सिगरा स्टेडियम का कोना-कोना जोश, उत्साह, उमंग और हंसी-खुशी के रंगों से रंगा नजर आने लगा. लोग कोई भी हिस्सा मिस नहीं करना चाहते थे.
दिखा सन, जमकर हुआ फन, झूमा तन और मन
वर्किंग लेडी हो या हाउस वाइफ, युवा हो या बुजुर्ग, मम्मी-पापा हो या दादा-दादी. हर किसी मन और मिजाज के हिसाब से खेलने, सीखने और देखने के लिए कई तरह के इंतजाम थे.
चाहे वो बच्चे हो, टीनएजर्स हो, लड़के हो या लड़कियां, ऐसे में किसी को भी बोर होने का मौका ही नहीं मिला.
हालांकि हर जोन में मौजूद इंतजामों में इतने खो भी जा रहे थे कि खुद को वहां से हटा पाना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा था.
सुबह 10 बजे से शुरू हुए जागरण कनेक्शन प्रोग्राम में ना सिर्फ लोगों ने हर तरह से फैमिली संग एंजॉय किया बल्कि यहां काफी पुराने लोगों से हुई मुलाकात भी हर किसी के लिए खास रही.
सभी को अपनी ओर खींचने वाले आर्टिस्ट मौजूद थे.
सिगरा स्टेडियम में आयोजित बनारस के पहले फन और इंटरटेंमेंट से भरपूर आल इन वन वीकेंड हैंगआउट प्रोग्राम जागरण कनेक्शन वाराणसी का पहला शो ही शानदार रहा.
जागरण कनेक्शन प्रोग्राम की सबसे बड़ी खूब ये रही कि इसमें हर उम्र के लोगों ने बराबर एंजॉय किया. भीड़ इतनी थी लोगों को अपने ही ग्रुप के लोगों को कई बार खोजना पड़ जा रहा था क्योंकि कुछ फोटो खींचाने को रूके तो बाकी मैजिक शो देखने निकल पड़े
स्टेडियम में पूर्वी गेट और दक्षिणी गेट से एंट्री की व्यवस्था की गयी थी. दोनों ही तरह एंट्री के साथ ही पूर्वी गेट पर लोगों को सबसे पहले क्रिकेट और जिम्नेजियम से सामना होता था हालांकि अंदर से रेडियो मंत्रा की टीम की ओर से खिलाए जा रहे कॉन्टेस्ट की आवाज उन्हें वहां ज्यादा देर नहीं रोक पाती थी.
पूर्वी गेट से भी ज्यादा अट्रैक्शन दक्षिणी गेट से एंट्री पर था. पैवेलियन के ठीक लेफ्ट में रॉक बैंड की टीम का प्रदर्शन हर किसी को झूमने के लिए मजबूर कर रहा था. क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान. किसी के लिए भी यहां अपने कदमों को रोक पाना मुश्किल हो रहा था. यहीं जुम्बा डांस की टीम ने लोगों को आसान स्टेप्स में डांस सीखाते हुए मस्त म्यूजिक पर खूब नचाया. ओल्ड पैवेलियन बिल्डिंग के ठीक पीछे का नजारा और खास था. यहां जादूगर के कारनामे लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने के लिए मजबूर कर रहे थे.
बॉक्सिंग रिंग की तरफ आते ही उनकी आंखें हैरत में डूब जातीं थीं. अंदर कहीं म्युजिक चेयर पर बच्चों की दौड़ लुभाती थी तो कहीं काराओके पर अपने सिंगिंग टैलेंट के प्रदर्शन का मौका उन्हें खींचता था. पास में फोटो फोबिया की टीम उन्हें फ्री में इस यादगार लम्हें को कैद करने और उसे पिक्चर प्रिंट के रूप में देने मुस्तैद थी.
जिंदगी और रोजी-रोटी की भागदौड़ में जिसने मिले अर्सा हो गया था, वहां भी यहां टकराए और फिर मौज और बढ़ गयी. प्रोग्राम दोपहर एक बजे समाप्त होना था लेकिन भीड़ थी कि मानो कह रही हो कि ये दिल मांगे मोर. लिहाजा इस प्रोग्राम को करीब दो बजे समापन के अंजाम तक पहुंचाया जा सका.