-बहुत ही आसान है प्लास्टिक रिसाइकल प्रोसेस

-रिसाइकल होने के बाद फिर बनाए जाते हैं प्लास्टिक प्रोडक्ट

GORAKHPUR : आज शहर में चारों तरफ प्लास्टिक का कचरा नजर आता है। हर कोई अपने घर का कचरा रोड्स, नदी के किनारे, खाली प्लॉट और गलियों के मुहाने पर फेंक देता हैं। कूड़ा बीनने वाले इसमें अपने काम का प्लास्टिक बीन लेते हैं। जीएमसी की गाडि़यां भी कूड़े को शहर से दूर ले जाकर किसी नदी के किनारे गिरा देते हैं। बाद में यही कचरा नदी, नालों और सड़कों पर बिखरा नजर आता है, लेकिन क्या आपने सोचा है कि यह जो प्लास्टिक कचरा है इसे दोबारा यूज में लाया जा सकता है और उससे डिफरेंट प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं।

ऐसे रिसाइकल होता है प्लास्टिक

-पहले प्लास्टिक रिसाइकल कंपनी आपके घरों या कूड़ा उठाने वाली कंपनी से प्लास्टिक कचरा कलेक्ट करती है।

-इसके बाद इसे ट्रकों में भर भर कर रिसाइकलिंग प्लांट पर ले जाया जाता है। जहां पर उसे वेयर हाउस में रखा जाता है।

-इसके बाद इसे आगे के प्रोसेस के लिए भेजा जाता है। जहां पर प्लास्टिक कचरे की गहन जांच की जाती है और काम के प्लास्टिक कचरे को छांटा जाता है।

-फिर इसे अगली प्रक्रिया के लिए आगे भेजा जाता है। वहां पर छांटे गए काम के प्लास्टिक को छोटे छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। बाद में इसे बॉयोडिग्रेबल सोप और पानी से धोया जाता है।

-अगली प्रक्रिया में प्लास्टिक को पीसा जाता है। या यो कहें इसे जरूरत के हिसाब से कई तरह के महीन टुकड़ों में पीस दिया जाता है। इतना सब हो जाने के बाद इसे बॉक्सेस में पैक किया जाता है।

-इसके बाद इसे फाइनल प्रोसेस के लिए डिफरेंट प्रोडक्ट बनाने के लिए संबंधित कंपनियों को भेजा दिया जाता है। वहां इन प्लास्टिक से फिर से डिफरेंट प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाए जाते हैं और ये मार्केट में फिर बेचे जाने के लिए तैयार हो जाता है।

ये होता है नुकसान प्लास्टिक कचरे से

-प्लास्टिक की थैलियों को निपटान यदि सही ढंग से नहीं किया जाता है तो वे जल निकास प्रणाली में अपना स्थान बना लेती हैं, जिससे नालियों में अवरोध पैदा होता है, साथ ही जलजनित बीमारियां पैदा होती हैं।

-रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो मिट्टी और अंडर ग्राउंड वाटर को जहरीला बना देता है।

ृ-जिन इंडस्ट्री में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रि-साइकिलिंग यूनिट नहीं लगी होतीं, वे इनके विषैले धुएं से पर्यावरण के लिये समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

-प्लास्टिक की कुछ थैलियों, जिनमें खाना बचा होता है अथवा जो अन्य प्रकार के कचरे में जाकर मिल जाती हैं। जब पशु अपना आहार बना लेते हैं तो उनकी जान को खतरा हो जाता है।

-प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो मिट्टी में आसानी से घुलता मिला नहींहै। इसे यदि मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो अंडर ग्राउंड वाटर लेवर की रिचार्रि्जग रुक जाती है।

प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से पहले सोचें

क्। प्लास्टिक की बोतल में प्रयोग की जाने वाली बाइसफेनोल ए के कारण दिमाग पर प्रभाव पड़ता है। इसके कारण इंसान की समझने और याद रखने की शक्ति कम होने लगती है।

ख्। बाइसफेनोल ए के कारण पेट पर भी बुरा असर पड़ता है। बीपीए नामक रसायन जब पेट में पहुंचता है तब इसके कारण डाइजेशन सिस्टम भी खराब होता है। खाना ठीक से न पचने के कारण कब्ज और गैस की समस्या आम हो जाती है।

फ्। बोतल को बनाने में यूज किया जानाने कैमिकल भ्रूण में क्रोमसोम असामान्यताएं पैदा कर सकता है। इससे बच्चे में जन्म दोष हो सकता है। अगर बोतल के पानी का नियमित सेवन गर्भावस्था में किया गया तो पैदा होने वाले शिशु को आगे चल कर प्रोस्ट्रेट कैंसर या ब्रेस्ट कैंसर तक हो सकता है।

ब्। अगर आपकी पानी की बोतल महीनों से नहीं धुली है और बार-बार उसमें पानी भर कर पी रहे हैं, तो आपको पेट की समस्या होनी तय है। उसमें बैक्टीरिया का घर बन जाता है।

भ्। वे महिलाएं जिन्हें प्रेग्नेंसी नहींहो रही है या उनका पहले मिसकैरेज हो चुका है, उन्हें उन्हें प्लास्टिक की बोतल से पानी पीना अवॉयड करना चाहिए। यह पुरुषों में स्पर्म काउंट भी कम करता है।

म्। पैसे बचाने के चक्कर में सड़क किनारे बिक रही सस्ती प्लास्टिक की बोतल खरीदने वाले सावधान, क्योंकि इन बोतलों को बनाने में केमिकल का यूज होता है,जो गरम होने के बाद पानी में रह जाते हैं।