खेत और वित्तीय क्षेत्रों को किया प्रभावित

मानसून ने अपनी धीमी और देर से हुई शुरुआत से खेत और वित्तीय क्षेत्रों को खास प्रभावित किया है। ऐसे में लगातार दूसरे एल नीनो वर्ष में भी महंगाई दर और ग्रामीण संकट के फैलने का डर देशभर में फैलता जा रहा है। नेचर कम्यूनिकेशन जरनल में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक कहा जा रहा है कि हिंद महासागर में लगातार बढ़ रही वार्मिंग गर्मियों में मानसून परिसंचरण (समुद्र तल और उसके ऊपर के वातावरण से उठने वाली हवाओं) को प्रभावित कर रही है और इस तरह से साउथ एशिया के हिस्से में बहुत कम बारिश आती है।    

ऐसा कहती है स्टडी

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक मैथ्यू कोल ने एक स्टडी के आधार पर यह बताया कि 1901 से 2012 तक के डाटा को इकट्ठा करके यह पाया गया कि मध्य साउथ एशिया से भारत-बांग्लादेश होते हुए पाकिस्तान के दक्षिण क्षेत्र की ओर तक बारिश लगातार कम हो रही है। यह कमी सबसे ज्यादा मध्य भारत में रिकॉर्ड की गई, जहां किसान कृषि के लिए सबसे ज्यादा बारिश पर निर्भर हैं। यहां अब तक बारिश में 10 से 20 प्रतिशत तक की कमी रिकॉर्ड की गई है। इसके तहत कहा जाता है कि जलवायु मॉडल का सुझाव है कि ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के कारण हिंद महासागर बिना रुके निरंतर गर्म होने की राह पर अग्रसर है।

भविष्य के लिए कुछ भी कह पाने में नहीं सक्षम  

डायनमिक मॉडल्स पर काम करने वाले कोल से यह सवाल पूछने पर कि क्या मानसून की बारिश में इस तरह से कमी आगे भी आती रहेगी, उन्होंने जवाब दिया कि वर्तमान के मॉडल्स अभी इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते। वह कहते हैं कि वर्तमान जलवायु मॉडल पिछले मानसून के रुझान को प्रोत्साहित करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए वह भविष्य के लिए कुछ भी कह पाने में सक्षम नहीं हैं।

औरों की अपेक्षा हिंद महासागर की गर्मी कुछ ज्यादा ही बढ़ी

एक स्टडी के बाद ये सामने आया है कि भारतीय उपमहाद्वीप और हिंद महासागर के समुद्र तल के तापमान में बीते सात दशकों से अंतर आ रहा है। समुद्र तल के तापमान में इस कमी में मुख्य रूप से हिंद महासागर की वार्मिंग ने योगदान दिया है। हिंद महासागर की सतह में गर्मी, खासतौर पर पश्चिमी क्षेत्रों में, बीती शताब्दियों में 1.2°C तक ऊपर पहुंच गई है। यह किसी अन्य समुद्र तल की सतह से बहुत ज्यादा है।  

कोल के अलावा इस स्टडी में ये भी हैं सहयोगी

ये पूरी स्टडी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से आयोजित कराए गए राष्ट्रीय मानसून मिशन के अंतर्गत इंडो-फ्रेंच सहयोग से सामने आई है। कोल के अलावा इस पूरी रिसर्च और विवरण में रितिका कपूर, पास्कल टैरे, रघु मुर्तुगुड्डे, अशोक करुमुरी और बीएन गोस्वामी ने भी सहयोग दिया।

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