केस वन

कुछ दिन पहले दिल्ली जाने के लिए पुराने बस स्टेशन से निकली जनरल बस मेन पोस्ट ऑफिस के पास पंक्चर हो गई थी। बस में करीब 40 सवारियां बैठी थीं। स्टेपनी न होने के चलते कंडक्टर को बस से सवारियां उतारनी पड़ी थी। पैसेंजर्स को दिल्ली जाने के लिए दूसरी बसों का सहारा लेना पड़ा।

केस टू

हाल ही में आगरा रूट पर बस का अगला पहिया पंक्चर हो गया था। जिसके चलते बस पलटने से बाल-बाल बची थी। रात का वक्त होने से पैसेंजर्स को काफी मुसीबत झेलनी पड़ी। इस बस में भी स्टेपनी नहीं थी।

BAREILLY:

कोई भी व्हीकल मैनुफैक्चरर कंपनी बनाती है तो उसके साथ टूल्स व स्टेपनी जरूर देती है। ताकि, पंचर होने पर पहिया मौके पर ही चेंज किया जा सके। पर, अफसोस की बात है कि यह फॉर्मूला परिवहन निगम के सर्विस मैनेजर को समझ में नहीं आता है। यही वजह है कि निगम की बसों में न तो टूल्स और न ही स्टेपनी। यही वजह है कि बसों के पहिए पंक्चर होने पर आए दिन यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

चार-छह बसें होती हैं डेली पंक्चर

सफर के दौरान चार से छह बसें डेली पंक्चर होती हैं। लिहाजा, इन बसों के यात्रियों को आधी राह में परेशानियों से जूझना पड़ता है, जब तक गंतव्य तक न पहुंच जाएं। दूसरी बस में शिफ्ट होने के लिए यात्री घंटा-आधा घंटा वेट करते हैं। बस आती भी है तो उसमें बैठने की भी जगह नहीं मिलती। लिहाजा, यात्रियों को स्टैंडिंग में ही सफर करना पड़ता है।

बन चुकी हैं परंपरा

बस पंक्चर होने पर यात्रियों को दूसरी बसों में शिफ्ट करना एक परंपरा बन चुकी है। यही वजह है कि अधिकारी भी बस पंक्चर होने की खबर मिलने पर यात्रियों को दूसरी बस में शिफ्ट करने की सलाह देकर जिम्मेदारी निभा लेते हैं। बस में स्टेपनी और टूल्स होते तो ड्राइवर पहिया चेंज कर लेते।

कहां गायब हो गई स्टेपनी

बरेली रीजन में निगम के पास 540 बसें हैं। इनमें से शायद ही किसी बस में स्टेपनी और टूल्स मिला हो। अधिकांश बसें बिना स्टेपनी और टूल्स के ही दौड़ती हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन बसों की स्टेपनी और टूल्स क्या हुए। पांच सौ बसों की स्टेपनी वर्कशाप में कहीं रखी जाएगी तो वहां पहियों का पहाड़ खड़ा हो जाएगा, लेकिन वर्कशॉप में ऐसा कुछ भी कहीं दिखाई नहीं पड़ता।

गोलमाल का खेल

स्टेपनी बसों में न लगाए जाने के पीछे गोलमाल का खेल की बू आती है। निगम के कर्मचारी संगठनों की मानें तो स्टेपनी और टूल्स का बड़ा घपला है। स्टेपनी के टॉयर को बेच देते हैं या फिर किसी बस में लगा देते हैं। टॉयर का रुपया अधिकारी जेब में रख लेते हैं।

एसएम से पॉवरफुल ड्राइवर

परिवहन निगम के सर्विस मैनेजर से ज्यादा पॉवरफुल ड्राइवर हैं। बसों में स्टेपनी न लगाए जाने के सवाल पर इस बात की तस्दीक स्वयं एसएम करते हैं। उनका कहना है कि पंचर पहिए को ड्राइवर चेंज नहीं करते हैं। जिससे वह स्टेपनी नहीं देते हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि विभाग में आखिर बड़ा कौन है। या फिर एसएम व्यवस्था लागू कर पाने में सक्षम नहीं हैं।

ड्राइवर स्टेपनी बदलना नहीं चाहते है। जिस वजह से दिक्कत आती है। फिर भी बसों में स्टेपनी लगाए जाने का काम किया जा रहा है.जल्दी वह बसों में स्टेपनी लगवाने का काम पूरा कर लेंगे।

राज नारायण वर्मा, एसएम, परिवहन निगम

बसों में स्टेपनी नहीं होती है। जिस वजह से दिक्कत होती है। इस संबंध में कई बार डिपो के अधिकारियों से कहा गया है। बावजूद इसके बस में स्टेपनी नहीं लगी।

सुरेश, ड्राइवर

स्टेपनी तो छोडि़ए बस के टूल बॉक्स में टूल्स तक नहीं है। जैक, बीलपाना, रॉड कुछ भी नहीं है। जिसके चलते छोटी-मोटी खराबी आने के बाद भी उसे ठीक नहीं कर पाते हैं।

उमेंद्र सिंह, ड्राइवर