। यह भी टूटा-फूटा पड़ा है।

आयुष शुक्ला

हमारे यहां क्08 कमरों में ख्क्ख् छात्र रहते हैं। पीने के पानी के लिये चार आरओ में तीन खराब हैं। हास्टल में लगी पानी की टंकियों में गंदगी के चलते 70 फीसदी अन्त:वासियों को पेट की बीमारी है। बरसात में सबसे ज्यादा छात्र बीमार पड़ते हैं।

रामबाबू

पिछले तीन सालों में अन्त:वासियों को यूनिवर्सिटी की तरफ से मेज कुर्सी नहीं मिली। छात्र अपने जुगाड़ से ही इन्हें खरीदते हैं। हास्टल में लगाये गये बिजली के उपकरण भी खराब हैं। लाइब्रेरी की हालत भी काफी खराब है।

सिद्धार्थ सिंह

हास्टल के डेवलपमेंट के लिये आने वाला पैसा वापस जा रहा है। यूनिवर्सिटी के पास हास्टल में फेसेलिटी डेवलप करने का कोई प्लान नहीं है। हास्टल का क्या बजट है और इसे कैसे खर्च किया जाये? इसकी ऑफिसर्स को कोई चिंता नहीं है।

सरोज

यही हाल रहा तो एक दिन हास्टल्स की हालत प्राथमिक विद्यालयों से भी बदतर होगी। हम उसी ओर बढ़ रहे हैं। एक- एक हास्टल्स की दशा सुधारने में यूनिवर्सिटी को कई साल खर्च करने पड़ेंगे। सिर्फ खंडहर को पेंट करवा देने से काम नहीं चलेगा।

बुद्धसेन सिंह