अमेरिका को एक बार फिर से मंदी का खौफ सताने लगा है. दरअसल, अमेरिका में क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज ने अमेरिकन गवर्नमेंट की लोन लेने की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. आशंका जताई जा रही है कि अगर कांग्रेस (अमेरिकी संसद) ने अमेरिकी गवर्नमेंट की बॉरोविंग लिमिट दो अगस्त तक नहीं बढ़ाई तो अमेरिका में 2008 जैसी मंदी का दौर वापस लौट सकता है.

किसी तरफ राहत नहीं

प्रेसीडेंट ओबामा ने सांसदों को 36 घंटे का अल्टीमेटम देकर खतरा टालने की पहल की है. चूंकि, अमेरिका वल्र्ड की सबसे बड़ी फाइनेंशियल पावर है, इसलिए इसकी चपेट में पूरा वल्र्ड आ सकता है. अमेरिका की बॉरोविंग लिमिट 14.3 अरब डॉलर तक है. अमेरिकन गवर्नमेंट की उधार लेने की क्षमता पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं. अगर कर्ज के मामले में अमेरिकन गवर्नमेंट की तरफ से छोटी सी भी गड़बड़ी होती है तो क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी इनवेस्टर्स सर्विस गवर्नमेंट की कर्ज लेने की क्षमता को लेकर रेटिंग गिरा देगी. वहीं, स्टैंडर्ड एंड पुअर ने भी अमेरिकी सांसदों को वॉर्निंग दी है कि अगर गवर्नमेंट अपनी मौजूदा कर्ज अदा करने की क्षमता बरकरार रखती है और खर्च रोक देती है तो भी वह गवर्नमेंट की रेटिंग को गिरा सकती है.

हर जगह है खतरा

इस समय यूरोप पर भी मंदी का संकट गहरा गया है. ग्रीस पर डिफॉल्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. उसे सपोर्ट करने के लिए चीन ने लोन दिया हुआ है. उधर चीन खुद भी अरबों डॉलर के कर्ज तले दबा हुआ है. ऐसे में अगर ग्रीस डिफॉल्टर घोषित होता है तो चीन की इकॉनमी पर भी असर पड़ेगा. चीन की इकॉनमी डगमगाई तो मंदी का कहर एशिया पर भी टूटेगा.

क्या है संकट

इकॉनमिस्ट्स का कहना है कि रेटिंग में गिरावट का मतलब है कि अमेरिका को दिया जाने वाला लोन रिस्की हो सकता है. इसकी वजह से अमेरिका में इंट्रेस्ट रेट्स हाई हो जाएंगे. इसके चलते से लोन देने में कमी आएगी और आखिरकार इकॉनमी में कैश लिक्विडिटी कम हो जाएगी.

क्या पड़ेगा असर

एक्सपट्र्स का कहना है कि अमेरिकन गवर्नमेंट की लोन लेने और देने की क्षमता दुनिया की इकॉनमी के लिए सबसे अहम बात रही है. अब अगर अमेरिकन गवर्नमेंट की ही रेटिंग गिर जाएगी तो इसके रिजल्ट्स बेहद खराब होंगे.

क्या हो रहा है उपाय

डेमोक्रेट और रिपब्लिकन सांसदों के बीच इस मुद्दे पर पिछले छह दिनों से इमरजेंसी मीटिंग चल रही है. प्रेसीडेंट बराक ओबामा भी इसमें शामिल हैं. उन्होंने 2 अगस्त की डेडलाइन तय की है.

कहां है पेंच

जहां रिपब्लिकन सांसद खर्च में और अधिक कटौती की मांग कर रहे हैं वहीं डेमोक्रेट चाहते हैं कि खर्चों में कटौती न हो बल्कि कॉरपोरेट्स पर अधिक टैक्स लगाकर लोन क्राइसिस से उबरने का रास्ता निकाला जाए.

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