एक बार फिर अपने इंट्रेस्ट रेट में भारतीय रिजर्व बैंक ने कटौती की है. इस कटौती के साथ ही इस साल RBI तीसरी बार ऐसी कटौती कर रहा है. इससे पहले जनवरी और मार्च में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की थी. एक बार फिर उसने समान बेसिस प्वाइंट कट किए हैं. अब उम्मीद बन गई है कि इससे ईएमआई भी कुछ कम हो जाएगी. रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को लोन देता है. रेपो रेट में कमी से बैंकों को कम ब्याज देना पड़ता है और बैंकों का ब्याज कम होने से आम लोगों को फायदा होता है.

हालांकि RBI गवर्नर रघुराम राजन ने कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) और स्टैट्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर) में कोई बदलाव करने की घोषणा नहीं की है. भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को रेपो दर में 0.25 फीसद की कटौती की. राजन ने महंगाई दर बढ़ने के संकेत देते हुए कहा कि देश में निवेश का माहौल कमजोर है और अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ़तार सुस्त है. उन्होंने कहा कि 2016 तक महंगाई दर 6 फीसद तक पहुंच सकती है.

बाजार और उद्योग जगत चाहता था कि केंद्रीय बैंक ब्याज दर में चौथाई फीसद से आगे बढ़कर कुछ कदम उठाए. तभी अर्थव्यवस्था की रफ्तार में तेजी आ सकेगी. देश में खुदरा व थोक महंगाई की मौजूदा दर और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े ब्याज दरों में कटौती का पूरा माहौल तैयार कर रहे हैं. बीते वित्त वर्ष 2014-15 की चौथी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़ों ने भी इसका भरोसा दिलाया है कि अगर ब्याज दरें नीचे आएं तो विकास की रफ्तार और तेज हो सकती है. साल 2015 में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन दो बार ब्याज दर में कटौती कर चुके हैं. दोनों बार यानी जनवरी और मार्च में चौथाई-चौथाई फीसद की कटौती हुई थी.

हालांकि कुछ बैंकरों का मानना था कि रिजर्व बैंक को इस बार ब्याज दरों में कटौती के साथ साथ नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी कमी का कदम उठाना चाहिए. बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी उपलब्ध है और कर्ज लेने वाले नहीं है। ऐसे में यदि सीआरआर (बैंकों की ओर से जमा के अनुपात में आरबीआइ के पास रखा जाने वाला धन) में भी आधा फीसद तक की कटौती हो जाती तो बैंकों को फंड लागत कम करने में आसानी होती. बैंकों के अलावा फिक्की व एसोचैम जैसे उद्योग संगठन भी रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में और नरमी की मांग कर चुके हैं. शेयर बाजार पहले से ही २५ बेसिस प्वाइंट की कटौती को डिस्काउंट कर चुका है.

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