छह जगहों से छलनी हुआ मुबई का जिस्म
इन हादसों में मुंबई के छह इलाकों को खास तौर पर निशाना बनाया गया। 60 से ज्यादा घंटे तक चले इस आतंक के खेल में करीब 160 से ज्यादा लोग मारे गए। मुंबई के लियोपोल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से शुरु हुआ मौत और आतंक का ये तांडव कामा अस्पताल, ओबेरॉय होटल और नरीमन हाउस से होता हुआ ताजमहल होटल तक पहुंचा। और हर तरफ मौत और आंसुओं की चादर बिछाता चला गया। मुंबई की शान ताजमहल होटल धमाकों से लगी आग के चलते धूंए की काली चादर से ढक गया।

उबर तो आया पर दर्द की कसक आज भी सालती है मुंबई को
बिना शक अपनी देशभक्ति, एक जुटता और दृढ़ इच्छा शक्ति के सहारे बेशक मुंबई साल बीतते बीतते इस दर्द से उबर आया और जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती नजर आने लगी। ताजमहल होटल भी करीब 18 महीने रेनोवेशन की प्रक्रिया से गुजरने के बाद नयी आबोताब के साथ खड़ा हो कर वापस चलने लगा। बेशक देखने पर ऐसा लगता है कि अब मुबई में सब कुछ ठीक है और लोग उस हादसे को भूल चुके पर हैं, पर क्या  वाकई ऐसा है। दरसल आज भी मुंबई आहत है आज भी हादसे में घायल हुए और अपनों को खोने वाले लोगों को इंतजार है एस खौफनाक साजिश के निर्माताओं और प्रायोजकों के पकड़े जाने का। जिस दिन इस हमले को अंजाम देने वाले अजमल कसाब की तरह उन्हें पकड़ कर सजा दी जायेगी तब मुबई के जख्मों पर असली मरहम लगेगा। 

Mumbai attacks 2008

कुछ राहतें और हौंसले
मुंबई हादसे के कई शिकार को इस सातवीं बरसी पर पर नयी राहतों, हौंसलों और फैंसलों के साथ सामने आते देखा गया। इनमें से एक हैं मेजर (रिटा.) ईश्र्वर सिंह जाखड़ जिनके बेटे अनिल जाखड़ ने मुंबई ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे मेजर उन्नीकृष्णन के शहीद होने के बाद कमान संभाली थी। श्री सिंह का कहना है कि आतंकवाद कहां से फैल रहा है, कौन फैला रहा है, इस बारे में बहुत जानकारी हासिल हो चुकी है। अब आतंकवादी को पकड़ने की आवश्यकता नहीं है, सीधे उड़ा देना चाहिए। जब तक इस तरह का निर्णय नहीं होगा, आतंकी हमले की आशंका बनी रहेगी।
वहीं हमले की सातवीं बरसी पर रेलवे ने मुंबई आतंकी हमले में अपना सुहाग खो चुकी ममता देवी को उनके घर के निकट स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित करने का फैसला लिया है। झारखंड के गिरिडीह जिला के केशवारी गांव निवासी ममता के पति प्रकाश मंडल दो जून की रोटी की तलाश में मुंबई गए थे। वहां वह छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गए। उनके पास से मिले रेल टिकट के आधार पर रेलवे ने उनकी पत्नी ममता को नौकरी दी। धनबाद रेलवे अस्पताल में उन्हें नौकरी तो मिल गई लेकिन यह उनके घर से काफी दूर है जिससे ममता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था।

Mumbai attacks 2008

तीसरा उदाहरण है उम्र के 17वें वर्ष को पूरा करने की दहलीज पर खड़ी देविका रोतवान का जो अब हिम्मत से खड़ी है। देविका दसवीं की परीक्षा की तैयारी में जुटी है। वह  मुंबई पर हुए हमले में घायल हो गई थी। वह अब  आइपीएस अफसर बनना चाहती है। हमले के बाद टुकड़ों में बिखर गई उसके परिवार की जिंदगी भी इन सात सालों में पटरी पर आ गई है। यूं तो देविका का जन्मदिन 27 दिसंबर है, लेकिन अब 26 नवंबर भी उसके लिए जन्मदिन से कम नहीं। सात वर्षों से उसके परिचित उसे इस तारीख पर मुबारकबाद देना नहीं भूलते। लेकिन मौत से जंग जीत चुकी इस किशोरी को ‘कसाब गर्ल’ कहने वालों की भी कमी नहीं है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) रेलवे स्टेशन पर आतंकवादियों की ओर से की गई फायरिंग में उसके पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे। हमले की रात वह पुणे जाने के लिए पिता नटवरलाल रोतवान और भाई के साथ सीएसटी स्टेशन पहुंची थी। उ अचानक गोलीबारी शुरू हुई और हर ओर अफरा-तफरी मच गई। पिता बचने के लिए सुरक्षित कोने की तरफ दौड़ पड़े। इससे पहले कि लोग समझ पाते कि हुआ क्या है, देविका को गोली लग चुकी थी। वह खून से लथपथ थी। उसके शरीर में प्रवेश कर गई गोली अगले दिन निकाली जा सकी। छह ऑपरेशन और चार वर्ष बाद देविका को बैसाखियों से मुक्ति मिली।

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