-पिछले 45 सालों से दून पहुंचते हैं प्रतापगढ़ के रंग बनाने वाले

-इस बार भी दरबार साहिब के सामने तैयार हो रहा है होली का हर्बल रंग

-मौसम के कारण अब तक रंगों की बिक्री ठप, दो दिनों का भरोसा बाकी

DEHRADUN : भले ही इस बार होली पर मौसम की मेहरबानी न दिख रहा हो, लेकिन इसके बाद भी होली के त्योहार के कारोबारियों के उत्साह में कोई कमी नहीं है। इस बार भी यूपी के प्रतापगढ़ से अबीर, गुलाल बनाने वाले रंगों के कारोबारियों ने दरबार साहिब के सामने अपनी दुकानें सजा दी हैं, लेकिन मौसम की बेरुखी ने उनके अरमानों पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मायूस और उदास होली के रंगों के कारोबारी अब दो दिनों के भरोसे ही हैं, जब मौसम साफ रहेगा तो उनको उनका मेहनताना भर तो मिल सकेगा।

मजदूरी निकली भी हुई मुश्किल

होली का त्योहार नजदीक हो और दरबार साहिब के सामने अबीर, गुलाल जैसे रंगीन हर्बल रंगों की दुकानें न सजी हो तो बात हजम नहीं होती है। यहां पहुंचने वाले खरीदारों की भीड़ से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। दरअसल, हर साल की तर्ज पर इस बार भी यूपी के प्रतापगढ़ जिले से होली के रंग तैयार करने वाले कारोबारी हफ्तेभर पहले ही दून पहुंच चुके हैं। लेकिन मौसम की बेरुखी ने उनके अरमानों पर फिलहाल पानी फेर दिया है। जब तक तमाम प्रकार के होली के इन हर्बल रंगों की सेल शुरू होती, तब तक लगातार बारिश से इनके रंगों के पैकेट खुल नहीं पाए। ट्यूजडे को दोपहर में थोड़ा बहुत धूप के दर्शन हुए और रंग के इन कारोबारियों ने अपने रंग तैयार करना शुरू किया, वैसे ही फिर झमाझम बारिश शुरू हो गई।

दून से हैं पुराना नाता

होली के दौरान दून व प्रतापगढ़ का रिश्ता अटूट-सा लगने लगता है। आरारोट से तैयार होने वाले रंग दून शहर की हमेशा पहली पसंद रहा है। प्रतापगढ़ के बैजनाथ जायसवाल कहते हैं कि वे होली के दौरान हर्बल रंग तैयार कर बेचने के लिए देहरादून में पिछले ब्भ् सालों से आ रहे हैं। दून का प्यार ही उन्हें यहां खींच लाता है। लगातार ब्0 सालों से होली के दौरान हर्बल रंग बेचने वाले शंभूनाथ जायसवाल कहते हैं कि इस बार बारिश ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है। होली के दो दिन बाकी बचे हुए हैं, बिक्री के नाम पर सब कुछ चौपट है। अब दो दिनों में मौसम खुल जाए तो उम्मीद जगाए हुए हैं।

ख्0 परसेंट महंगे हैं इस बार रंग

प्रतापगढ़ से पहुंचे इन कारोबारियों का कहना है कि इस बार रंग करीब ख्0 परसेंट महंगा हुआ है। उसका कारण आरारोट महंगा होना और मजदूरी भी महंगी हो जाना है। जहां पिछले साल 80 रुपए केजी प्योर हर्बल रंग बिका करता था, अब वह क्00 रुपए पार कर चुका है। अजय जायसवाल के मुताबिक बारिश से तो इस बार मजदूरी भी मिल पाना नामुमकिन लग रहा है। प्रतापगढ़ के इन रंगों के कारोबारियों के पास आरारोट से तैयार रंगों में लाल, हरा, गुलाबी, पीला, बैंगनी, फिरोजी और संतरी के सात रंग शामिल हैं।

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होली के बाद सिंदूर बेचेंगे

होली के बाद प्रतापगढ़ के ये रंगों के कारोबारी झंडा मेले में सिंदूर बेचने का काम शुरू करेंगे। जिनकी डिमांड लंबे समय से चली आ रही है।

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ब्भ् सालों से लगातार आ रहा हूं। आरारोट से तैयार असल हर्बल रंग बेचा करते हैं। जिससे आम लोगों को किसी प्रकार के साइड इफेक्ट न हो।

- बैजनाथ जायसवाल, रंग कारोबारी

इस बार मौसम साथ नहीं दे रहा है। बिक्री के नाम पर अब तक सब कुछ ठंडा है। अब दो दिन बाकी है, सब भगवान भरोसे है।

- शंभूनाथ जायसवाल, रंग कारोबारी