-ईधन, खाद्य व प्लास्टिक के दाने बनाने में पिछड़ा बसवार प्लांट

-व‌र्ल्ड बैंक के एक्सपर्ट भी मान चुके हैं प्लास्टिक के उपयोग का लोहा

-अवैध कारखाना संचालक मानकों को लेकर बेपरवाह है प्रशासन

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: प्लास्टिक वेस्ट का बेहतरीन इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए एक ओर यूपी गवर्नमेंट जुलाई में प्लास्टिक सिटी की आधारशिला रखने पर काम कर रही है तो दूसरी तरफ हमारे शहर का सच यह है कि वेस्ट रीसाइकिल करने के लिए स्थापित इकलौता प्लांट भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है। नतीजा उसके पास भी बैकलॉग का पहाड़ खड़ा होता जा रहा है। वह भी तब जबकि सरकारी हुक्मरान प्रयाग को ग्रीन सिटी के रूप में डेवलप करने का दावा कर रहे हैं। अर्थ डे से पहले सिटी के लोगों को अॅवेयर करने के लिए कैंपेन के दौरान प्लास्टिक वेस्ट, इससे बनाए जाने वाले प्रोडक्ट्स आदि की जानकारी हम दे चुके हैं। इसी कड़ी में हम आपको आज प्लास्टिक वेस्ट के रीसाइक्लिंग स्टेटस की जानकारी दे रहे हैं।

चंडीगढ़ से ले सकते हैं सबक

प्लास्टिक वेस्ट का उपयोग डेकोरेटिव साजो सामान बनाने, सड़के बनाने सहित दूसरी चीजों में किया जा सकता है। कुछ मेट्रो सिटीज में यह काम काफी बेहतर तरीके से किया जा रहा है। एग्जाम्पल के रूप में चंडीगढ़ को ही लें तो यहां जेपी ग्रुप बड़े पैमाने पर कचरे से ईधन व खाद्य बनाने का काम कर रहा है। ग्रुप के इम्प्लाई लोगों से टाईअप करके उनसे कचरा खरीदते हैं और इसका सिस्टमैटिक तरीके से कलेक्शन करके अपने प्लांट तक ले जाते हैं। बात इलाहाबाद की करें तो यहां इंडस्ट्रियल एरियाज में प्लास्टिक के कई कारखाने अवैध तरीके से संचालित हो रहे हैं। इनमें नैनी का एरिया टॉप पर है। जिनपर जिम्मेदार विभागों का कोई नियंत्रण नहीं है। इन कारखानों में भारत सरकार और यूपी गवर्नमेंट के दिशा निर्देशों का भी कोई अनुपालन नहीं हो रहा है। हद तो यह है कि अवैध कारखानों के संचालक भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी प्लास्टिक उत्पाद में माइक्रान की बाध्यता से भी बेपरवाह हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में स्पष्ट कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अवैधानिक तरीके से रीसाइक्लिंग करता पाया गया तो उसे दंडित किया जाएगा।

पहले एडब्ल्यूपी देखता था

इलाहाबाद में प्योर प्लास्टिक का कोई सरकारी प्लांट नहीं है। जो हैं वे अवैध तरीके से संचालित हो रहे हैं। वहां पालीथीन के निर्माण को ही वरीयता दी जा रही है। बाकी मोटी प्लास्टिक से विनिर्माण की प्रक्रिया के लिए मुट्ठीभर कारखाने ही हैं। जहां तक बात नगर निगम के अधीन संचालित बसवार प्लांट की है तो एडब्ल्यूपी के जाने के बाद से वह भी अपनी पूरी क्षमता के अनुसार वर्क नहीं कर पा रहा है। सूत्रों का कहना है कि जब तक यह प्लांट एडब्ल्यूपी के हवाले था रोजाना तीन सौ से चार सौ मिट्रिक टन कचरा पहुंचता था। जिसमें पतले प्लास्टिक को रिसाइकिल करके ईधन में कन्वर्ट किया जाता था और बाकी कचरे से खाद्य बनती थी।

बैकलाग ही निपटा लें तो बड़ी बात

जानकारों का कहना है कि उस समय बसवार प्लांट से बनने वाले मोटे प्लास्टिक के दानों की सप्लाई कानपुर और दिल्ली तक हो गई थी। लेकिन, करेंट में यह ईधन, खाद्य और दानों की सप्लाई में लक्ष्य से पिछड़ता जा रहा है। नगर निगम से जुड़े सोर्स बताते हैं कि बसवार प्लांट में हर रोज जमा होने वाले सैकड़ों टन कचरे का बैकलाग ही रीसाइकिल कर लिया जाए तो बड़ी बात होगी। यहां सही तरीके से वर्क न हो पाने की बड़ी वजह कई मशीनों की मरम्मत न होना एवं संसाधनों का आभाव है।

बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

बहरहाल आपकी जानकारी के लिए यह जान लेना जरुरी है कि विदेशों में हर वर्ष प्रति व्यक्ति ख्8 किलोग्राम प्लास्टिक की खपत है, जबकि भारत में 8 किलोग्राम है। वर्ष ख्0ख्0 तक भारत की आबादी डेढ़ अरब से ज्यादा होने के बाद खपत और बढ़ेगी, उस समय तक प्लास्टिक उद्योगों के विकास का भविष्य होगा। इसे देखते हुए यूपीएसआईडीसी ने भी पॉजिटिव थॉट के साथ काम करना शुरू कर दिया है।

भारत में बंगलुरु के बाद इलाहाबाद का बसवार प्लांट ही है जिसकी तारीफ व‌र्ल्ड बैंक की ओर से निरीक्षण के लिए भेजी गई एक्सपर्ट लेडी सेंड्रा ने की थी। दिक्कतें तो हैं ही। बावजूद इसके हमारी ओर से पूरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा कचरे को रिसाइकिल किया जाए।

राजकुमार द्विवेदी,

इंचार्ज बसवार प्लांट

कुंभ से पहले अवैध कारखाना संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। उस समय करीब बारह अवैध कारखानों को बंद करवाया गया था। बड़ी दिक्कत यह है कि ये कारखाने रात में ही चलते हैं। कोई शिकायत करे तो कार्यवाही की जाए।

एसबी फ्रैंकलीन,

उत्तर प्रदेश पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड रिजनल ऑफिस झूंसी इलाहाबाद

प्लास्टिक सिटी पर एक नजर

कुल जमीन-फ्क्ब् एकड़

फैक्ट्रियों के लिए-ख्ख्भ्.08 एकड़

रिहायशी जमीन-88.9ख् एकड़

अवस्थापना में निवेश होगा-करीब एक हजार करोड़ रुपये

रोजगार मिलेगा-दस हजार लोगों को प्रत्यक्ष व तीन हजार को लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से