RANCHI: चतरा के पचरा व संघमित्रा कोल माइंस से अब पेट्रोलियम पदार्थ निकाला जाएगा। यह कन्वर्ट कोल टू केमिकल टेक्नोलॉजी के तहत संभव होगा। इस तकनीक के तहत काम करने वाली कंपनियों को कोल इंडिया ने झारखंड में आने का निमंत्रण दिया है। दरअसल, विदेश से पेट्रोलियम पदार्थो की आपूर्ति बंद होने या दाम एकाएक बढ़ने की स्थिति से निपटने के लिए सरकार अल्टरनेट पेट्रोलियम के उत्पादन पर काम कर रही है।

कोयला की जगह लिक्विड निकलेगा

सीसीएल के एक अधिकारी ने बताया कि पेट्रोलियम का अल्टरनेट प्रोडक्शन करने के लिए सीसीएल अपनी खदान से कोयला की जगह लिक्विड निकालेगा, जिसका उपयोग पेट्रोलियम के रूप में किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पहले खदान से जो पोड़ा कोयला निकलता था, अब उसकी जगह केमिकल निकलेगा। यह एक नई टेक्नोलॉजी डेवलप की गई है। इससे आने वाले दिनों में पेट्रोल के अल्टरनेट प्रोडक्शन में मदद मिलेगी।

सीआइएल कर रहा काम

कोयला से तेल निकालने की योजना पर कोल इंडिया द्वारा काम किया जा रहा है। भारत सरकार के नीति आयोग के दिशा-निर्देश पर कोयला मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहा है। सीआईएल द्वारा इसकी शुरुआत सीसीएल के चतरा जिले के माइनिंग क्षेत्र से किया जा रहा है।

भारत तीसरा देश बनेगा

दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश होगा, जहां इस तरह कोयला से तेल बनाने की टेक्नोलॉजी के तहत काम किया जाएगा। सीसीएल के अधिक ारी ने बताया कि कोयला से तेल बनाने की दो तरह की तकनीक है। पहली प्रत्यक्ष तकनीक, जिसमें उच्च तापमान में हाइड्रोजन गैस की मौजूदगी में कोयला से सीधे तेल बनाया जाता है, दूसरी अप्रत्यक्ष तकनीक के जरिए कोयला से पहले गैस फि र तेल बनाया जाता है।

सिम्फर में डेवलप हुई नई तकनीक

कोयला से तेल निकालने की टेक्नोलॉजी भी झारखंड में ही डेवलप की गई है। धनबाद स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च(सीआइएमएफआर)के साइंटिस्ट ने कोयला से पेट्रोलियम निकालने की यह स्वदेशी तकनीक डेवलप की है। सिंफ र के डिगवाडीह स्थित कैंपस में पायलट प्रोजेक्ट के तहत तेल बनना शुरू हो चुका है। इसमें खास तरह के उत्प्रेरक का इस्तेमाल किया गया है। अभी दुनिया में सिर्फ दक्षिण अफ्र का के ससोल कारखाने में रोजाना करीब ब्0 हजार बैरल कोयला तेल बनाया जा रहा है, जिसकी हिस्सेदारी वहां की कुल ऊर्जा खपत की ब्0 फीसदी है। वहां दो टन कोयले से एक बैरल तेल निकलता है।

फ्.भ् टन कोयले से एक बैरल तेल

सिंफ र के पायलट प्रोजेक्ट में फ्.भ् टन कोयले से एक बैरल तेल बन रहा है। दक्षिण अफ्रीका में जहां उच्च गुणवत्ता वाले महंगे कोयले का इस्तेमाल होता है, वहीं अपने यहां बहुत ही खराब व सस्ते कोयले का उपयोग हो रहा है। अपने देश में इस तरह के कोयले के अधिक होने के कारण यह नई तकनीक अपनाई जा रही है। इसकी लागत 8भ् डॉलर करीब साढ़े पांच हजार रुपए प्रति बैरल आ रही है।