फैजाबाद में जन्म

डॉ. राम मनोहर लोहिया सिर्फ एक राजनेता के ही रूप में नहीं बल्कि एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिन्तक के रूप में भी माने जाते हैं। राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को अकबरपुर, फैजाबाद में हुआ था। इनके पिता हीरालाल भी पेशे से अध्यापक होने के साथ ही एक सच्चे राष्ट्रभक्त और गांधी जी के समर्थक थे। जिससे राम मनोहर लोहिया के अंदर भी देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था।  

राजनीति के प्रति रूचि

बचपन में काफी चंचल स्वभाव के राम मनोहर लोहिया की प्राथमिक शिक्षा इनके फैजाबाद से ही हुई थी। वहीं दसवीं कक्षा में इनका दाखिला बम्बई के का मारवाड़ी स्कूल विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल से हुई थी। इसके बाद इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इण्टर की पढाई पूरी की और वहां से कोलकाता चले गए। उनकी अग्रेंजी काफी अच्छी थी। इस बीच उनमें राजनीति के प्रति रूचि पैदा हो चुकी थी।

डॉक्टर बनकर लौटे

कोलकाता के बाद वह बर्लिन चले गए और वहां के हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। यहां पर इन्होंने वैश्विक स्तर पर मशहूर अर्थशास्त्री प्रोफेसर बर्नर जोम्बार्ट के निर्देशन में अपनी पढाई पूरी की। यहां पर प्रोफेसर बर्नर जोम्बार्ट के सानिध्य में तीन महीने इन्होंने दिन रात मेहनत की और धरती का नमक शीर्षक से शोध प्रबन्ध लिखने में जुट गए। यहां से चार साल के बाद वह डॉक्टर बनकर भारत लौटे।

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गांधी जी के साथ

इसके बाद उन्होंने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने के लिए जमीनी स्तर पर मेहनत की। लोहिया किसी मानव-मात्र को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। राम मनोहर लोहिया गांधी जी आंदोलनों में भी शामिल रहे। 1942 में महात्मा गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में राम मनोहर लोहिया समाजवादी मित्र मण्डली के साथ अंग्रेजों को चकमा देकर बच निकले थे।

कांग्रेसी के खिलाफ

डॉ. राम मनोहर लोहिया कांग्रेस की राजनीति नीतियों के हमेशा खिलाफ रहे। वह सार्वजनिक मंचों पर इस बात को बोलते थ्ो कि देश की हालत को सुधारने में कांग्रेस नाकाम रही है। जिससे उसका सत्ता में बने रहना देश के लिए हितकर नहीं है। यह नए समाज के विकास में बाधक है। इसलिए डॉ. लोहिया ने कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ जैसे नारा दिया था। 1967 के आम चुनाव में एक बड़ा परिवर्तन हुआ।

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सूत्राधार के रूप में

डॉ. लोहिया इस बड़े परिवर्तन के सूत्राधार के रूप में जाने गए। यह पहला ऐसा मौका था जब देश के 9 राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें गठित हुई थीं। जिनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य शामिल थे। इस बड़े बदलाव के बाद अपने इस अभियान में उन्होंने खास दोस्त व स्वतंत्रता संग्राम जेपी को भी शामिल किया।

अलविदा कह गए

हालांकि वक्त के आगे किसी की नहीं चलती है। यही कुछ डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ भी हुआ। 30 सितम्बर, 1967 को राम मनोहर की तबियत बिगड़ने पर उन्हें नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में एडमिट कराया गया। जहां 12 अक्टूबर 1967 को महज 57 वर्ष की उम्र में वह दुनिया को अलविदा कह गए। आज उनके नाम पर देश में कई अस्पताल, कॉलेज और पार्क आदि बन चुके हैं।

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