- 2009 के पहले के पीएचडी धारक भी बन सकेंगे असिस्टेंट प्रोफेसर

- प्रदेश सरकार ने नेट अनिवार्यता खत्म करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किया लागू

- गोरखपुर के भी 473 पीएचडी धारकों को मिलेगी राहत

GORAKHPUR: सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2009 के पहले के पीएचडी धारकों के लिए नेट अनिवार्यता खत्म करने के फैसले को प्रदेश सरकार ने यूपी में लागू कर दिया है। ये निर्णय आते ही पीएचडी धारकों में खुशी की लहर है। ये लोग एक बार फिर नौकरी मिलने की आस पर खुश हैं। इस फैसले से गोरखपुर में ही करीब 473 पीएचडी धारकों के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का रास्ता साफ हो गया है। बता दें, 2009 से पहले के पीएचडी धारकों को कोर्ट के एक फैसले के बाद असिस्टेंटप्रोफेसर की नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दे दिया गया था। उन्हें कॉलेज और यूनिवर्सिटी में टीचर बनने के लिए नेट क्वालिफाई करना अनिवार्य कर दिया गया, जिसका खूब विरोध भी हुआ।

सिर्फ था डॉक्टर का तमगा

कोर्ट के उस फैसले के कारण इन पीएचडी धारकों के लिए नौकरी की आस लगभग खत्म हो चुकी थी। तमाम मशक्कत से हासिल की गई डिग्री के बाद नेट क्वालिफाई करना इनके लिए किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं था। इन लोगों ने अपने नाम के आगे महज डॉक्टर के तमगे से ही संतोष कर लिया था। असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नेट अनिवार्य होने की वजह से अधिकांश पीएचडी धारक या तो अपना प्रोफेशन बदल चुके थे या फिर प्राइवेट कॉलेजेज में पढ़ाने को मजबूर थे। इनमें बहुत से लोगों को तो अपने रिसर्च करने पर भी अफसोस होने लगा था। लेकिन प्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद सिर्फ गोरखपुर में ही नहीं बल्कि प्रदेश भर के पीएचडी धारकों को एक बार फिर नौकरी की उम्मीद जगी है।

कोट्स

नौकरी के लिए नेट अनिवार्य होने से प्रोफेसर बनने की आस लगभग खत्म हो चुकी थी। पीएचडी की डिग्री हासिल कर प्राइमरी या माध्यमिक स्कूल में पढ़ाना भी नागवार लगता था। सरकार के इस फैसले के बाद यह उम्मीद है कि जल्द ही हम लोगों का सपना साकार हो सकेगा।

- डॉ। भूपेंद्र सिंह, पीएचडी होल्डर

वर्षो की मेहनत कर मिली पीएचडी की डिग्री के बाद भी हम लोग अभी तक असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए अयोग्य थे। नौकरी पाना तो सिर्फ एक सपना सा लगता था। नेट की अनिवार्यता खत्म होने से पीएचडी किए हुए बेरोजगारों को भी नौकरी पाने का मौका मिल सकेगा।

- डॉ। अमृता गुप्ता, पीएचडी होल्डर