-बच्चों की क्षमता और इंटरेस्ट जाने बिना पेरेंट्स पाल लेते हैं इंजीनियर, डॉक्टर या अफसर बनाने की चाहत

- पेरेंट्स की उम्मीदों और खुद की ख्वाहिशों के बीच पिसकर स्टूडेंट्स अक्सर खत्म कर लेते अपनी जिंदगी

- नौबस्ता में फ‌र्स्ट ईयर की स्टूडेंट ने फांसी लगा दी जान, एक सप्ताह में स्टूडेंट सुसाइड का तीसरा मामला

KANPUR: कॉम्पटीशन के दौर में हर पेरेंट्स बेटों से ढेरों उम्मीद लगाए बैठे हैं। बच्चों की क्षमता और इंटरेस्ट जाने बगैर, उन पर डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर बनाने की चाहत पाल बैठे हैं। सभी सुख, सुविधाएं देकर बच्चों को उम्मीदों पर खरा उतरने का मनोवैज्ञानिक दबाव भी बना रहे हैं। यह उम्मीद और दबाव कई बार पेरेंट्स को उम्र भर का दर्द दे जाता है। क्योंकि पेरेंट्स की उम्मीदों और अपनी ख्वाहिशों के बीच दबकर अक्सर बच्चे जिंदगी की रेस हार जाते हैं। यही वजह है कि बोर्ड एग्जाम के सीजन में स्टूडेंट्स के सुसाइड करने के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। मंडे को नौबस्ता से भी ऐसी ही खबर आई। फ‌र्स्ट ईयर की स्टूडेंट ने पेपर खराब होने पर फंदे पर झूल गई।

पेपर खराब होने से थी उदास

नौबस्ता, केशवनगर में रहने वाले रंजीत गुप्ता की 16 वर्षीय बेटी कोमल फ‌र्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी। उसके एग्जाम चल रहे थे। पेपर खराब होने के कारण वह कई दिनों से उदास थी। मंडे देर रात सभी लोग अपने कमरे में सोने चले गए। सुबह, कोमल की बहन उसे उठाने के लिए रूम पर पहुंची तो उसकी चीख निकल गई। कोमल का शव फंदे से लटक रहा था।

स्टूडेंट्स के सुसाइड का तीसरा मामला

पढ़ाई के प्रेशर से स्टूडेंट द्वारा मौते चुनने का नौबस्ता में सप्ताह भर के भीतर यह तीसरा मामला है। इससे पहले 21 मार्च को बर्रा थानाक्षेत्र में नगर निगम संविदा कर्मचारी की बीए में पढ़ने वाली बेटी ने स्टडी को लेकर पेरेंट्स के डांटने पर फांसी लगा जान दे दी थी। 23 मार्च को कल्याणपुर के विनायकपुर में इंटर का पेपर खराब होने पर 17 वर्षीय स्टूडेंट ने फांसी लगाकर सुसाइड कर ि1लया था।

पेरेंट्स न होने दें कम्युनिकेशन गैप

सिटी के वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ। रवि कुमार ने बताया कि स्टूडेंट्स द्वारा सुसाइड की घटनाओं का मेन रीजन पेरेंट्स का अपने बच्चों के साथ रेगुलर कम्युनिकेशन न रखना होता है। डॉक्टर के अनुसार पैरेंट्स को बच्चे के डिप्रेशन में जाने का पता चलते ही उससे कम्युनिकेशन बढ़ा देना चाहिए और उसके साथ ज्यादा समय बिताना चाहिए।

एटीट्यूड जान कर दें डायरेक्शन

डॉक्टर के अनुसार हर बच्चा एक समान नहीं होता है। ऐसे में पैरेंट्स को अपने बच्चे का एटीट्यूड जान कर उसे उसके इंट्रेस्ट के सब्जेक्ट पर फोकस करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके साथ ही पेरेंट्स को अपने बच्चों को किसी अन्य इंटेलीजेंट बच्चे से कंपेयर करने से भी बचना चहिए, जिससे इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है।

-वरजन-

पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ फ्रैंडली रहना चाहिए। इससे मन में सुसाइड जैसा विचार आने पर इसका पता चल सकता है और उन्हें यह कदम उठाने से रोका जा सकता है।

- डॉ। रवि कुमार, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ।

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- अपने बच्चों की फिजिकल एंड मेंटल कैपिसिटी पहचानें

- बच्चे को रिश्तेदार या पड़ोसी के बच्चे का एग्जाम्पल न दें

- बच्चे की किस फील्ड में रुचि है, यह पहचाने की कोशिश करें

- इस बात को समझें कि करियर सिर्फ इंजीनियर, डॉक्टर या अफसर बनने में नहीं

- अपनी उम्मीदों के दबाव में बच्चों की ख्वाहिशों को मरने न दें

- बच्चों को समझाएं लेकिन स्टडी के लिए अनावश्यक दबाव न बनाएं

- बच्चों पर पैसा खर्च करने के साथ टाइम भी स्पेंड करें

- एक दोस्त बनकर उसके मन की बात जानने का प्रयास करें

- जरूरत पड़ने पर किसी अच्छे साइकियाट्रिस्ट से काउंसिलिंग कराएं