- ट्रॉमा में सिसेंडी कांड के तीन मरीजों की मौत, 5 अत्यधिक गम्भीर

ट्रॉमा में 6 मरीजों को तुरंत वेंटीलेटर की जरूरत, लेकिन मिला सिर्फ दो को

- ट्रॉमा में वेंटीलेटर्स की बहुत कमी, खाली न होने के कारण नहीं मिल पाए

LUCKNOW: सिसेंडी कांड के ट्रॉमा में भर्ती तीन मरीजों की रविवार को मौत हो गई। अभी जिन मरीजों का इलाज चल रहा है उन्हें वेंटीलेटर खाली न होने के कारण एक एक मिनट भारी पड़ रहा है। सीमित वेंटीलेटर होने के कारण सिर्फ दो मरीजों को ही प्रशासन वेंटीलेटर दिला पाया है। अभी कुल 8 में से ब् मरीजों को और वेंटीलेटर की सख्त जरूरत है। लेकिन सीमित वेंटीलेटर होने के कारण मरीजों को सामान्य बेड पर इलाज किया जा रहा है। जिससे उनकी बचने की जो थी वह भी खत्म होती जा रही है।

इनकी हुई मौत

रविवारको इलाज के दौरान 7 साल के अरमान की रात ख् बजे ही मौत हो गई थी। वहीं रहीसुन निशा की सुबह भ् बजे मृत्यु हो गई। इसके अलावा खलील की भी इलाज के दौरान दोपहर दो बजे मौत हो गई। तीनों ही क्00 परसेंट जले हुए थे। इसके अलावा अभी नगमा उर्फ शहजहां और दिलीप अभी वेंटीलेटर पर हैं। अभी कुल 9 पेशेंट ट्रॉमा में भर्ती हैं। जिनमें से सिर्फ याशमीन ही है जिसे डॉक्टर खतरे से बाहर बता रहे हैं। इसके अलावा अन्य सभी मरीज अति गम्भीर बने हुए हैं।

सभी मरीजों को जरूरत है वेंटीलेटर की

इमरजेंसी में इलाज कर रहे डॉक्टर्स की माने तो दो मरीजों के अलावा सभी मरीजों को वेंटीलेटर की जरूरत है। क्योंकि कई मरीज 90 से क्00 परसेंट जले हैं। जो कम जले हैं उन्हें हेड इंजरी या अन्य समस्याएं हैं। अभी इन मरीजों में अगले दो से तीन दिनों और सूजन आ सकती है। इससे सांस लेने में समस्या या फिर निमोनिया का खतरा है। अगर वेंटीलेटर न मिला तो इनकी मौत हो सकती है। लेकिन ट्रॉमा में वेंटीलेटर्स पर्याप्त संख्या में न होने के कारण ब् मरीजों को वेंटीलेटर नहीं मिल पाया है।

इन मरीजों के शरीर का हर हिस्सा जला है। आंखे, सांस की नली, चेस्ट, सब जला है। चेस्ट, गले, नाक में भी मरीज जला है तो दर्द के मारे सांस लेने में कठिनाई महसूस करता है। गैस और जलने के कारण फेफड़े में भी घाव बन जाते हैं। जिससे सांस न ले पाने के चलते पेशेंट ईआरडीएस मे जाने लगता है यही काज आफ डेथ होता है।

घायलों की सूची

केजीएमयू ट्रामा सेंटर

नाम उम्र बर्न

विजरानी ब्भ्-क्00 परसेंट

छेदालाल फ्भ् -क्00 परसेंट

जहीर ख्भ् --90 परसेंट

गुड्डू फ्भ् -- 7भ् परसेंट

दिलीप गुप्ता ख्8 --भ्भ् परसेंट

लक्ष्मी फ्भ्--ब्0 परसेंट

यासमीन ख्ख्--क्0 परसेंट

नगमा क्8-- फ्0 परसेंट

लक्ष्मी

श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल में भर्ती-

अब्दुलहक ख्7---ब्0 परसेंट

मो। जहीर -ख्ख्---70 परसेंट

मो। जलील- फ्0 ---क्0 परसेंट

जितना जले उतनी बचने की सम्भावना कम

केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ। बृजेश मिश्र ने बताया कि कोई भी मरीज जितना जलता है उतना ही उसे बचने की सम्भावना कम होती है। पेशेंट क्00 परसेंट जला है तो बचने के चांसेस सिर्फ क्0 परसेंट हैं। क्00 परसेंट बर्न है तो बचने के चांसेस बिल्कुल नहीं होते हैं। अगर मरीज भ्0 परसेंट तक जला होता है तो बचने की सम्भावना होती है अगर उसके हेड इंजरी या अन्य समस्याएं न हो तो। कई बार मरीज कम जलते हैं लेकिन डायबिटीज, हाइपरटेंशन, सांस की समस्याओं के कारण बचना मुश्किल हो जाता है।

