इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध गंगा एवं एंटीप्लेगरिज्म पर एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम

ALLAHABAD: केन्द्रीय पुस्तकालय एवं इन्फिलिबनेट के सहयोग से सीनेट हॉल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध गंगा एवं एन्टीप्लेगरिज्म पर एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो। आरएल हांगलू द्वारा किया गया। उन्होंने अपने उद्बोधन में राष्ट्र के निर्माण में शोध की उपयोगिता पर प्रकाश डाला और बताया कि इस तरह के कार्यक्रम से विश्वविद्यालय के शैक्षणिक वातावरण में नवीन ऊर्जा का संचार होता है।

अभी हैं 1 लाख 77 हजार

मुख्य वक्ता वरिष्ठ वैज्ञानिक इन्फिलिबनेट गांधीनगर मनोज कुमार ने अपने तीन घंटे के उद्बोधन में बताया कि शोध गंगा वेबसाइट पर सभी शोध प्रतिवेदनों को अपलोड करना अनिवार्य है। शोध गंगा की वेबसाइट पर लगभग एक लाख सतहत्तर हजार शोध प्रतिवेदन अपलोड हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि शोध गंगा वेबसाइट से कोई भी पाठक किसी प्रकार के शोध प्रतिवेदनों को खोज कर डाउनलोड कर सकता है।

ऐसे हो सकती है प्लेगरिज्म की जांच

दूसरे चरण में इन्होंने एण्टीप्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर के बारे में चर्चा किया और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इविवि को फ्री में मिले उरकुण्ड एंटीप्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर के बारे में बताया। यह भी बताया कि इस सॉफ्टवेयर से किस प्रकार प्लेगरिज्म की जांच की जाती है ? कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के 700 से अधिक शिक्षकों एवं शोधार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। संचालन पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ। बीके सिंह द्वारा किया गया।

क्या है प्लेगारिज्म

किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि की अधिकांशत: नकल करते हुए अपने मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना साहित्यिक चोरी कहलाती है। साहित्यिक चोरी तब मानी जाती है जब हम किसी के द्वारा लिखे गए साहित्य को बिना उसका सन्दर्भ दिए अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं। इस प्रकार से लिखा गया साहित्य अनैतिक माना जाता है। वर्तमान में 'प्लेगरिज्म' अकादमिक बेइमानी समझी जाती है।