मोको कहां ढूंढ़े रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।।

उत्कर्ष 'पुनर्जन्म से उपचार' पर एक प्रेजेंटेशन दे ही रहा था कि मोबाइल बजा

जर्मनी में मेंटल इलनेस और ट्रीटमेंट पर एक सेमिनार चल रहा था. उत्कर्ष ने 'पुनर्जन्म से उपचार' पर एक प्रेजेंटेशन देना शुरू किया ही था कि उसके मोबाइल की रिंग टोन बजने लगी. उसने फोन निकाल कर स्विच ऑफ किया और प्रेजेंटेशन देने लगा. प्रेजेंटेशन के बाद क्वेश्चन-आंसर सेशन के दौरान उसका कलीग जुकर स्टेज पर आया और उसके कान में कुछ बोलकर चला गया. उत्कर्ष का चेहरा सफेद हो गया. उसने अपना रूमाल निकाला और चेहरे पर रखकर दूसरी ओर घूम गया. अपने को संभालते हुए उसने कहा, 'सॉरी जेंटलमेन, इट्स इमरजेंसी. प्लीज डोंट माइंड.' इसके बाद वह तेजी से स्टेज की सीढिय़ां उतरते हुए बाहर निकल गया. उसके साथ डायरेक्टर भी थे. वे पार्किंग तक उसके साथ गए. भावुक हो रहे उत्कर्ष को सांत्वना देते हुए उन्होंने कहा, 'डोंट वरी माई चाइल्ड, गो टू इंडिया सून एंड टेक केयर ऑफ योर मदर. आई ऑलरेडी टोल्ड टू सेक्रेटरी फॉर नेसेसरी अरेंजमेंट्स.' दरवाजा खोलकर कार में बैठते हुए उत्कर्ष हाथ जोड़कर बस इतना ही कह सका, 'थैंक्स सर.' डायरेक्टर ने कहा, 'गॉड ब्लेस यू माई सन.'

मॉम बहुत सीरियस हैं

कार में बैठते ही उत्कर्ष ने गार्गी को फोन मिलाया, 'हलो गार्गी, तुरंत पैकिंग कर लो, हम अभी इंडिया जा रहे हैं. मैं घर ही पहुंच रहा हूं.' उधर से गार्गी की आवाज आई, 'ओके. मैंने लगभग सारी तैयारी कर ली है. बस तुम्हारे कॉल का वेट कर रही थी. मॉम बहुत सीरियस हैं. मामू का फोन आया था, उन्होंने ही उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया है. मैंने तुम्हें कई बार कॉल किया लेकिन तुम्हारा फोन स्विच ऑफ था. तब मैंने जुकर को फोन करके तुम्हे इंफॉर्म करने के लिए कहा था. खैर तुम आओ मैं बाहर ही मिलूंगी.' घर पहुंचा तो गार्गी सामान लेकर पोर्च के नीचे वेट कर रही थी. ड्राइवर ने फटाफट सामान डिक्की में रखा और कार एयरपोर्ट की ओर मोड़ लिया. कार में बैठने के बाद गार्गी ने कहा, 'मैंने मॉम से रिक्वेस्ट की थी कि वे यहीं आ जाएं लेकिन वे मानी नहीं. उनका कहना भी ठीक ही था कि उस मकान से डैड की यादें जुड़ी हैं.' उत्कर्ष ने कहा, 'चलो कोई बात नहीं फेलोशिप के दो साल निकल ही गए. अब एक साल और, इसके बाद हम वहीं चलकर अपनी क्लीनिक और काउंसलिंग सेंटर चलाएंगे.' बातों-बातों में एयरपोर्ट आ गया. कार रूकी तो पार्किंग गेट पर ही एजेंट मिल गया. उसने टिकटें दी और उन्हें एयरपोर्ट के बोर्डिंग एरिया तक छोड़ आया. दिल्ली पहुंचकर उन्होंने लखनऊ के लिए फ्लाइट पकड़ी और लखनऊ से टैक्सी लेकर कानपुर अपने घर पहुंच गए. मामू घर से हॉस्पिटल के लिए निकल ही रहे थे. सामने टैक्सी देखा तो रुक गए. टैक्सी से उतर कर उत्कर्ष मामू से लिपट कर रोने लगा, 'मामू... मॉम कैसी हैं?' मामू ने कहा, 'बेटा चिंता मत करो. सब ठीक है. अब वे बातचीत कर रही हैं. चलो सामान रखकर फ्रेश हो लो साथ ही चलते हैं.' गार्गी ने मामू के पैर छुए और पूछा, 'अभी हॉस्पिटल में मॉम के साथ कौन है?' मामू ने कहा, 'बेटी, चिंता की कोई बात नहीं. मैत्रेयी के साथ तुम्हारी मां हैं. अभी तुम्हारा भाई भी आया हुआ है.' थोड़ी देर बाद सब हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े.

