साहित्य सम्मेलन में फणीश्वरनाथ रेणु की जयंती पर कथा-कवि गोष्ठी का आयोजन

PATNA: हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यदि किसी एक कथा-शिल्पी पर दृष्टि टिकती है, तो वे हैं 'मैला आंचल' के अमर कृतिकार फणीश्वरनाथ रेणु। हिन्दी साहित्य में, आंचलिक स्वर को मुखर करने वाले रेणु जी का स्थान अद्वितीय है। रेणु जी एक सच्चे और अच्छे लेखक थे, जिसने जैसा देखा, वैसा लिखा। समाज की समस्याओं की पहचान की और उसे अपने साहित्य में प्रश्नों के रूप में उठाया और उत्तर नहीं मिलने पर सड़क पर संघर्ष के लिए भी उतर पड़े। रेणु साहित्य में अंचलिक स्वर के अप्रतिम ध्वज-वाहक हैं। उनकी स्मृति हमें सदैव नवीन उर्जा से भरती है।

क्रांति की ज्वाला धधकती रही

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा रेणु जयंती पर आयोजित समारोह और कथा-कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह उद्गार व्यक्त किए। डॉ सुलभ ने कहा कि रेणु जी के अंतर में एक सतत क्रांति की ज्वाला धधकती रही। उनका संपूर्ण जीवन अंतहीन-संघर्ष और क्रांति की मशाल का पर्याय बन रहा। उनकी रचनाओं में ग्रामीणों की पीड़ा और क्रांति के सूत्र साथ-साथ दिखाई देते हैं। 'परती परिकथा', 'कितने चौराहे', 'पहली क्रांति कथा', 'नेपाली क्रांति कथा' जैसी रचनाओं की प्रेरणा का स्त्रोत भी वही थी। उनकी एक लोकप्रिय कहानी 'मारे गये गुलफ़ाम' पर 'तीसरी कसम' नाम से एक फि़ल्म भी बनी, जो बहुत लोकप्रिय हुई।

आंचलिक साहित्य की बड़ी क्षति

अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि रेणु जी आंचलिक उपन्यास के प्रवर्तक थे। उनके निधन को आंचलिक साहित्य की बड़ी क्षति माना गया था। उनका उपन्यास 'मैला आँचल' में आज भी नयापन मिलता है। सम्मेलन के कला मंत्री और प्रसिद्ध नृत्याचार्य डा नागेन्द्र प्रसाद मोहिनी ने रेणु जी के साथ अपने संस्मरणों की चर्चा करते हुए, उन्हे अत्यंत संवेदन शील लेखक बताया। इस अवसर पर आयोजित कथा-गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार बलभद्र कल्याण ने 'स्वार्थ और समाज' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। आचार्य पांचु राम, नरेन्द्र देव, शैलेन्द्र झा उन्मन तथा ओम प्रकाश वर्मा ने लघु कथाएं पढीं।

बुढउ के मुंह में न दांत

कवि-गोष्ठी में होली का रंग साफ दिखा। अधिकांश कवियों ने रास-रंग और वसंत को ही केन्द्र में रख कर रचनाएं पढीं। कवि शैलेन्द्र झा 'उन्मन' ने 'अईले फागुन के मस्त महीनमा, अब तक अइले न हमरो सजनमा' गीत पढ़कर अपनी विरह वेदना को अभिव्यक्ति दी। कवि राज कुमार प्रेमी ने इन पंक्तियों में कि- बढउ के मुंह में न दांत, पूड़ी- कचौड़ी कैसे तोडि़हें, होली में वृद्धों की मनोदशा का वर्णन किया.अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में डा सुलभ ने एक विरह गीत, न साजन बीता फागुन, भाये न मन को वसंत ! सखी री ! भाये न मन को वसंत, का सस्वर पाठ किया। कवयित्री सागरिका राय, कवि बच्चा ठाकुर, घमंडी राम, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, शुभचन्द्र सिन्हा, पं गणेश झा, रवीन्द्र नाथ चौधरी, हृदय नारायण झा, विकास राज, संजीव कुमार आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रवक्ता अजय कुमार ने किया।