-प्रदेश में बीजेपी की गवर्नमेंट बनने के बाद पिछली सपा सरकार की योजनाओं के पूरा होने को लेकर आशंकित हैं शहरवासी

-केन्द्र व प्रदेश सरकार की खींचातानी में फंसे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के अब पूरा होने की बढ़ी उम्मीद

VARANASI

सूबे की सरकार बदल गयी है। काफी जद्दोजहद के बाद मुखिया भी तय हो गया। सरकार क्या करेगी-कैसे करेगी ये तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन बनारस के लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि शहर में चल रहे उन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का क्या होगा जो पिछली सरकार के टॉप लिस्ट में थे। क्या वर्तमान सरकार इन्हें जारी रखेगी? अगर रखेगी तो उसमें कोई बदलाव होगा? सबसे बड़ा सवाल पूर्व सीएम अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट वरुणा कॉरीडोर के वजूद का है कि अब वो किस ओर जाएगा। क्योंकि यह प्रोजेक्ट लगातर विवादों में रहा है।

चल रहा कछुए की चाल

पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने गोमती कॉरीडोर की तर्ज पर वरुणा कॉरीडोर बनाने की घोषणा की थी। फ्क् मार्च ख्0क्म् को इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। इसकी जिम्मेदारी सिंचाई विभाग को दी गयी तो उसने एक निजी एजेंसी को निर्माण की जिम्मेदारी दी। थोड़ा बहुत काम हुआ था कि जून-जुलाई में बारिश और उसके बाद वरुणा में आयी बाढ़ की वजह से लगभग पांच महीने तक निर्माण कार्य बंद रहा। इस दौरान करोड़ों का सामान बाढ़ के पानी में डूबा रहा। जो बना भी था वह भी क्षतिग्रस्त हो गया। नवम्बर के अंत तक काम फिर से शुरू हुआ। शास्त्री ब्रिज से लेकर चौकाघाट ब्रिज के बीच दोनों ओर पाथवे बनाया गया लेकिन एक साल में महज लगभग एक किलोमीटर ही निर्माण हो सका। कुछ दिनों पहले वरुणा कॉरीडोर के निर्माण सामग्री में जबरदस्त आग लग गयी। करोड़ों का नुकसान हुआ है। वरुणा कॉरीरोड के तहत वरुणा नदी के दोनों किनारों पर करीब दस किलोमीटर तक पाथवे, रेलिंग, पक्के घाट, बैठने के लिए बेंच, रंगीन लाइट लगाने की जरूरत है। पूरी परियोजना की लागत ख्0क् करोड़ निर्धारित है। इस काम की अवधि मार्च ख्0क्8 तय है।

कहां दौड़ेगी मेट्रो

सपा सरकार लखनऊ, कानपुर के साथ बनारस में मेट्रो चलाने की चाह रखती थी। इसके लिए काम भी शुरू हुआ। मेट्रो का रूट तय किया गया। डीपीआर भी बन गया। डीपीआर के मुताबिक ख्9.ख्फ्भ् किलोमीटर मेट्रो चलनी है। इस काम की अनुमानित लागत क्भ्,98ब् करोड़ रुपये है। बनारस में मेट्रो चलाने की अनुमति बाकायदा कैबिनेट ने दिया था। इससे बनारस के लोगों को आस जगी। उन्हें लगा कि शहर की तकलीफ देने वाली टै्रफिक सिस्टम से निजात मिल जाएगी। सफर के दौरान प्रदूषण और धूल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। लेकिन मेट्रो के मामले में बनारस अन्य दो शहरों से पिछड़ गया।

ओवर ना हो जाए फ्लाईओवर

पिछली सरकार ने शहर की बेतरतीब टै्रफिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए फ्लाईओवर बनवाना शुरू किया। इनमें सबसे प्रमुख चौकाघाट-कैंट फ्लाईओवर का विस्तार और महमूरगंज-मंडुवाड़ीह फ्लाईओवर हैं। चौकाघाट फ्लाईओवर का काम काफी स्लो चल रहा है। जिस गति से काम चल रहा है उससे लगता है कि अगले दो साल में भी पूरा नहीं हो सकेगा। वहीं महमूरगंज-मंडुवाडीह फ्लाईओवर का जो काम स्टेट गवर्नमेंट के जिम्मे थे वो पूरा हो गया रेलवे का काम बचा है। गंगा में बना रहा सामनेघाट-रामनगरपुल भी सपा सरकार की देन है। पिछली तीन सरकारें अपना कार्यकाल पूरा कर लीं लेकिन इसका काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है।

मिलेगा साथ तो बनेगी बात

-बनारस में डेवलपमेंट को लेकर सेंट्रल गवर्नमेंट ने भी तमाम प्रोजेक्ट बनाए हैं।

-इनमें से कई स्टेट के सहयोग से पूरे होने हैं। वर्तमान में केन्द्र और प्रदेश में बीजेपी गवर्नमेंट होने से विकास के तेज गति से होने की संभावना है।

-शुद्ध पेयजल की सप्लाई और सीवेज सिस्टम को डेवलप करने के लिए केन्द्र ने फ्ख्0 करोड़ की योजना बनायी है। इसके पूरा होने में आ रहा स्टेट गवर्नमेंट का अड़ंगा खत्म होगा।

-राजघाट के पास पक्का घाट, घाटों की सुंदरता निखारना और गंगा की सफाई दोनों सरकारें मिलकर कर सकेंगी।

-बनारस में पर्यटन के विकास की केन्द्र की योजना पूरी हो सकेगी। सारनाथ और गंगा घाट पर 7.फ्ब् करोड़ की लागत से लाइट एण्ड साउंड सिस्टम जो स्टेट गवर्नमेंट की अड़ंगेबाजी से रुका था वो पूरा हो सकेगा।

-बनारस को स्मार्ट सिटी बनाना केन्द्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है। इसके लिए ख्ख्88.88 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट केन्द्र ने आरक्षित किया है। इसमें स्टेट का सहयोग मिलेगा।

-पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट गंगा में जल परिवहन का मार्ग आसान होगा। पिछली प्रदेश सरकार और केन्द्र की खींचातानी की वजह से यह काम लटका हुआ है।