'बासंती उठो, सुबह हो गई' सिस्टर रिबैका के इन शब्दों से होती है बासंती बोस की सुबह

सेंट जोसेफ सीनियर सिटीजन होम में बनता है 'प्यार', परोसा जाता है 'स्नेह' और निभाया जाता है 'साथ'

ALLAHABAD: एक को पैर में मोच आई तो दूसरी ने दौड़कर मरहम लगाया। एक की उम्र 66 वर्ष और दूसरी की उससे छह महीना कम है, लेकिन रिश्ता ऐसे निभाती हैं जैसे एक मां हो और दूसरी बेटी। यह कहानी है 66 वर्षीय पश्चिम बंगाल की बासंती बोस मंडल की जो दस साल पहले सेंट जोसेफ सीनियर सिटीजन होम में आई तो उन्हें होम की संचालिका सिस्टर रैबेका से इतना ज्यादा प्यार मिला कि अब वह यह बात भी भूल गई हैं कि वह अकेली हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं।

बासंती उठो सुबह हो गई

यह संबोधन जितना आत्मीय लग रहा है उतना ही इसे बासंती बोस सुनने की आदी हो चुकी हैं। इसकी वजह भी है कि दस सालों में कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जब सिटीजन होम की संचालिका सिस्टर रैबेका ने बासंती को सुबह उठाने के लिए इस संबोधन का इस्तेमाल ना किया हो। सिस्टर रैबेका ने बताया कि होम में आठ वृद्ध महिलाएं व दो विधवा सहित 20 महिलाएं रहती हैं। बासंती के कमरे में रोज सुबह आवाज लगानी पड़ती है क्योंकि उन्हें मेरे संबोधन के बाद ही दरवाजा खोलने में खुशी मिलती है। शुरुआत में कई दिनों तक खराब लगता था लेकिन हमउम्र होने की वजह से जब यह कहा कि आप तो बिल्कुल मां की तरह आवाज देती हैं तो एहसास हुआ कि हम हमउम्र भले हों, लेकिन जब उसने मां का दर्जा दिया है तो देखभाल की जिम्मेदारी उठानी ही पड़ेगी। तब से लेकर अब तक सुबह-सुबह उनके कमरे के सामने जाकर संबोधन के जरिए उठाने का सिलसिला चलता ही जा रहा है।

रुटीन बनाकर करते है देखभाल

सिस्टर रैबेका ने होम की वृद्ध महिलाओं की देखभाल के लिए एक लिस्ट बनाई है। उन्होंने बताया कि दस वर्षो से उसी लिस्ट के हिसाब से रुटीन का काम करती हूं। सभी के उठने के बाद कमरे की साफ-सफाई होती है। सुबह साढ़े सात बजे सभी एक साथ नाश्ता करते हैं। सुबह दस बजे चाय और फिर सबकी राय के बाद लंच की तैयारी की जाती है। एक घंटा लंच बनाने में लगता है फिर सब एक साथ लंच करते हैं। शाम चार बजे टी और स्नैक्स फिर शाम 7.30 बजे डिनर के बाद एक घंटे तक प्रभु का सत्संग और एक-दूसरे के सुख-दुख की बातें होती हैं।

सभी मिलकर मनाते हैं त्योहार

सिस्टर रैबेका ने बताया कि साल में पड़ने वाले किसी भी त्योहार को मिस नहीं किया जाता है। त्योहार के एक दिन पहले क्या बनाना है कैसे सेलीब्रेट करना है व गिफ्ट में क्या देना है इन सब पर चर्चा के बाद सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है। फिर सब मिलकर प्रेम और पारिवारिक माहौल में त्योहार मनाते हैं।

नहीं भाया गांव तो संगमनगरी लौट आई बासंती

कोलकता की बासंती बोस मंडल वर्ष 1960 में पति डॉ। धनेश्वर मंडल के साथ इलाहाबाद आई तो कभी सोचा नहीं था कि बुढ़ापे में भी शहर उनका सहारा बनेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिवगंत सुनीत व्यास ने उन्हें न केवल पसंदीदा शहर में आशियाना दिलाने में मदद की बल्कि सीनियर सिटीजन होम के रूप में ऐसा ठिकाना भी मिला जहां उन्हें एक पल के लिए भी नहीं लगा कि पराए घर में रह रही हों।

प्राचीन इतिहास में थे डॉ। मंडल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में डॉ। मंडल ने पढ़ाना शुरू किया और सितम्बर 1994 में रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद मुंगेर स्थित अपने गांव चले गए, लेकिन डॉ। मंडल व पत्‍‌नी बासंती का मन गांव में नहीं लगा। 24 वर्ष इलाहाबाद में रहते हुए दोनों यहां की संस्कृति और रहन सहन में रचबस गए थे। चार माह बाद पति-पत्‍‌नी वापस इलाहाबाद आ गए।

सिटीजन होम बना आशियाना

बासंती ने बताया कि 21 अक्टूबर 2007 में सीनियर सिटीजन होम का उद्घाटन समारोह था। एक दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनीत व्यास व डॉ। मुक्ति व्यास से फ्लैट दिलाने का अनुरोध किया। उन्होंने होम के उद्घाटन समारोह में आने का न्यौता दिया। वहां पहुंचे तो एक फ्लैट हमें दिया गया। इसके लिए एक भी रुपया नहीं लिया गया। वह पल हमारे लिए हमेशा के लिए यादगार बन गया। उन्होंने बताया कि अब तो जीना भी यही हैं और मरना भी इसी होम में है।