न्द्दक्त्रन् (24 ह्रष्ह्ल.): दिवाली आ रही है। धनलक्ष्मी का ये त्योहार 52 पत्तों के शौकीनों के लिए किसी बड़े अवसर से कम नहीं होता। कुछ रस्म तो कुछ शौक और अपनी किस्मत आजमाने के नाम पर अपने-अपने दांव लगाते नजर आते हैं। शहर में भी कुछ यही माहौल बन रहा है। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के बाद 'धनवर्षा' के लिए पॉश कॉलोनियों के कई घरों में जुए के फड़ सजे नजर आएंगे। कई सामाजिक संगठन या क्लबों के सदस्य फेस्टीवल पार्टी के नाम पर अपनी बाजियां खेलेंगे। महिलाएं भी बादशाह-बेगम से बाजियों को अपने नाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। प्लानिंग और स्पॉट फिक्स हो चुके हैं, बस इंतजार दिवाली का है।

स्टेट्स सिंबल बन रहा जुआ

दिवाली पर जुआ एक ट्रेंड और स्टेट्स सिंबल बनता जा रहा है। शहर के जूता कारोबारियों के अलावा स्वर्णकार और बिल्डर्स भी इस गेम में हाथ आजमाते हैं। चूंकि अब दिवाली नजदीक है, तो मार्केट से लेकर फर्मो तक में चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। कहां बैठेंगे, कहां गड्डियों को फेंटेंगे और कहां बाजियां लगाई जाएंगी, इस तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं। कोई होटल में अपना भाग्य आजमाएगा तो कोई अपने घर पर ही महफिल को जमाएगा। कॉकटेल पार्टियों के साथ ताश के 52 पत्ते भी फेंके जाएंगे। तीन पत्ती, रमी, फ्लैश आदि गेम में हाथ आजमाया जाएगा। ऐसा नहीं कि सिर्फ कारोबारी तबका इस 'फैशनेबल प्रथा' से जुड़ा है, बल्कि शहर के तमाम समाज सेवी क्लब और संगठन के पदाधिकारी भी दिवाली पूजन और फेस्टीवल पार्टी के नाम पर एक साथ बाजियां लगाएंगे। खास बात एक और है, वह यह कि पुरूषों के साथ महिलाओं के हाथों में बादशाह, बेगम और इक्का के कार्ड लगे नजर आएंगे। रात के सन्नाटे में जुए की महफिलों पर हार-जीत का शोर मचेगा।

बाजी फंसी तो लाखों में खेलेंगे

दांव लाखों के होंगे। और बाजी बैठ गई तो फिर करोड़ों भी दांव पर लग जाएं तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। बादशाह बेगम के फेर में कई गुलाम भी बनते नजर आएंगे। ये तथ्य पुलिस और प्रशासन के संज्ञान में नहीं है, बल्कि उन्हें स्पॉट और टाइमिंग मालुम रहता है, बावजूद इसके वह आंखें मूंदे बैठे रहेंगे। कार्रवाई के नाम सिर्फ 'छुटभैये जुआरी' को पकड़कर पुलिस अपने दायित्व की इतिश्री कर देगी।