- फरियादियों को काउंटर-काउंटर घुमाते रहे अधिकारी

- किसी का कोई भी काम मौके पर नहीं हुआ निस्तारित

- दिक्कतों को लेकर पहुंचने वाले कई लोगों को अधिकारियों ने खदेड़ा

LUCKNOW :

जनता के दर्द को कम करने के लिए प्रदेश के सभी आरटीओ ऑफिस में मंडे को लगाई गई जनता अदालत ने भीषण गर्मी में दर्द को और बढ़ाया। भीषण गर्मी में अपनी समस्याओं के निपटारे के लिए राजधानी स्थित आरटीओ ऑफिस पहुंचे फरियादियों को निराश होकर ही लौटना पड़ा। अधिकारियों ने फरियादियों को इतने 'नियम-कानून' समझा दिए कि वह भाग खड़े हुए। और तो और कई लोगों को तो इन अधिकारियों ने डांट कर भगा दिया। एक भी फरियादी की समस्या या अप्लीकेशन तक नहीं ली गई। हद तो तब हो गई कि जब सुबह 11 बजे शुरू हुई जनता अदालत में लगी कुर्सियों से अधिकारी डेढ़ बजे गायब हो गए।

एक अधिकारी और एक बाबू

ट्रांसपोर्ट नगर स्थित आरटीओ कार्यलय में लोगों की ड्राइविंग लाइसेंस और गाड़ी से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए यहां पर सुनवाई हुई। मौके पर खुद एआरटीओ प्रशासन राघवेन्द्र सिंह और उनके साथ एक बाबू बैठे थे। अन्य सभी लोग अपने काम में व्यस्त रहे। फरियादी की समस्याओं को सुनने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। जो कोई भी अपनी समस्या लेकर इनके पास पहुंचता तो यहां मौजूद अधिकारी उससे ऐसा व्यवहार कर रहे थे कि लोग भाग खड़े होते।

फिर दलालों की ली 'शरण'

आखिरकार समस्याओं की सुनवाई ना होता देख कई लोगों ने दलालों की शरण में जाने को मजबूर हो गए। जनता अदालत में बैठे अधिकारियों ना तो किसी की शिकायत सुनी और ना ही किसी की अप्लीकेशन तक ली।

कोट

गाडि़यों को लेकर जो भी समस्याएं सामने आई, उन्हें सुना गया और उनका निस्तारण भी किया गया। लोग हमारे पास रूटीन के काम लेकर ही आ रहे थे। कोई फीस की जानकारी कर रहा था तो कोई फॉर्म की।

- राघवेन्द्र सिंह

एआरटीओ प्रशासन,

आये थे समस्या लेकर परेशान होकर चले गये

केस एक

गाड़ी तो है लेकिन पता नहीं मालिक कौन

जनता अदालत में एक फरियादी ने जब अपनी समस्या बताई तो मौके पर मौजूद अधिकारियों ने ऐसा जाहिर किया कि अभी दस मिनट में उसकी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी जाएगी। लेकिन दस मिनट तो दूर पांच मिनट बाद ही उसे मौके से हटाकर कहा गया कि वह बैंक जाकर अपनी समस्या बताए। जनता अदालत में पहुंचे अनूप अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने पिछले साल जनवरी 15 में ईऑन गाड़ी हजरतगंज स्थित बैंक से ऑक्शन में दो लाख की खरीदी थी, लेकिन गाड़ी के पेपर उनके पास नहीं है। उन्होंने जब अपनी समस्या यहां बताई तो उनसे कहा गया कि आप बैंक जाइये वहीं अपनी गाड़ी की समस्या बताइये। वहीं जब अनूप अग्रवाल ने कहा कि गाड़ी नम्बर से जांच ले कि गाड़ी किस के नाम से है तो भी इंकार कर दिया गया। यहां पर मौजूद अधिकारियों ने यह भी नहीं बताया कि बैंक से इस गाड़ी को लेकर उनसे कोई पत्राचार हुआ है या नहीं। उन्होंने बताया कि वह पिछले एक साल से इस गाड़ी के पेपर के लिए चक्कर लगा रहे हैं। उम्मीद थी कि आज समस्या दूर हो जाएगी। लेकिन निराशा ही हाथ लगी।

केस दो

एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौड़ाते रहे

ओमेक्स सिटी से आए एसएस चौधरी ने बताया कि उनके रजिस्ट्रेशन पेपर खो गये थे। जब उन्होंने अपनी प्रॉब्लम बताई तो कहा गया कि जाइये फॉर्म ले आइये और भरिए। जब फॉर्म भर कर अधिकारी के पास गए तो उनसे कहा कि इसके लिए संबंधित काउंटर पर जाइये, हमारे पास क्यों आए है। उन्होंने बताया कि जब हमें ही धक्के खाने थे तो भला इस जनता अदालत का क्या मतलब है। ऐसे तो हर कोई अपना काम करा लेता। काउंटर नम्बर बता कर अधिकारी भला हम पर क्यों एहसान कर रहे हैं।

बॉक्स

भूलभूलैया है यहां के काउंटर

रीटेस्ट देने पहुंचे राहुल ने जनता अदालत से रीटेस्ट के लिए फीस जमा करने की जानकारी क्या मांग ली, अधिकारियों ने कहा कि क्या यह पूछताछ कांउटर है। इतना सुनते ही राहुल वहां से खिसक लिए। उन्होंने बताया कि यहां पर फीस जमा करने के लिए अलग-अलग जगह काउंटर बने हैं। फॉर्म के लिए अलग-अलग काउंटर बने हैं। सभी एक दूसरे से खासी दूरी पर बने हैं। सभी जगह सिंगल विंडो सिस्टम पर काम हो रहा है यहां पर दर्जनों विंडो बनी हुई है।