एक्सपट्र्स ने पेरेंट्स को दिये बेहतर पेरेंटिंग के टिप्स, कहा बच्चों के दोस्त बनें.
Be a friend, not a parent ...
आई नेक्स्ट के पेरेंटिंग टुडे सेमिनार में उमड़े पेरेंट्स, खुलकर share की अपनी प्राब्लम्स.
पेरेंट्स अपने बच्चों पर हमेशा पढऩे का दबाव डालते रहते हैं. चलो पढ़ो, दिन भर खेलना है पढऩे से कोई नाता ही नहीं है जैसी बातें हर पेरेंट्स दिन में एक दो बार तो बोल ही लेता है. अब एक सात-आठ साल के बच्चे के लिए हमारा यह व्यवहार क्रूरता की श्रेणी में आयेगा. अरे भाई बच्चा पढऩे के लिए पैदा नहीं हुआ है. वह अपनी जिंदगी जीने के लिए पैदा हुआ है. उसे खेलने दो. मैं हर पेरेंट्स से कहूंगा कि वे अपने बच्चे से ये ना कहें कि चलो पढ़ो बल्कि ये कहें कि चलो खेलो. बच्चे को कौन सा गेम पसंद है उसके साथ वह खेलें.
बच्चे के सामने खुद को एक दोस्त साबित करें न कि एक क्रूर मां या बाप. देखा गया है कि जो बच्चे शुरुआती पढ़ाई में अच्छा करते हैं टेंथ या ट्वेल्थ में आते आते उनकी स्थिति खराब हो जाती है. छोटे बच्चों पर पढ़ाई का दबाव न डालें.
हर मां बाप चाहता है कि उसका बच्चा मोटा हो. लेकिन यह गलत है. मोटा होना तंदरुस्ती की निशानी है. बच्चों को बैलेंस्ड डाइट दें. जिससे कि उसकी ग्रोथ प्रॉपर रूप में हो सके. बच्चे के खाने में कार्बोेहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स आदि का होना जरूरी है.
अगर हम अपने बच्चे को उसके उम्र के हिसाब से रोटी, दाल, चावल, दूध, हरी सब्जी, फल आदि खाने को दे रहें तो यह उसके लिए पर्याप्त है. खास यह कि इन सब चीजों में बैलेंस होना जरूरी है. ऐसा न हो कि हम अपने बच्चे को प्रोटीन भरपूर दे रहे हों लेकिन एनर्जी के लिए जरूरी कार्बोहाइडे्रट के लिए कुछ भी नहीं दे रहे हों.
बच्चों को जंक फूड से जितना हो सके दूर रखें. जंक का मतलब होता है कचरा. लेकिन इसमें समय कम लगता है आसानी से उपलब्ध है इसलिए अधिकतर मदर्स अपने बच्चों को यही दे देती हैं. लेकिन यह गलत है अपने बच्चों को इस 'कचरा खानेÓ से दूर रखें.
परिवार छोटे हो गये हैं. मदर और फादर दोनों ही अपने बच्चों को बेहतर सुविधाएं जुटाने में ही परेशान है. वे अपने बच्चे को हर चीज तो दे रहे हैं लेकिन समय नहीं दे पा रहे हैं. जिसका नतीजा बच्चे और उनके बीच एक गैप के रूप में सामने आ रहा है.
बच्चे अपने पेरेंट्स के बीच के इस दूरी को सोशल साइट्स और गैजेट्स से पूरी कर रहे हैं. कंप्यूटर और मोबाइल में बच्चे अपना अधिक से अधिक समय बीता रहे हैं. धीरे धीरे यह एक एडिक्शन का रूप लेने लगता है पेरेंट्स परेशान होते हैं. पेरेंट्स को चाहिए कि वे ऐसी स्थिति आने ही न दें. बच्चों को समय दें. उनके बारे में जाने तब आप एक बेहतर पेरेंट्स साबित हो सकते हैं. पिता को भी चाहिये कि वो पैसे देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी ना समझे. बच्चों को पालने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसका निर्वाह उन्हें करना चाहिये.
आज के दौर में इंटरनेट और मोबाइल बच्चों के लिए एक मनोविकार का रूप ले चुका है. पहले इसके बैड इफेक्ट सामने नहीं आता लेकिन समय के साथ यह अपना रंग दिखाता है. जिसका नतीजा है कि बच्चों के एक तरह का एकाकीपन डेवलप हो रहा है. ऐसा हर किसी के साथ नहीं है लेकिन यह एक समस्या है. यह एकाकीपन धीरे धीरे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर बहुत गलत प्रभाव डाल रहा है. इसलिए हमें चाहिए कि बच्चों को जानने की कोशिश करें. उनको समझे उनसे प्यार करे. उन्हें गले लगायें. कभी भी एक बच्चे की तुलना दूसरे से न करें. इससे हम बच्चों के एक गलत फीलिंग डालते हैं जो जिसका असर बहुत गहरा होता है.