अकेली रहने की वजह से डिप्रेशन में चली गईं थीं

वहां पहुंचा तो मॉम सो रही थीं. गार्गी वहीं बैठ गई और उत्कर्ष मामू के साथ डॉक्टर से मिलने निकल गया. मामू ने डॉक्टर से कहा, 'डॉक्टर साब ये मेरा भांजा उत्कर्ष है. अभी जर्मनी से आ रहा है.' डॉक्टर ने कहा, 'हां-हां आपने बताया था. हलो उत्कर्ष! कैसे हो?' उत्कर्ष ने कहा, 'ठीक हूं सर. मॉम को क्या...' डॉक्टर ने कहा, 'चिंता की कोई बात नहीं. अकेली रहने की वजह से वे थोड़ा डिप्रेशन में चली गईं थीं. इस उम्र में अकेला होने पर अकसर ऐसा होता है. तुम तो सॉइकोलॉजिस्ट हो बेहतर समझ सकते हो कि इन्हें कैसे संभालना है.' उत्कर्ष ने कहा, 'जी हां, मैं समझ रहा हूं अब मॉम को अकेला छोडऩा ठीक नहीं है. उन्हें बिजी रखना जरूरी है. डिप्रेशन की सबसे बड़ा ट्रीटमेंट तो यही है कि व्यक्ति को जीने का मकसद होना चाहिए.' डॉक्टर ने कहा, 'बिल्कुल ठीक कहा तुमने. मुझे पूरी उम्मीद है कि अब वे जल्दी रिकवर कर जाएंगी. उन्हें असली फायदा तो तुम्हारी काउंसलिंग से ही होगा.' डॉक्टर से मिलकर दोनों वापस मां के पास पहुंचे. मां जग चुकी थीं. उत्कर्ष को देखते ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, 'बेटा...' उनके मुंह से बस इतना ही निकल पाया. उत्कर्ष मां के गले लग गया, 'मॉम. आई लव यू...' थोड़ी देर बाद वह बोली, 'बेटा अब मैं तुम लोगों के बिना अकेली नहीं रह सकती. पूरा घर मुझे काटने को दौड़ता है. मन में बुरे-बुरे खयाल आते हैं. ऐसा लगता है...' कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगी. उत्कर्ष ने उन्हें सांत्वना दी.

मुझे तो मोक्ष ही मिल गया

दो दिन बाद मैत्रेयी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया. हर समय उत्कर्ष और गार्गी उनके इर्द-गिर्द ही रहते थे. जब मैत्रेयी नॉर्मल हो गई तो एक दिन मौका देखकर उत्कर्ष ने कहा, 'मॉम! तुम टीचर रही हो. आसपास के बच्चों को थोड़ा गाईड कर दिया करो. इससे तुम्हारा मन भी लगा रहेगा. बच्चों में पॉजिटिव एनर्जी होती है. उनसे बातचीत से तुम अकेला फील नहीं करोगी. तुम्हारे मन में बुरे खयाल भी नहीं आएंगे. जैसे तुम मुझे समझाने के लिए गूगल और यू-ट्यूब से रेफरेंस ढूंढ़ती रहती थी. इन बच्चों को भी समझाओ. तुम्हारे पढ़ाने का स्टाइल ऐसा था कि चीजें तुरंत समझ आ जाती थी. तुम कहो तो वाईफाई प्रोजेक्टर ड्राइंग रूम में इंस्टॉल करवा दूं.' मां ने कहा, 'हां बेटा! तुम ठीक कह रहे हो. शर्मा जी अपने पोते को ट्यूशन देने के लिए एक बार मुझसे कह रहे थे. मैंने उनसे कहा था कि मुझे ट्यूशन करके पैसे नहीं कमाना वैसे भेज दीजिए बच्चे को पढ़ा दूंगी. पर शायद उन्हें लगा मैं पढ़ाना ही नहीं चाहती. वैसे तुम ठीक कह रहे हो. अपार्टमेंट में 15-20 बच्चे तो हैं, इन्हें फ्री में ट्यूशन देने का आइडिया बहुत अच्छा है. बच्चों के आने पर घर में चहल-पहल भी रहेगी.' उत्कर्ष ने कहा, '...तो मैं वाईफाई प्रोजेक्टर इंस्टॉल करवा दूं मॉम.' उन्होंने कहा, 'हां बेटा, अब मेरे अंदर का टीचर जाग रहा है. तू अभी लगवा दे और अपार्टमेंट में सबको फोन पर बता भी दे. आज से ही शुरू कर देती हूं. शुभ काम में देरी नहीं होनी चहिए.' उत्कर्ष ने कहा, 'यू आर ग्रेट मॉम.' उन्होंने कहा, 'ओके बेटा अब तू जर्मनी जाकर अपनी फेलोशिप पूरी कर और वहीं कोई अच्छी सी जॉब भी कर लेना. बस साल में एक-दो बार मुझसे मिलने आते रहना.' उत्कर्ष ने कहा, 'मॉम! मुझे फॉरेन में काम नहीं करना है. सीखने के बाद यहीं तुम्हारे साथ रहूंगा. मैंने और गार्गी ने यहां एक क्लीनिक और काउंसलिंग सेंटर की प्लानिंग की है.' यह सुनते ही मैत्रेयी की आंखों में आंसू आ गए. आंख पोछते हुए बोली, 'बेटा बस कर. अब रूलाएगा क्या? बेटा-बहू साथ रहेंगे. मुझे बच्चों को पढ़ाने का मकसद मिल गया. और जिंदगी में क्या चाहिए? बेटा! मुझे तो मोक्ष ही मिल गया...' उत्कर्ष ने मां को गले लगा लिया. पीछे दरवाजे से लगकर खड़ी गार्गी की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए.

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Story by: Satyendra Kumar Singh