1994 में उनके जीवन पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फिल्म बनाई जिसे पूरे यूरोप में खासी लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर काफी विवादों में भी रही।
22 लोगों ने बालात्कार करके उसे 'डाकू' बनने पर किया था मजबूर
साल 1983 में इंदिरा गांधी सरकार ने उसके सामने आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव रखा जो उन्होंने मान लिया। आत्मसमर्पण के लिए भी फूलन ने अपनी शर्तें रखी थी। इसमें उसे या उसके किसी साथी को मृत्युदंड नहीं दिया जाए, उसे व उसके गिरोह के लोगों को 8 साल से ज्यादा सजा नहीं दिए जाने की शर्त थी। सरकार ने फूलन की सभी शर्ते मान लीं।
11 सालों तक फूलन को बिना मुकदमे के जेल में रखा गया। इसके बाद साल 1994 में आई मुलायम सरकार ने फूलन को रिहा किया और दो साल बाद 1996 में फूलन ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और वो जीतकर संसद पहुंच गईं।
फूलन देवी का जन्म यूपी के कानपुर के पास स्थित गांव पूरवा में मल्लाह परिवार में 1963 में हुआ था। इसी गांव से फूलन की कहानी भी शुरू होती है। जहां वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी। (फोटो फिल्म 'बैंडिट क्वीन' से ली गई है)
जब फूलन 11 साल की हुई, तो उसके चचेरे भाई माया दीन ने उसको गांव से बाहर निकालने के लिए उसकी शादी पुट्टी लाल नाम के आदमी से करवा दी।
2001 में केवल 38 साल की उम्र में दिल्ली में घर के सामने ही फूलन देवी की हत्या कर दी गई। खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या कर दी। राणा ने फूलन के सिर में गोली मारी थी जबकि उसके साथी विक्की ने उनके पेट में कई गोलियां उतार दी थीं।
उस समय फूलन 15-16 साल की थी जब कुछ दबंगों ने घर में ही उसके मां-बाप के सामने उसके साथ गैंगरेप किया। बावजूद फूलन के तेवर कमजोर नहीं पड़े।
उसके बाद गांव के दबंगों ने एक दस्यु गैंग से कहकर फूलन का अपहरण करवा दिया। बस यहीं से शुरू हुई फूलन के डकैत बनने की कहानी। डकैतों ने भी फूलन के साथ कई बार दुष्कर्म किया। इसके बाद वहीं पर फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई और इन दोनों ने मिलकर अलग डाकूओं का गिरोह बनाया।
डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्लाह से ही रही। माना जाता है कि पुलिस मुठभेड में विक्रम की मौत के बाद फूलन टूट गई।
14 फरवरी 1981 को जिस घटना ने फूलन का नाम दुनिया की जुबान पर ला दिया वह बहमई में 22 ठाकुरों की हत्या थी। फूलन ने लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों को गोली मार दी थी। फूलन देवी का कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।
फूलन के पति ने शादी के तुरंत बाद ही उसका रेप किया और उसे प्रताड़ित करने लगा। परेशान होकर फूलन पति का घर छोड़कर वापस मां-बाप के पास आकर रहने लगी। यहां उसने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। यहीं से लोगों को फूलन के विद्रोही स्वभाव के नजारे देखने को मिलने लगे।