दी जा रही पूरी मदद

केजीएमयू के उप चिकित्सा अधीक्षक डॉ। वेद प्रकाश ने बताया कि कुलपति के निर्देश पर हादसे में घायल हुए मरीजों को दवा, जांच इलाज सब मुफ्त में दिया जा रहा है। यहां पर बर्न यूनिट नहीं फिर भी प्लास्टिक सर्जरी विभाग के स्पेशलिस्ट्स की देखरेख में क्रिटिकल केयर के माध्यम से मरीजों को यथासम्भव इलाज की व्यवस्था की जा रही है।

जब मरीज आए थे उस समय वेंटीलेटर खाली नहीं थे। गैस्ट्रो सर्जरी से एक वेंटीलेटर की व्यवस्था कर तुरंत मरीज को दिया गया। वहीं पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट भी एक वेंटीलेटर खाली करा कर बच्चे को भर्ती कराया गया। वहीं एक वेंटीलेटर ट्रॉमा वेंटीलेटर यूनिट से दिया गया है। तीन वेंटीलेटर इन मरीजों को इलाज के लिए दिए गए हैं। वेंटीलेटर भी फ्री में दिया जा रहा है।

नहीं पहचान पा रहे अपनों को

सिसेंडी कांड में घायल मरीजों की हालत इतनी खराब है अपने ही अपनों को नहीं पहचान पा रहे हैं। चेहरे बुरी तरह से जल गाए हैं। आंखे भी जलने के कारण गल गई हैं। ट्रॉमा सेंटर में भर्ती ज्यादातर मरीजों का यही हाल है। छेदालाल की पत्‍‌नी ने बताया कि जब धमाका हुआ तो गांडी में ले जाते समय इन्हें देखा था। हालत अब बहुत खराब है। गोद में एक छोटा बच्चा है अब उसका पालन पोषण कैसे होगा सोच सोच कर परेशान हूं।

गांव के ही नसीम ने बताया कि खलील की मां, भाभी , भाई, एक बेटी की मौत हो चुकी है। याशमीन नाम की भतीजी को हम लोग जानकारी नहीं दे पा रहे हैं कि उसकी मां की मौत हो गई है। हमने उसे सिविल में भर्ती होने की जानकारी दी है। वह थोड़ी थोड़ी देर में अपनी मां के बारे में पूछ रही है।

7भ् रुपए ने ले ली जान

बेरोजगारी इस कदर है कि लोग 7भ् रुपए के लिए अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। सिसेंडी कांड में यही हुआ। मजदूरों ने घातक बारूद के बीच सिर्फ 7भ् रुपए में ही काम करना स्वीकार कर लिया। जिसके लिए सुबह 8 से देर शाम तक काम कराया जाता था। सिसेंडी में पटाखा फैक्ट्री में महिला मजदूरों को सिर्फ 7भ् रुपए से 90 रुपए तक ही दिहाड़ी दी जाती थी। ट्रॅमा में भर्ती लक्ष्मी नाम की पेशेंट के परिजनों ने बताया कि महिलाओं को दिहाड़ी के नाम पर सिर्फ 7भ् से 90 रुपए तक ही दिए जाते हैं। लेकिन पुरुषों को क्फ्0 से लेकर क्भ्0 रुपए तक। छेदालाल की पत्‍‌नी ने रोते हुए बताया कि पिछले एक महीने से काम कर रहे थे और अब तक सिर्फ खर्चे के लिए कुछ पैसा दिया। उनको सिर्फ क्ब्भ् रुपए ही रोज की दिहाड़ी का वादा किया था। खलील ने पटाखों की बिक्री के बाद पैसे देना का वादा किया था। लेकिन इस हादसे ने सब बर्बाद कर दिया। वहीं एक अन्य मरीज के भांजे ने बताया कि इलाके में जितने घरों में पटाखे का काम होता है वहां पर इन्ही दरों से भुगतान किया जाता है। लोगों के पास काम नहीं है इसलिए वे ऐसे जोखिम भरे काम करने को तैयार हो जाते हैं। उस पर भी पेमेंट रोज का रोज नहीं होता। ताकि मजदूर भाग न जाएं। क्भ्0 में से क्0 या ख्0 रुपए ही दिए जाते। और सबसे पटाखे बिकने के बाद ही रुपए मिलने को कहा गया था।