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RANCHI (14 Oct): रांची यूनिवर्सिटी के पास फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट(एफसीआरए) कोड नहीं है। नतीजन, फॉरेन यूनिवर्सिटीज के साथ कोलैबरेशन और फंडिंग हासिल करने के लिए आरयू सक्षम नहीं है। जियोलॉजिस्ट डॉ नितिश प्रियदर्शी ने बताया कि एफसीआरए कोड रिसर्च के लिए फॉरेन फंडिंग लेने में जरूरी होता है। पटना यूनिवर्सिटी और बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी तक के पास एफसीआरए कोड है। नतीजा यहां के शोधार्थियों को रिसर्च के लिए डायरेक्ट फॉरेन फंडिंग मिल जाती है। इससे शोधार्थी, विद्यार्थी और शिक्षक के साथ समूची यूनिवर्सिटी को फायदा होता।

 

तो बढ़ता रिसर्च का दायरा

रांची यूनिवर्सिटी पीजी छात्र संघ के अध्यक्ष तनुज खत्री ने बताया कि यदि यूनिवर्सिटी के पास एफसीआरए कोड होता तो फॉरेन यूनिवर्सिटीज के साथ मिलकर यहां न सिर्फ शोध होता, बल्कि फॉरेन फंडिंग से रिसर्च के लिए धन भी अधिक मिलता। यूनिवर्सिटी के विकास के लिए यह जरूरी भी है। इस बाबत रांची यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ रमेश कुमार पांडेय ने बताया कि एफसीआरए कोड लेने के लिए यूनिवर्सिटी ने प्रयत्‌न किया था, पर नहीं मिल पाया।

 

 

क्या है एफसीआरए कोड

एफसीआरए कोड फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट का विस्तार है। चाहे कोई संस्थान हो या एनजीओ जिसे यह कोड मिला हुआ है उसके लिए यह जरूरी है कि वह फॉरेन कंट्रीब्यूशन का रिटर्न फाइल करे। गौरतलब है कि हाल में ही यूनियन होम मिनिस्ट्री ने ब्8ब्ख् एनजीओ और संस्थानों का एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल कर दिया है। जिन संस्थानों के लाइसेंस कैंसिल हुए हैं, उनमें इग्नू और गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज भी शामिल हैं।

 

 

क्या हो सकती है वजह

- सेंट्रलाइज्ड कैंपस नहीं है

- अंतरराष्ट्रीय स्तर का रिसर्च नहीं होता

- यूनिवर्सिटी ने लाइसेंस के लिए अप्लाई करने में गंभीरता नहीं दिखाई

 

 

ये होते फायदे

- रिसर्च के लिए फॉरेन फंडिंग मिलती तो वित्त की कमी नहीं होती। फंड रहने से शोध भी गुणवत्तापूर्ण होता

- विदेशी विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ कोलैबोरेशन में शोध कार्य होता जिससे यूनिवर्सिटी में शोध कार्य में वैश्विक दृष्टि का समावेश होता

- फंड की उपलब्धता से यूनिवर्सिटी नये रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर सकती

 

 

 

रांची यूनिवर्सिटी ने एफसीआरए लाइसेंस लेने के लिए प्रयास किया था, पर यह अब तक मिल नहीं पाया है।

-डॉ रमेश कुमार पांडेय, वीसी, आरयू

 

 

एफसीआरए रहने से यूनिवर्सिटी को शोध के लिए फंड की कमी नहीं होती। इससे शोध की गुणवत्ता भी बढ़ती शिक्षकों के साथ स्टूडेंटस को भी फायदा होता।

डॉ नितिश प्रियदर्शी, जियोलॉजिस्ट

 

 

रांची यूनिवर्सिटी को एफसीआरए रहता तो इससे न सिर्फ रिसर्च का दायरा बढ़ता बल्कि विदेशी शिक्षकों और विद्यार्थियों की आवाजाही आरयू में बढ़ती। इससे रिसर्च की नयी तकनीक के प्रति समझ का भी विस्तार होता।

-तनुज खत्री, अध्यक्ष, पीजी छात्र संघ, आरयू