पितरों को दी श्रद्धांजलि

- आई नेक्स्ट ने कार्यक्रम आयोजित कर पितरों को किया याद

- समाज के कई वर्गो ने दिया योगदान, विधि विधान से संपन्न हुआ कार्यक्रम

<पितरों को दी श्रद्धांजलि

- आई नेक्स्ट ने कार्यक्रम आयोजित कर पितरों को किया याद

- समाज के कई वर्गो ने दिया योगदान, विधि विधान से संपन्न हुआ कार्यक्रम

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: पितृ पक्ष में पिंडदान करके तो सभी अपने पूर्वजों को याद करते हैं। लेकिन, क्या कभी किसी ने उन पूर्वजों के बारे में सोचा है जिन्होंने अपने समर्पण, त्याग और बलिदान के जरिए अपनी मातृभूमि को दुनियाभर में पहचान दिलाई। समय के साथ गुमनाम होते जा रहे उन पूर्वजों को याद किया आई नेक्स्ट ने। मंगलवार को एक कार्यक्रम का आयोजन कर इन महापुरुषों को विधि विधान से श्रद्धांजलि दी गई। हमारी इस कोशिश में साथ दिया समाज के कई वर्गो ने। लोगों ने इस महा अभियान में शामिल होकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

संगम तट पर लगा रेला

मंगलवार को पितृ विसर्जन का दिन था। संगम तट पर लोगों की भीड़ लगी थी। सभी अपने पितरों का श्राद्ध कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे। इसी क्रम में आई नेक्स्ट ने शहर की उन हस्तियों को श्रद्धांजलि देने का निर्णय लिया जिन्होंने अपने समर्पण और बलिदान से इलाहाबाद को अलग पहचान दी है। जब लोग ऐसे महापुरुषों को भूलते जा रहे हैं तो ऐसे में हमने उनके योगदान की याद दिलाकर समाज को उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक मौका दिया। लोगों ने हमारी इस पुण्य सोच को सार्थक मानते हुए हमारा साथ दिया और बड़ी संख्या में संगम तट किला घाट पर पहुंचकर कार्यक्रम का हिस्सा बने।

इनको दी श्रद्धांजलि

क्- हजारी राम पांडेय, शहीद स्वतंत्रता सेनानी

ख्- जगपत दुबे, लघु उद्योगों को दी थी संजीवनी

फ्- मुंशी काली प्रसाद, कायस्थ पाठशाला के संस्थापक

ब्- डॉ। प्रीतम दास, एमएलएन मेडिकल कॉलेज के फाउंडर प्रिंसिपल

भ्- महाराजिन बुआ, दाह संस्कार के कार्यो में नई परंपरा की जनक

म्- लाल पदमधर, अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी

7- राधा मोहन गोकुल, भारतेंदु युग के अनूठे साहित्यकार

8- बाबू बैजनाथ सहाय, डॉ। रंजीत सिंह, सत्यानंद जोशी, प्रयाग संगीत समिति के संस्थापक

9- राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, हिंदी के अभ्युदय, उत्थान और संव‌र्द्धन में दिया विशेष योगदान

क्0- डॉ। धीरेंद्र वर्मा, हिंदुस्तानी एकेडमी से जुड़कर हिंदी साहित्य के विकास में रहा विशेष योगदान

क्क्- ईश्वरी प्रसाद, लखनऊ घराने के नर्तकों के जनक और महान कथक कलाकार

क्ख्- भोला केसरवानी, इलाहाबाद के पहले सफल उद्यमी

क्फ्- चौधरी महादेव प्रसाद, कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट के महादानी

क्ब्- पंडित कल्याण चंद मोहिले उर्फ छुन्नन गुरु, इलाहाबाद के विकास में विशेष योगदान

क्भ्- गणेश शंकर विद्यार्थी, महान पत्रकार और हिंदू-मुस्लिम सद्भाव के प्रतीक

तीर्थ पुरोहितों ने पढ़े मंत्र

संगम तट पर आयोजित कार्यक्रम में बाबा समाज सेविका संस्था के अध्यक्ष किशोरी लाल जायसवाल, प्रयागराज सेवा समिति के बच्चा भईया, विष्णु दयाल श्रीवास्तव, मुकेश मौर्या, दुर्गेश शर्मा, सतीश केसरवानी, राजू, निशांत, शेरू, जैकी, धर्मे्रद्र, गौरव, शुभम, चंद्रजीत, सिद्धार्थ शाक्य, पीयूष, अंकुश, संस्था सदस्यों सहित छात्र, अधिवक्ता, समाज सेवी आदि भी बड़ी संख्या में शामिल रहे। तीर्थ पुरोहित भईया लाल भारद्वाज, गोविंदा भारद्वाज, भंगू भारद्वाज आदि ने विधि विधान व पूजन अर्चन के साथ महापुरुषों को श्रद्धांजलि दिलवाई। इस मौके पर महान पितरों को तहेदिल से याद कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की गई। कार्यक्रम में शामिल लोगों ने आई नेक्स्ट के इस प्रयास की जमकर सराहना की। उधर संगम तट पर मंगलवार को पितरों का श्राद्ध करने वालों की भारी भीड़ रही। इलाहाबाद ही नहीं दूर दराज से आए हुए लोगों ने विधि विधान से अपने पितरों को पिंडदान कर विदा किया।

क्या होता है श्राद्ध

प्रतिवर्ष आश्रि्वन मास में प्रौष्ठपदी पूर्णिमा से ही श्राद्ध प्रारंभ हो जाते हैं। इसे क्म् श्राद्ध भी कहते हैं। पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा अनुसार ब्रम्ह वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि संसार में आकर जो सद गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राम्हणों को भोजन कराते हैं, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। भारतीय वैदिक वांग्मय के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात तीन प्रकार के ऋण चुकाने होते हैं। पहला देव ऋण, ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। क्म् श्राद्ध के सुनहरे दिनों में तीनों ऋणों से मुक्त हुआ जा सकता है।

कौन कर सकता है श्राद्ध

मनुस्मृति और ब्रम्हवैवर्त पुराण जैसे प्रमुख शास्त्रों में बताया गया है कि परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र नहीं है तो नाती, भतीजा, भांजा, शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। संतानहीन पितरों को भाई, भतीजे, चाचा ताऊ परिवार के पुरूष सदस्य विधिपूर्वक श्राद्ध कर सकते हैं। इससे पीडि़त आत्मा को मोक्ष मिलता है। धर्मसिंधु सहित मनुस्मृति और गरुड़ पुराण आदि ग्रंथ महिलाओं को ंिपंडदान करने का अधिकार प्रदान करती हैं।