- आरटीओ में आरआई करवाते हैं अपने चार 'प्राइवेट कर्मचारियों से वसूली, दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के स्टिंग में खुलासा - 'प्राइवेट' कर्मचारियों को चढ़ावा देने पर बिना ड्राइविंग टेस्ट के आसानी से बना जाता डीएल, खुलेआम होती है वसूली द्मड्डठ्ठश्चह्वह्म। आरटीओ ऑफिस से दलाल'राज' खत्म हो गया है। कोई भी काम हो, निर्धारित प्रॉसेस से ही होते हैं। ये हमारा नहीं विभाग के अधिकारियों का दावा है लेकिन हकीकत आज भी वही जो सालों से चली आ रही है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रीडर्स ने जब आरटीओ ऑफिस में दलालों की धमाचौकड़ी का जिक्र करते हुए अपनी समस्या बताई तो हमारी टीम ट्यूजडे को हकीकत जानने आरटीओ ऑफिस पहुंची। इस दौरान साफ दिखा कि आरटीओ कैंपस में कार्यरत अधिकारियों ने अवैध वसूली के लिए अपने 'गुर्गे' बैठा रखे हैं। जो दलालों से डील करते हैं। स्टिंग में ड्राइविंग टेस्ट ले रहे आरआई के पास खड़े एक 'गुर्गे' की फोटो कैमरे में कैद हो गई। उसके आसपास कई और प्राइवेट कर्मचारी वसूली के लिए खड़े थे लेकिन कैमरा देखकर वो भाग खड़े हुए। कैमरा देख भागे 'गुर्गे' दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जब अपने फोटो जर्नलिस्टके साथ ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक के पास पहुंचा तो वहां मौजूद आरआई के पास संजय नाम का युवक खड़ा होकर लोगों से आवेदन फॉर्म ले रहा था। थोड़ी दूर पर रखी एक टेबल में आरआई का दूसरा 'प्राइवेट' कर्मचारी शेरसिंह आवेदकों के फॉर्म चेक कर रहा था। जब फोटोजर्नलिस्ट ने इन दोनों की फोटो खीचीं तो टेबल में बैठा प्राइवेट कर्मचारी टेबल छोड़कर भाग खड़ा हुआ। कुछ मिनट में 'प्राइवेट' कर्मचारी की जगह कार्यालय में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को बैठा दिया गया। 'तीन गुना पैसे देने पड़ते हैं' बाइक का परमानेंट डीएल बनवाने आए एक आवेदक ने अपनी पहचान छुपाने की रिक्वेस्ट पर बताया कि 750 रुपये सरकारी फीस है लेकिन आरआई के प्राइवेट कर्मचारी को अगर 2500 रुपए दलाल के माध्यम से नहीं देंगे तो 10 बार में भी ड्राइविंग टेस्ट पास नहीं होगा। 'माल' देते ही एक बार में टेस्ट क्लियर हो जाता है। कार का परमानेंट डीएल बनवाने में 1000 रुपये निर्धारित फीस है। लेकिन अगर एक बार में आसानी से डीएल बनवाना है तो 2800 रुपए देने ही पड़ेंगे। वरना आप चक्कर काटते रह जाएंगे। तीन गुनी फीस देने के बाद आवेदक को ड्राइविंग टेस्ट भी देने की जरूरत नहीं होती है। कौन देता है इनको वेतन? दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम ने जब इस मामले में आरटीओ से बात की तो उन्होंने कहा कि ये युवक कई वर्षो से यहां हेल्पर के रूम में काम करते आ रहे हैं। अगर ऐसा मान भी लें तो सवाल ये है कि ये बिना पैसे के काम क्यों करते हैं? अगर पैसा मिलता है तो कौन देता है। एक प्राइवेट कर्मचारी ने नाम न पब्लिश करने की रिक्वेस्ट पर बताया कि अधिकारी सीधे पैसे नहीं लेते हैं। माध्यम के जरिए उनके पास पैसा पहुंचता है। जिसमें कुछ हिस्सा हमको भी दे देते हैं। आंकड़े सरकारी फीस दलालों की फीस दोपहिया वाहन का परमानेंट डीएल -700- 2200 कार का परमानेंट डीएल फीस -700- 2200 बाइक व कार दोनों का परमानेंट डीएल -1000- 3000 कोट कार्यालय में कार्यरत 'प्राइवेट' कर्मचारियों की जानकारी मुझे नहीं है। वेडनेसडे को इस मामले की जांच की जाएगी। अगर ऐसा है तो आरोपी कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई होगी। -संजय सिंह, आरटीओ, प्रशासन कानपुर