जरा इन देशभक्तों को देखिये. ये किस कदर रोडवेज बस से चिपके हैं. ऐसा लग रहा है कि जैसे ये किसी मैग्नेट से चिपके हों.
मिलिए जान हथेली पर रखकर देशसेवा करने वाले इन जुनूनी लोगों से...
सेना में भर्ती के लिये जद्दोजहद करते इन कैंडीडेट्स से रोडवेज बसेज भी नहीं रहीं अछूती.
रेलवे भी रहा हाउसफुल. यूं तो भारतीय रेलवे पहले से ही नो स्पेस के नाम से बदनाम है, ऊपर से यह तस्वीर हकीकत की पोल खोल रही है.
जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है. एक बार डगमगाने पर जिंदगी भी दूसरा मौका नहीं देती. यह तस्वीर भी कुछ ऐसा ही बोल रही है. सेना भर्ती के दौरान अपने संतुलन क्षमता का परिचय देते कैंडीडेट्स.
इन दिनों देश में 56 इंच का सीना काफी ट्रेंड कर रहा है. इसपर अब तक तमाम लतीफे बन चुके हैं जो लोगों को गुदगदा रहे हैं. लेकिन इस तस्वीर को देख कर ऐसा कुछ भी मत समझिएगा क्योंकि यहां सीने का माप इसलिये लिया जा रहा है ताकि सेना में भर्ती के लिए जरूरी मानकों पर कैंडीडेट्स को परखा जा सके.
अगर बाजुओं में ताकत नहीं होगी तो दुश्मनों से लोहा कैसे लेंगे भला? इसलिये यह एक्टिवटी बहुत जरूरी है. देखना है जोर कितना बाजु-ए-सैनिक में है.
कहते हैं कि डर के आगे जीत है. इस तस्वीर पर यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है. हालांकि, सेना में जगह बनाने को आतुर ये कैंडीडेट्स काफी बड़ा रिस्क ले रहे हैं जो कि उनकी जान को भी जोखिम में डाल सकता है.
हम फौजी इस देश की धड़कन हैं, हर दिल का हम प्यार मां की तड़पन हैं. किसी लेखक ने क्या खूबसूरत पंक्तियों से फौजियों के कर्ज को परिभाषित करने का अदना सा प्रयास किया है. वाकई वी आर प्राउड ऑफ अवर आर्मी.
बनारस में आर्मी भर्ती प्रक्रिया के पहले दिन यह एक ऐसी तस्वीर है जिसे देखना शायद ही कोई पसंद करे. अब हम इसे सरकार की नाकामी कहें या फिर रेलवे के प्रति जिम्मेदारों के उदासीन रवैये को रिस्पांसिबल ठहरायें, यह आप खुद ही तय कर लीजिए. लेकिन एक बात तो साफ है कि यह आजाद भारत की एक ऐसी बुजुर्ग तस्वीर है जिसमें वक्त के साथ-साथ चेहरे तो बदलते हैं लेकिन तस्वीर की सिलवटें फिर भी नहीं जाती !
चलते-चलते एक झलक देख ही लीजिए सेना में शामिल होने के जज्बे से लबरेज इन जाबांजों की. ये देश के लिए हर चुनौती को चुनौती देने के लिए तैयार रहते हैं.