यह सर्दी दिल ही नहीं दिमाग को भी कर रहा बीमार

सीजनल अफेक्टिव डिसार्डर के बढ़ रहे मरीज

मंडलीय अस्पताल में रोजाना पहुंच रहे 10 से 12 मरीज

अगर आपके आसपास कोई बड़ी-बड़ी बातें कर रहा हो, हिंसक हो जाता हो या फिर आत्महत्या करने जैसे बातें करता हो तो वह सैड यानी सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर मेनिया से पीडि़त हो सकता है। दरअसल लगातार कोहरे और शीत लहर के कारण जहां कमजोर दिल वालों का दिल प्रभावित हो रहा है। वहंी कुछ लोग सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर मेनिया का शिकार हो रहे हैं। कबीर चौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं।

सरकारी अस्पताल के अलावा प्राइवेट अस्पतालों में भी हर रोज मेनिया के 6 से 7 मरीज पहुंच रहे हैं। चिकित्सकों के मुताबिक सर्दी में ऐसे मामले बढ़ जाते हैं।

रोजाना 10 से 12 मरीज

इस मौसम में सैड के मामलों की स्थिति यह है कि मंडलीय अस्पताल के मनो रोग ओपीडी में रोजाना 10 से 12 मरीज जांच के लिए पहुंच रहे हैं। जानकारों की माने तो कुछ साल पहले तक लोग इसे आदत मानकर छोड़ देते थे। लेकिन अब लोग अस्पताल आकर बीमारी का समाधान ढूंढ रहे हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति में बातचीत के दौरान उसके स्वभाव में अचानक बदलाव आने से वह बढ़-चढ़कर बात करने लगता है। हालांकि इस दिक्कत को सामान्य दवाओं से दूर किया जा सकता है।

-दिमाग में हो रही यह दिक्कत

चिकित्सकों की माने तो मौसम के बदलाव व लगातार कोहरे और धूप न निकलने से दिमाग में मौजूद रासायनिक तत्व सिरोटोनिन व नोरेपीनेफ्रीन में गड़बड़ी होने लगती है। इसे सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर भी कहते है। कई बार मौसम के बदलाव से पीनियल ग्रंथी से निर्मित मेलाटोनिन हार्मोन या तो बढ़ जाता है या फिर इसकी असामान्यता मूड डिसऑर्डर का कारण बनती है। गर्मी की तुलना में सर्दी में यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती हैं। ऐसे में आराम व काम के बीच बढ़ता तनाव डिप्रेशन का रूप लेकर खत्म होते-होते व्यक्ति को मेनिया का रोगी बना देता है।

लक्षण

अगर कोई व्यक्ति क्षमता से अधिक खर्च कर रहा हो

बात-बात पर शेरो-शायरी

बात-बात में बड़ी-बड़ी डींगें हांकना

बेमतलब नई-नई योजनाएं बनाना

नए व रंग-बिरंगे कपड़ों के प्रति आकर्षित होना

अचानक खुश होना या नाराज हो जाना

वर्जन

मौसम में बदलाव के कारण लोगों में मेनिया के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इस बीमारी में विचारों व व्यवहार में स्वयं का नियंत्रण कम हो जाता है जिससे व्यक्ति की इच्छा ज्यादा बोलने व बड़ी-बड़ी बातें करने की होती है।

डॉ। रविन्द्र कुशवाहा, मनोचिकित्सक, मंडलीय अस्पताल