- सेंट्रल स्टेशन पर गाडि़यों के प्लेटफॉर्म बदलने के पीछे सक्रिय है वेंडर्स और रेलवे अधिकारियों का रैकेट

- ज्यादा से ज्यादा सामान की बिक्री के लिए ऐन वक्त पर बदल दिए जाते हैं ट्रेनों के प्लेटफॉर्म

-लंबी दूरी की गाडि़यां प्लेटफार्म पर रुकते ही पैसेंजर्स टूट पड़ते हैं स्टॉल्स पर

- प्लेटफॉर्म बदलने से मच जाती है अफतातफरी, कई हो जाते हैं चुटहिल तो कइयों की छूट जाती है ट्रेन

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KANPUR। रायपुरवा निवासी सुनील शुक्रवार रात मेरठ जाना था। संगम एक्सप्रेस में उनका रिजर्वेशन था। जो कि प्लेटफार्म नंबर क् पर आनी थी। सुनील गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। गाड़ी आने वाली थी तभी अचानक प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा हुई। गाड़ी प्लेटफॉर्म नंबर क् के बजाए भ् पर आने की घोषणा होते ही प्लेटफॉर्म पर अचानक अफतातफरी मच गई। लोग अपना लगेज लेकर प्लेटफॉर्म नंबर भ् की ओर भागे। सुनील भी चले लेकिन सुरंग वाले रास्ते में पानी भरा होने के चलते वो फिसल गए। जिससे कपड़े बुरी तरह भीग गए। खैर जैसे-तैसे वो मेरठ के लिए रवाना हुए। लेकिन ऐसा सिर्फ सुनील के साथ नहीं हुआ। रोजाना हजारों पैसेंजर्स इस अफतातफरी का शिकार होते हैं। कुछ तो चोट भी खा जाते हैं। क्योंकि ऐन वक्त पर गाडि़यों के प्लेटफॉर्म बदल दिए जाते हैं। पैसेंजर्स को लगता है कि इमरजेंसी में प्लेटफॉर्म बदल दिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। प्लेटफॉर्म बदलने के पीछे बाकायदा रेलवे अधिकारियों, आरपीएफ, वेंडर्स का नेक्सेस है। जो अवैध कमाई लिए पैसेंजर्स को मुसीबत में डाल देता है। प्लेटफॉर्म बदलने की एक पूरी अर्थव्यवस्था है।

रोज प्लेटफॉर्म बदलती हैं करीब फ्0 गाडि़यां

रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर ब्, भ्, म्, 7, 8 पर रोजाना पैसेंजर्स सामान उठाकर भागते हुए नजर आते हैं। क्योंकि इन्हीं प्लेटफा‌र्म्स पर आने वाली ट्रेनों का प्लेटफॉर्म बदलने का खेल सबसे ज्यादा होता है। रोज लगभग फ्0-फ्भ् गाडि़यां सेंट्रल स्टेशन पर प्लेटफार्म बदलती हैं।

एक गाड़ी से लाखों का गेम

इन प्लेटफॉ‌र्म्स पर तमाम वेंडर्स हैं। जो प्लेटफॉर्म बदलने के लिए रेलवे अधिकारियों को पैसा देते हैं। जिसके चलते यहां ट्रेन रुकने पर खाने-पीने का सामान बिकता है। लंबी दूरी एक गाड़ी के प्लेटफॉर्म बदलने पर वेंडर्स लाखों का गेम कर देते हैं। लेकिन इसका एक हिस्सा उन्हें रेलवे अधिकारियों को भी पहुंचाना पड़ता है। स्वतंत्रता सेनानी, संगम एक्सप्रेस, साबरमती एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस, गोरखधाम, झारखण्ड संपर्क क्रांति, लिच्छवी आदि ट्रेनें के प्लेटफार्म अक्सर बदल दिए जाते हैं। क्योंकि सेंट्रल पर गाड़ी रुकते ही गाड़ी सवार पैसेंजर्स पानी, खाना आदि चीजों के लिए टूट पड़ते हैं। कुछ ही देर में वेंडर्स वारे-न्यारे कर देते हैं।

