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In pictures : भारत के 5 पॉपुलर गुरु-शिष्‍य की जोड़ी

5 photos    |   Updated Date: Sat, 05 Sep 2015 13:47:46 (IST)
1/ 5In pictures : भारत के 5 पॉपुलर गुरु-शिष्‍य की जोड़ी
In pictures : भारत के 5 पॉपुलर गुरु-शिष्‍य की जोड़ी

द्रोणाचार्य और अर्जुन :-महाभारत के सबसे चर्चित पात्र अर्जुन और द्रोणाचार्य को कोई नहीं भूल सकता। इस गुरु-शिष्‍य की जोड़ी ने वो कारनामा कर दिखाया जो एक इतिहास बन गया। द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के राजगुरु थे। द्रोणाचार्य ने इन्‍हें बचपन से ही शिक्षा देने शुरु कर दिया था। वैसे द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों में कोई भेद नहीं किया लेकिन फिर भी अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्‍य बन गए। अर्जुन सबसे अच्‍छे धनुर्धर माने जाते थे। जब महाभारत का युद्ध शुरु हुआ, तो अर्जुन उस समय संकट में फंस गए जब उनके गुरु द्रोणाचार्य उनके विरोधी सेना में खड़े थे। हालांकि तब श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन की इस दुविधा का समाधान निकाला और पांडव युद्ध जीत गए। लेकिन अर्जुन और द्रोणाचार्य की गुरु-शिष्‍य की जोड़ी विश्‍व विख्‍यात हो गई।

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चाणक्‍य और चंद्रगुप्‍त मौर्य :-प्राचीन भारत में 322 ईसापूर्व मौर्य राजवंश हुआ करता था। जिसने 138 सालों तक भारत में राज्‍य किया। इसकी स्‍थापना का श्रेय मौर्य वंश के पहले शासक चंद्रगुप्‍त मौर्य और उनके मंत्री कौटिल्‍य यानी चाणक्‍य को जाता है। जिन्‍होंने नंद वंश के सम्राट घनानंद को पराजित करके मौर्य राज बनाया था। यह जोड़ी भी गुरु-शिष्‍य के रूप में प्रसिद्ध थी। चाणक्‍य को सबसे बुद्धिमान व्‍यक्‍ित माना जाता था। उनके द्वारा रचित अर्थशास्‍त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि महान ग्रंथ विश्‍व विख्‍यात हैं। चंद्रगुप्‍त ने चाणक्‍य से काफी कुछ सीखा, वैसे चाणक्‍य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी से कुटिया में रहते थे।

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दादाभाई नौरोजी और महात्‍मा गांधी :-देश की आजादी में महान योगदान देने वाले महात्‍मा गांधी को अगर राष्‍ट्रपिता कहा जाता है। तो वहीं उनके गुरु दादा भाई नौरोजी को 'भारतीय राजनीति का पितामह' कहा जाता है। वह दिग्‍गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और महान विचारक थे। महात्‍मा गांधी ने दादाभाई से काफी कुछ सीखा। इसका यह परिणाम निकला कि, महात्‍मा गांधी ने भारत को एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बनाकर ही दम लिया।

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रामकृष्‍ण परमहंस और स्‍वामी विवेकानंद :-19वीं शताब्दी में अपना सारा जीवन दुःखी, कमजोर और असहाय लोगों की सेवा में अर्पित करने वाले स्वामी विवेकानंद सच्चे अर्थों में युगपुरूष थे। लेकिन उनके इस महान कामों के पीछे उनके गुरु रामकृष्‍ण परमहंस का अमूल्‍य योगदान था। एक दिन किसी पड़ोसी के घर नरेन्द्रनाथ यानी विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। जब नरेन्द्रनाथ दक्षिणेश्वर गये तो बातचीत के दौरान ही उन्होने रामकृष्ण जी से प्रश्न करके पूछा कि, क्या ईश्वर को देखा जा सकता है? 'रामकृष्ण जी ने उत्तर दिया कि, क्यों नहीं उन्हे भी वैसे ही देखा जा सकता है जैसे मैं तुम्हे देख रहा हुँ। परन्तु इस लोक में ऐसा करना कौन चाहता है? स्त्री, पुत्र के लिए लोग घङों आँसू बहाते हैं, धन-दौलत के लिए रोज रोते हैं किन्तु भगवान की प्राप्ति न होने पर कितने लोग रोते हैं' रामकृष्ण के इस उत्तर से नरेन्द्रनाथ बहुत प्रभावित हुए और अकसर ही दक्षिणेश्वर जाने लगे। वहीं मन ही मन में विवेकानंद जी ने स्वामी रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया था। इसके बाद रामकृष्‍ण के आदर्शो को विवेकानंद के आत्‍मसात करके अपना जीवन नेक कामों में लगा दिया।

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बैरम खान और अकबर :-अकबर एक बेहतरीन शासक तो थे लेकिन उनके पीछे एक ऐसा चेहरा खड़ा था जिसने अकबर को महान बनने का मौका दिया। जी हां वह शख्‍स थे बैरम खां। बैरम खां अकबर के संरक्षक, अभिभावक और शिक्षक सबकुछ थे। बैरम खां ने अकबर को बचपन से ही पाला और उन्‍हें एक कुशल शासक बनाया। बैरम ने ही अकबर को राजनीति और रणनीति में कुशल बनाया, जिसके चलते अकबर को कई युद्धों में सफलता भी मिली। हालांकि बाद में अकबर के कुछ नजदीकी लोगों ने उन्‍हें बैरम खां के खिलाफ भड़का दिया, जिसके बाद स्‍िथति धीरे-धीरे बिगड़ती चली गई। लेकिन आज भी अकबर की पॉपुलैरिटी का श्रेय बैरम खां को ही जाता है।

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