एक हफ्ते का दिया समय
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि राष्ट्रगान को सम्मान देने के लिए दर्शकों को अपनी सीटों पर खड़ा भी होना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर अमल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आपत्तिजनक वस्तुओं या जगहों पर राष्ट्रगान को प्रिंट नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं कोई भी शख्स राष्ट्रगान का उपयोग कर व्यवसायिक फायदा नहीं उठा सकता है। अदालत के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने कहा कि जल्द ही इस संबंध में राज्यों के मुख्य सचिवों को सर्कुलर जारी कर दिया जाएगा। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के जरिए लोगों को जागरुक बनाया जाएगा ।याचिकाकर्ता के वकील अभिनव श्रीवास्तव ने कहा कि कोई भी शख्स राष्ट्रगान के जरिए फायदा नहीं उठा सकता है।

टीएमसी ने फैसले का किया स्वागत

टीएमसी सांसद शुखेंदु शेखर रॉय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि 1962 में भारत-चीन युद्ध और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय राष्ट्रगान बजाने के फैसले को अमल में लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा सांसद परेश रावल ने कहा कि राष्ट्रगान बजना चाहिए, झंडा भी दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर भारत का झंडा या राष्ट्रगान नहीं दिखेगा तो क्या सोमालिया का दिखना चाहिए।

क्या था मामला ?

श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्गान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए, और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान को इस्तेमाल न किया जाए। याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रगान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि राष्ट्रगान को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते इसके अतिरिक्त राष्ट्रगान की धुन बदलकर किसी ओर तरीके से गाने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि इस तरह के मामलों में राष्ट्गान नियमों का उल्लंघन है, और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अक्टूबर में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

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