इन गाडि़यों का प्लेटफार्म नहीं बदलता

सेंट्रल स्टेशन पर कई ऐसी ट्रेनें भी हैं। जिनका प्लेटफॉर्म नहीं बदलता है। ये गाडि़यां हैं मेमू, शताब्दी, राजधानी, वरुणा एक्सप्रेस, श्रमशक्ति, गोमती, इंटरसिटी आदि। इसके पीछे क्या कारण है ये जानने के लिए जब हम एक वेंडर के पास गए तो उसने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन ट्रेनों में सिटी के सैकड़ों लोग ऑफिस जाने के लिए ट्रैवल करते हैं। अगर गाड़ी का प्लेटफार्म बदला या लेट हुई तो पैसेंजर्स हंगामा करने लगते हैं। वहीं शताब्दी व राजधानी सरीखी गाडि़यों में खाने का पैसा टिकट के साथ कटता है। ट्रेन में ही खाना मिलता है। इसलिए प्लेटफार्म नहीं बदला जाता है। और जो गाडि़यां कानपुर या आसपास के स्टेशनों से ही आती हैं, उनके पैसेंजर्स के पास खाना-पानी मौजूद रहता है।

ब् और भ् नंबर प्लेटफार्म पर अंधी कमाई

प्लेटफार्म नंबर ब् व भ् पर तो वेंडरों की अंधी कमाई होती है। क्योंकि इन्हीं प्लेटफार्मों पर सबसे ज्यादा वेण्डर हैं। यहां ज्यादातर दूर की गाडि़यां आती हैं। जो बीच में कई शहरों में नहीं रुकती हैं। अत: ये ट्रेनें जैसे ही प्लेटफार्म पर रुकती हैं। पैसेंजर्स टूट पड़ते हैं। इन दोनों प्लेटफॉ‌र्म्स पर करीब आधा दर्जन वेण्डर्स मौजूद हैं। वहीं प्लेटफार्म नंबर 8 पर भी कई वेंडर्स हैं। वहीं कई बार म् व 7 नंबर प्लेटफार्म पर भी गाडि़यां लग जाती हैं।

एक गाड़ी का हजार रुपया

सेंट्रल स्टेशन पर गाड़ी का प्लेटफार्म बदलने में करीब क्000 रुपए का खर्चा आता है। स्टेशन सूत्रों ने बताया कि स्टेशन के वेण्डर ये खेल करते हैं। हर वेण्डर की रकम बंधी होती है। जो वेंडर चाहता है वो स्टेशन अधिकारियों को पैसा देकर गाड़ी अपने प्लेटफॉर्म पर मंगा लेता है। इस काम में सिर्फ ऑथराइज्ड वेंडर्स ही नहीं बल्कि अवैध वेंडर्स भी शामिल रहते हैं।

मालगाड़ी लगाकर बदलते हैं प्लेटफॉर्म

मालगाड़ी में अक्सर स्टेशन के अधिकारी खेल करते हैं। वो वेंडर्स वाले प्लेटफॉर्म से मालगाड़ी हटाकर वहां पैसेंजर्स वाली ट्रेने लगाते हैं। एक वेंडर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्लेटफार्म नंबर ब्, भ् पर जल्दी-जल्दी कभी भी मालगाड़ी नहीं आती है। वहीं प्लेटफॉर्म नंबर ख् व फ् से गाड़ी हटाकर प्लेटफॉर्म नंबर ब्, भ् व 8, 9 पर लगा ली जाती हैं।

प्लेटफॉर्म फूड स्टाल

क् क्

ख्-फ् फ्

ब्-भ् 8

म्-7 7

8-9 ख्

क्0- 0

जिनके प्लेटफार्म बदले

ट्रेन आनी थी आई

नीलांचल 7 8

पूना-लखनऊ फ् ब्

गोरखपुर से यशवंतपुर 7 8

गोरखपुर से अहमदाबाद 7 भ्

प्लेटफॅर्म बदलने में लेट होती हैं ट्रेनें

प्लेटफॉर्म बदलने में अक्सर ट्रेन लेट भी होती हैं। जिससे पैसेंजर्स को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सेंट्रल स्टेशन पर जब कभी भी प्लेटफार्म पर गाड़ी बदली जाती है तो कोई न कोई गाड़ी आउटर पर खड़ी होती है। जिससे कोई न कोई गाड़ी तो लेट होती ही है। कभी प्लेटफॉर्म बदले जाने वाली गाड़ी तो कभी वो गाड़ी जो निर्धारित प्लेटफॉर्म पर आ रही होती है।

ये ट्रेनें अक्सर बदलती हैं प्लेटफार्म

स्वतंत्रता सेनानी, संगम एक्सप्रेस, साबरमती एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस, गोरखधाम, झारखण्ड संपर्क क्रांति, लिच्छवी। वैसे वेंडर्स की नजर उन ट्रेनों पर रहती हैं। जो दूर से आती हैं और पिछले कई स्टेशनों पर नहीं रुकी हुई होती हैं। ऐसी ट्रेनों के पैसेंजर्स स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही खाने व पीने का सामान खरीदते हैं।