दूर देश से हजारों मेहमान अपने शहर में आए हैं. ये पूरी सर्दी तक यहीं रहेंगे. जैसे-जैसे गर्मी की शुरुआत होगी वैसे-वैसे ही ये अपने-अपने देश वापस लौट जाएंगे. खास बात यह है कि ये मेहमान हमसे कुछ ले नहीं रहे बल्कि हमें बहुत कुछ दे रहे हैं. इन्हें निहारने वालों को सुखद अनुभूति होती है तो वहीं इन्हीं की वजह से बनारस के सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला है. ये खास मेहमान कोई इंसान नहीं बल्कि आसमान से बातें करने वाले परिंदे हैं. इन्हें साइबेरियन बर्ड के नाम से जानते हैं. सर्दी शुरू होने के साथ ही हजारों साइबेरियन बड्र्स अपने शहर में आ चुकी हैं. ये दिन-रात गंगा की लहरों पर अठखेलियां करती हैं. इन्हें निहारने के लिए घाटों पर बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.
देखें काशी में पधारे इन विदेशी परिंदों की तस्वीरें...
सितम्बर माह शुरू होने के साथ ही सी गॉल (साइबेरियन बर्ड) के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. अब तक इन बड्र्स की संख्या हजारों में पहुंच चुकी है. दिन-रात गंगा की लहरों पर अठखेलियां करता इस बड्र्स का ग्रुप स्थानीय लोगों के साथ-साथ सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं. सबसे खास बात यह है कि ये परिंदे लगभग पांच सौ परिवारों की रोटी का जरिया बने हैं. इनमें नाविक, दाना बेचने वाले, चाय-पान की दुकान वाले, घाड़े वाले आदि शामिल हैं. नाविक प्रकाश का कहना है कि इन्हें दाना दे कर इनके और करीब होने का एहसास पाने के लिए ढेरों लोग नाव से गंगा की बीच धारा में पहुंच रहे हैं. जिसके चलते ये परिंदे नाविकों को कमाई का बढिय़ा जरिया बन चुके हैं. जबकि गाइड राजीव तिवारी बताते हैं कि परिंदों को दाना बेचने वाले घाट से लेकर गंगा के बीच तक घूम रहे हैं.
परिंदों के साथ फोटो खिंचाने की इच्छा हो तो कैमरामैन हर जगह मौजूद हैं. गंगा के बीच धार में पहुंचने वाले पार भी जा रहे हैं. यहां बन चुके पिकनिक स्पॉट पर खूब मस्ती कर रहे हैं. गंगा पार की दर्जनों दुकानें इन परिंदों की वजह से चल रही हैं. पब्लिक की भीड़ देखकर घोड़े वाले भी पहुंचकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं.
दूर देश से आने वाले परिंदों का हर साल सितम्बर माह में आना शुरू हो जाता है. ये लोग बनारस में मार्च तक रहेंगे. ये लोग तब तक यूं ही सैकड़ों परिवारों को रोजगार मुहैया कराते रहेंगे. शहर की इकोनॉमी में टूरिज्म अहम भूमिका निभाता है. दूर देश से उड़कर आने वाले ये मेहमान भी इकोनॉमी में अच्छी भूमिका निभा रहे हैं.
हालांकि, इनकी मौजूदगी से नुकसान भी है. जानवरों की रक्षा के लिए काम करने वाली संस्था के अमित नागर का कहना है कि इन परिंदों की वजह से शहर के लोगों की चहल-कदमी गंगा पार रेत में बढ़ी है. जिससे कछुआ सेंचुरी के लिए रिजव्र्ड इस एरिया में कछुओं का प्रजनन प्रभावित हो रहा है. इसके अलावा सी गॉल मीठी पानी में रहने वाली देसी प्रजातियों को बड़ी संख्या में खाती भी हैं. जिससे गंगा में रहने वाली कई प्रजातियों के खत्म होने का संकट पैदा हो गया है.